यह आंकड़ा चुनाव आयोग का है। आयोग के अनुसार अंतिम मतदाता सूची में लिंग अनुपात पिछले वर्ष की तुलना में 956 से बढ़कर 961 हो गया है। गणित बताता है कि महिला मतदाताओं का प्रतिशत 49 के आंकड़े को पार कर गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ना एक निर्णायक कारक बन सकती है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल ऐसा है जहां चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी काफी ज्यादा रही है। तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल चौथा प्रमुख राज्य है जहां चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी अधिक है। केरल में जहां महिला मतदाताओं का प्रतिशत 51.4 प्रतिशत है, वहीं तमिलनाडु में 50.5 और आंध्र प्रदेश में 50.4 प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल में यह प्रतिशत 49.01 प्रतिशत है।
अब शायद यही वजह है कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस राज्य की महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं। भाजपा के घोषणापत्र में सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण, विधवाओं की पेंशन में वृद्धि, मुफ्त परिवहन और केजी से पीजी तक की मुफ्त शिक्षा शामिल है।
वहीं दूसरी ओर, महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में करने को लेकर तृणमूल कांग्रेस 2019 से ही भाजपा पर हमलावर है। 2019 के चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'बोंगो जननी' नाम से एक विंग का गठन कर दिया था। माना जाता है कि उस विंग का काम ही था कि भाजपा के शासनकाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में हुई वृद्धि को उजागर करना। अब उसी बोंगो जननी की महासचिव व राज्य की महिला व बाल विकास मंत्री शशि पंजा कहती हैं, पश्चिम बंगाल में पिछले 10 सालों के अपने शासन में तृणमूल सरकार ने कन्याश्री जैसी कई योजनाएं लाईं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर सराहा गया। हमने जो भी किया है उस पर हमें भाजपा से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है।