जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 में हुई त्रुटियों को केंद्र सरकार ने हटा दिया है। विपक्ष ने पिछले महीने आरोप लगाया गया था कि कानून जल्दबाजी में लाया गया है और इसमें कई त्रुटियां हैं। करीब एक महीने बाद सरकार ने गुरुवार को त्रुटियों में सुधार किया और इसके लिए तीन पन्ने का शुद्धि पत्र लाते हुए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून में सुधार करने की घोषणा की। संसद ने सात अगस्त को कानून पास किया था और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा इसे मंजूरी देने के बाद इसकी गजट अधिसूचना नौ अगस्त को जारी की गई थी।
जो सुधार किए गए हैं उनमें वर्ष 1909 को 1951 किया गया है। एक शब्द में छूट गए ‘आई’ को जोड़ा गया है और एक शब्द में लगे अतिरिक्त ‘टी’ को हटा दिया गया है। कानून में एडमिनिस्ट्रेटर में ‘एन’ के बाद ‘आई’ शब्द छूट गया था, आर्टिकल में ‘टी’ के बाद ‘आई’ छूट गया था, टेरीटरीज में दो ‘टी’ लग गए थे।
सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को अधिसूचित करने के दौरान जो 52 गलतियां हुई थीं, उनमें से ये कुछ उदाहरण हैं। कानून में इस बात का भी जिक्र था कि जम्मू-कश्मीर के संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन किया जाएगा। शुद्धि पत्र में अब इस वाक्य को हटा दिया गया है।
बता दें कि, अलगाववादी नेता और वकील अब्दुल गनी भट्ट ने इस एक्ट को चुनौती दी थी। बुधवार को हाईकोर्ट में जस्टिस अली मोहम्मद मागरे ने इस पर सुनवाई की थी और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। जज ने कहा कि इस मामले को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। अक्टूबर में इन पर सुनवाई होनी है। तब तक इंतजार किया जाना चाहिए।
अपीलकर्ता ने अपनी याचिका में देश की संसद में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने सहित अन्य फैसलों को रद्द करने की मांग रखी थी। कश्मीर में पाबंदियां हटाने की मांग भी रखी गई थी। याचिका में कहा गया था कि केंद्र राज्य के आंतरिक मामले में दखल न करे। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद संसद में पारित एक्ट और कानून से संबंधित तमाम फैसलों को निरस्त करने की मांग की गई। याचिका में बताया गया था कि कश्मीर में कर्फ्यू लगाकर लोगों की आजादी छीन ली गई है। वहां सब कुछ प्रभावित हो रहा है।