नई दिल्ली: कृषि से जुड़ी मांगों को लेकर किसानों के आंदोलन के अगले 24 घंटे बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। एसकेएम की बॉर्डर पर हुई बैठक के दौरान सरकार द्वारा प्राप्त हुए प्रस्ताव पर किसानों ने कुछ ऐतराज दर्ज कराया है, जिसपर सरकार से बुधवार तक स्पष्टीकरण भी मांगा गया है। दरअसल सरकार द्वारा किसान संगठनों को जवाब दिया गया है उसपर अधिकतर किसानों की मांगों को मान लिया गया है। वहीं किसानों ने सरकार के प्रस्ताव पर विचार विमर्श किया और कुछ किसानों ने इसपर ऐतराज जताया है।
इसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा बुधवार दोपहर 2 बजे बैठक करेगा और सरकार से स्पष्टीकरण प्राप्त करने के बाद ही आंदोलन पर कुछ फैसला लिया जाएगा।
सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को पांच पॉइंटों के साथ एक प्रस्ताव भेजा, जिसमें कहा गया है कि, एमएसपी पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं और बाद में कृषि मंत्री ने एक कमेटी बनाने की घोषणा की है, जिस कमेटी में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि वैज्ञानिक सम्मिलत होंगे। हम इसमें स्पष्ट करना चाहते हैं कि किसान प्रतिनिधि में एसकेएम के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
किसानों ने इसपर भी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। किसानों के मुताबिक, किसान संगठनों के प्रतिनिधियों में कौन होगा? किसानों के अनुसार, इसमें जो हमेशा आंदोलन का विरोध करते रहे हैं, सरकार उनको भी शामिल कर सकती है।
इसके अलावा सरकार ने प्रस्ताव में कहा है कि, जहां तक किसानों को आंदोलन के वक्त के केसों का सवाल है उत्तरप्रदेश सरकार और हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्णतया सहमति दी है कि आंदोलन वापस खींचने के बाद तत्काल ही केस वापिस लिए जाएंगे।
किसानों ने आंदोलन वापस खींचने के बाद तत्काल ही केस वापस लिए जाएंगे वाली शर्त पर ऐतराज जताते हुए कहा है कि, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों में भी मुकदमे दर्ज हैं। वहीं रेल रोको के वक्त भी मुकदमे दर्ज हुए थे। अकेले हरियाणा में ही 48 हजार किसानों पर मुकदमे दर्ज हैं। इनको वापस लेने की शुरूआत तुरन्त होनी चाहिए।
सरकार ने किसानों को अपने प्रस्ताव में आगे कहा है कि, किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार के संबंधित विभाग और संघ प्रदेश क्षेत्र के आंदोलन के केस पर भी आंदोलन वापस लेने के बाद केस वापस लेने की सहमति बनी है। मुआवजे का जहां तक सवाल है, इसके लिए भी हरियाणा और उत्तरप्रदेश सरकार ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है।
इसके अलावा सरकार के प्रस्ताव पर आगे कहा गया है कि जहां तक पराली के मुद्दे का सवाल है, भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 एवं 15 में क्रिमिलन लाइबिलिटी से किसान को मुक्ति दी है।