भोपाल: मध्य प्रदेश सरकार ने मंगलवार को आर्थिक सर्वेक्षण जारी किया, जिसमें राज्य की गरीबी उन्मूलन व स्वास्थ्य सूचकांकों पर चिंता जताई गई है। गरीबी के मामले में राज्य देश के 29 राज्यों में से 27वें क्रम पर है, यानी देश के सबसे गरीब दो राज्यों के बाद तीसरे स्थान पर है। वहीं कुपोषण से पांच वर्ष तक के बच्चों की होने वाली मौतों की दर 77 प्रति हजार है, जो असम को छोड़कर देश में सर्वाधिक है।
आíथक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रदेश में गरीबी उन्मूलन अभी भी एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि 29 राज्यों में से मध्य प्रदेश 27वें स्थान पर है। जीडीपी में कृषि का योगदान वर्ष 2017-18 में 37.4 प्रतिशत था, जो घटकर 37़17 प्रतिशत हो गया है। यदि वर्ष 2011-12 से तुलना की जाए तो प्रचलित भाव में कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 39़ 06 प्रतिशत था, जो 18-19 में 35़ 94 होने की संभावना है। प्रति व्यक्ति आय 82,941 रुपये से बढ़कर 2018-19 में 90,998 रुपये हो गई है। मगर अभी भी यह अन्य प्रमुख राज्यों से कम है।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रदेश की शिशु मृत्यु दर भी देश में सबसे अधिक है। प्रदेश में यह दर प्रति हजार पर 43 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर 33 है। हालांकि वर्ष 2017-18 से तुलना की जाए तो इस दर में सात की कमी हुई है। इसी तरह मातृ मृत्यु दर अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। मध्यप्रदेश में जहां प्रति लाख प्रसव पर यह दर 173 है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह 130 है।
सरकार के प्रयासों के बावजूद मध्यप्रदेश में कुपोषण अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। प्रदेश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 77 है, जो असम को छोड़कर अन्य किसी प्रदेश से सबसे अधिक है।
राज्य सरकार के आय के स्रोत से राजस्व में वृद्धि हुई है, लेकिन बिक्री कर एवं यात्री एवं माल पर कर में 24़ 28 प्रतिशत की कमी आई है। इसी प्रकार माल तथा यात्रियों पर लगाए जाने वाले करों में यह कमी 98़ 64 प्रतिशत देखी गई है।
सर्वेक्षण के अनुसार, मध्यप्रदेश में मुख्य फसलों का क्षेत्रफल घट रहा है। वर्ष 2017-18 में धान, मक्का और गेहूं 17526 हजार हेक्टेयर में बोया गया था, जो 18-19 के अनुमान के अनुसार 17127 हजार हेक्टेयर रह गया है। इसी तरह राज्य में दलहनी फसलों का क्षेत्रफल और उत्पादन कम हुआ है।
प्रदेश के लिए चिता की बात यह है कि सोया स्टेट के नाम से मशहूर मध्यप्रदेश में सोयाबीन के क्षेत्रफल और उत्पादन में भी कमी आ रही है। सर्वेक्षण में के मुताबिक, वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 17-18 में सोया के क्षेत्रफल में 7़ 23 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि उत्पादन में यह कमी 19़ 97 प्रतिशत है। वर्ष 16-17 में सोयाबीन का उत्पादन 6649 हजार मीट्रिक टन था, जो 17-18 में घटकर 5321 हजार मीट्रिक टन रह गया है।
सर्वेक्षण के अनुसार, मध्यप्रदेश में मांस और अंडे का उत्पादन बढ़ा है। वर्ष 2016-17 में मांस का उत्पादन 79 हजार मीट्रिक टन था, जो बढ़कर 89 हजार मीट्रिक टन हो गया है। यानी इसमें 12 प्रतिशत की वृद्घि हुई है। इसी तरह अंडों के उत्पादन में 14़ 65 प्रतिशत की वृद्घि दिखाई गई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि मांस और अंडे के उत्पादन की वृद्घि दूध उत्पादन में हुई वृद्घि से अधिक है।
मध्य प्रदेश के उद्योग का प्रदेश की जीडीपी में योगदान कम होता जा रहा है। वर्ष 2011-12 में यह 27़ 09 प्रतिशत था, जो वर्ष 17-18 में घटकर 24़14 हो गया है। हालांकि प्रदेश में एमएसएमई से संबंधित उद्योग ज्यादा स्थापित हो रहे हैं।
प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में गिरावट आई है। वर्ष 2016-17 में प्राथमिक शालाओं में कुल नामांकन 78़ 92 लाख था, जो वर्ष 2017-18 में घटकर 77़ 30 लाख रह गया है। इसी तरह माध्यमिक शालाओं में कुल नामांकन 44़ 61 लाख से घट कर 43़ 63 लाख रह गया है। हालांकि बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है।