क्षेत्र के भ्रमण पर ना तो दिग्गज कांग्रेसी और गठबंधन के स्थानीय नेता कार्यकर्ता ले रहे रूचि।
महागठबंधन के बाद भी लोहरदगा विधायक सह कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी सुखदेव भगत से है अपनों को नाराजगी।
गुमला: लोकसभा चुनाव2019 में कांग्रेस पार्टी की ओर से महागठबंधन के लोहरदगा विधायक सह लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी सुखदेव उरांव को जो उम्मीद दिखाई दे रही थी ठीक उसके विपरित हवा चल रही है ,महागठबंधन भी हुआ और कांग्रेस की ओर से टिकट भी विधायक सुखदेव जी ने हासिल कर ली नामांकन के समय से ही यह चर्चा जोरों से रही कि ना तो गुमला जिले से किसी भी वरीय कांग्रेसी को ना तो प्रस्तावक बनाया गया था और ना ही समर्थक के रूप में रखा गया है इसका असर गुमला जिला के वरिय कांग्रेसी नेताओं में दिखलाई दिया है - वरिष्ट और कर्मठ कांग्रेसियों ने सुखदेव भगत के चुनावी प्रचार प्रसार से दूरी बनाकर ही रखें हुए हैं । गुटबाजी जम कर चल रही है डॉ रामेश्वर उरांव एवं अरूण उरांव भी टिकट के दावेदार थे पर नही मिला अब हालात यह है कि अति आत्मविश्वास के साथ महागठबंधन के भरोसे सुखदेव उरांव चुनावी जंग में हैं उनको लगता है कि पिछले चुनाव में चमरा लिंडा के चुनावी मैदान में रहते जो वोट बैंक कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ रामेश्वर उरांव ने बनाएं थे और चमरा लिंड़ा का भी वोट अब मिलाकर विजय निश्चित है उनका आकलन चुनाव परिणाम में दिखाई देगा जब मतगणना होगी। कांग्रेस के ही एक कार्यकर्ता ने नाम नही छापने की शर्त पर हकिकत बताते हुए कहा कि गुमला जिला कांग्रेस के काफी कार्यकर्ता और पूर्व के सांसद डॉ रामेश्वर उरांव इस चुनाव से अपने आपको केवल इसलिए बाहर रखें हुए हैं ताकि सुखदेव भगत यदि चुनाव हारते हैं तो यह नही कह सके कि एक लॉबी बनाकर कांग्रेस के ही लोगों ने चुनाव जिताने की जगह चुनाव हराने के लिए क्षेत्रों का भ्रमण किया था।एक तरह से कहा जाएं कि गुमला जिला कांग्रेस को खुद सुखदेव भगत की लॉबी तरहीज नही दे रहें हैं और खुद कमान संभाले हुए हैं । उनको कांग्रेस के सिपाहियो पर भरोसा ही नही है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में डॉ रामेश्वर उरांव को हराने के लिए सुखदेव भगत, शिव कुमार भगत ने ही कार्य कर इस क्षेत्र में कांग्रेस को कमजोर करने की भूमिका निभाई थी और आज की स्थिति भी वैसी ही है । कांग्रेस की एक कमजोर टीम निकली हुई है चुनाव की रणनीति बनाई गई थी पर अंतरकलह से सब फेल होने की ओर है।महागठबंधन के भी राजनीतिक दलों के नेतागण जो शिर्ष हैं गठबंधन का धर्म निभा रहे हैं पर उनकी फौज को कोई भी पूछने वाला नही मिलने से वे भी किनारा लिए हुए हैं।