प्रज्ञा ठाकुर : भाजपा/संघ का असली/नया चेहरा?

Approved by Srinivas on Tue, 04/30/2019 - 00:33

:: श्रीनिवास ::

जाहिर है कि मोदी जानते हैं कि उनके मुरीद हिंदू प्रज्ञा ठाकुर पर लगे आरोपों को सही मानकर भी उसके साथ रहेंगे; और ऐसी ‘वीरांगना’ को प्रत्याशी बना कर और ख़म ठोक कर उसका बचाव करनेवाला कोई ‘छप्पन इंच’ वाला ही तो हो सकता है. यानी आगे, अदालत का फैसला जो भी हो (वैसे भी यदि उनकी सरकार दोबारा बन जाती है, तो ऐसे मामलों को रफा दफा कर देने का अवसर तो रहेगा ही), विपक्ष कुछ भी कहे, धार्मिक उन्माद से ग्रस्त हिन्दू का वोट तो मिल ही जायेगा.

 

भोपाल से भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर ने दिवंगत हेमंत करकरे (अशोक चक्र से सम्मानित पुलिस अफसर) के खिलाफ जहर उगलने के बाद अपना वह बयान वापस लेकर उसके लिए क्षमा मांग ली है. (हालांकि उनके जहर उगलने, भड़काऊ और ऊटपटांग बातें - जैसे गोमूत्र से कैंसर का इलाज, चार वर्ष की उम्र में बाबरी ध्वंस में शामिल रहने का दावा - कहने का सिलसिला जारी है) जाहिर है, ऐसा करना उनकी मजबूरी ही रही होगी. मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा ठाकुर को खड़ा करने के पीछे भाजपा की जो रणनीतिक मंशा थी, वह तो पूरी हो चुकी. उनके जहरीले बयान का जो ‘सकारात्मक’ असर होना था, वह  हो चुका. अब माफी मांग लेने से क्या फर्क पड़ता है? देख लीजिये कि प्रधानमंत्री श्री मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के किसी नेता ने ईमानदारी और संजीदगी से प्रज्ञा ठाकुर के उस कथन की निंदा की है? उल्टे मोदी पूछ रहे हैं कि अमेठी और रायबरेली के ‘जमानत पर बाहर’ प्रत्याशियों की चर्चा क्यों नहीं हो रही, सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर पर शोर क्यों हो रहा है? यानी सुश्री ठाकुर के उस कथन से, जिसके लिए वे खुद माफी मांग चुकी हैं, मोदी को कोई कष्ट नहीं हुआ; और उन्हें भाजपा प्रत्याशी बनाने पर भी कोई अफसोस नहीं है. करकरे पर उनके कथन को उनका निजी बयान बता दिया, बस. 

सभी जानते हैं कि ‘हिंदू आतंकवाद’ की बात करनेवालों में एक दिग्विजय सिंह भी रहे हैं. अब उनके सामने यूपीए शासन काल में कथित झूठे मामलों में फंसाई गयी एक ‘साध्वी’  खड़ी हैं. निशाने पर पूरी कांग्रेस और पूरा विपक्ष है, जो मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में प्रज्ञा ठाकुर पर लगे आरोपों को सही मानता रहा है, जबकि मोहन भागवत से लेकर मोदी और शाह तक कहते रहे हैं कि कोई हिन्दू तो आतंकवादी हो ही नहीं सकता, कि हमारे यहाँ तो चीटियों और सांपों को भी दूध पिलाने की परंपरा रही है. अब उनको कौन याद दिलाये कि प्राचीन भारत में परशुराम द्वारा धरती को छत्तीस बार क्षत्रिय विहीन कर देने की कथा भी है. हमारे तमाम नायक और अवतार ‘दुष्टों’ का संहार करते रहे हैं. यहाँ तक कि हमारी दुर्गा-काली जैसी कुछ देवियों ने भी खूब रक्त बहाया है. रामायण और महाभारत के युद्ध भी हमारे ग्रंथों में दर्ज हैं. और हालिया ज्ञात इतिहास के पन्ने भी रक्त रंजित ही हैं. मगर इतिहास तो अब वही है, जो मोदी-शाह कहें. 

और भले ही प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित जैसे लोग किसी संगठन से जुड़े हों और आरोप उस संगठन पर ही लगे हों, भाजपा बेहद चालाकी से इस आरोप को सम्पूर्ण हिन्दू समाज और संस्कृति पर लगाये गये आरोपों के रूप में प्रचारित कर रही है. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने और दुनिया को शांति का सन्देश देनेवाली पांच हजार साल पुरानी हिंदू संस्कृति पर आपने (जाहिर है, इशारा कांग्रेस और विपक्ष की ओर था) आतंकवाद का आरोप लगा दिया! यानी मोदी ने प्रज्ञा ठाकुर और ‘अभिनव भारत’ पर लगे आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया.       

और जब देश की सत्तारूढ़ जमात/पार्टी, उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री तक मानता है कि कोई हिंदू  आतंकवादी नहीं हो सकता, तो इसमें यह अर्थ ध्वनित है कि जो हिंदू नहीं है, वह आतंकवादी हो सकता है; और मुसलमान तो स्वयंसिद्ध ...

जाहिर है कि मोदी जानते हैं कि उनके मुरीद हिंदू प्रज्ञा ठाकुर पर लगे आरोपों को सही मानकर भी उसके साथ रहेंगे; और ऐसी ‘वीरांगना’ को प्रत्याशी बना कर और ख़म ठोक कर उसका बचाव करनेवाला कोई ‘छप्पन इंच’ वाला ही तो हो सकता है. यानी आगे, अदालत का फैसला जो भी हो (वैसे भी यदि उनकी सरकार दोबारा बन जाती है, तो ऐसे मामलों को रफा दफा कर देने का अवसर तो रहेगा ही), विपक्ष कुछ भी कहे, धार्मिक उन्माद से ग्रस्त हिन्दू का वोट तो मिल ही जायेगा.

लेकिन यह सिर्फ चुनावी लाभ लेने की बात नहीं है, असल में यही भाजपा-संघ की असलियत भी है. कभी वाजपेयी, फिर आडवाणी, अभी मोदी-योगी; और भविष्य में ‘साध्वी’ प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित आदि भाजपा-संघ के नये चेहरे होंगे. इन्हीं के कुशल नेत्रृत्व में भारत बनेगा विश्व गुरु, और आयेगा, जो अब तक नहीं आया है, अच्छे दिन!

वैसे एक लिहाज से अच्छा है कि यह जमात अब खुल कर, अपने असली रूप में सामने आ रही है. अब कम से कम उन लोगों का यह भ्रम तो दूर होना चाहिए कि  'सबका साथ, सबका विकास' का नारा वास्तविक है, कि मोदी को और संघ जमात को कम्युनल बताने की कोशिश कांग्रेस व 'कथित' सेकुलरों की साजिश है. और वे अब भी मोदी का जयकारा लगायते रहेंगे तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि वे लिबरल होने का सिर्फ ढोंग करते हैं.

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