‘मी टू’ की आंच!

Approved by Srinivas on Sat, 10/13/2018 - 08:21

अमेरिका से शुरू हुए इस अभियान की आंच अचानक भारत के नामचीन लोगों तक पहुँचने लगी है। और उनमें उनमें घबराहट साफ़ दिखने लगी है। ग्लैमर की दुनिया के कद्दावर, सफल और ‘संस्कारी’ छवि के अलावा राजनीति और अन्य क्षेत्रों के ‘बड़े’ लोग भी शामिल हैं। नाना पाटेकर, आलोकनाथ, विवेक अग्निहोत्री, साजिद खान, सुभाष धई, शक्ति कपूर, सलमान खान आदि आदि के बाद अगला नंबर किनका होगा, यह देखना बाकी है। एक केन्द्रीय मंत्री एमजे अकबर का नाम भी सामने आ चुका है।

यह सर्वज्ञात है कि भारत सहित पूरी दुनिया में (आदिवासी समाज इस रोग से अब तक लगभग मुक्त है) लड़कियों को घर से लेकर बाहर तक ‘अनचाहे’ स्पर्श और बदनीयत शारीरिक/यौनिक पहल को झेलना पड़ता है। मगर, खास कर एशियाई देशों में, वे इसलिए किसी से कुछ नहीं पातीं कि इससे उनकी ही बदनामी होग! खुद उनके परिजन और करीबी भी उन्हें चुप रहने की सलाह देते हैं, यह कह कर कि ‘यह सब तो होता ही रहता है!’ घर की देहरी, यानी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघने की इतनी कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। सचमुच यह उनकी नियति-सी बन गयी है।

यह भी कोई रहस्य नहीं है कि ग्लैमर की दुनिया के इस कड़वे सच का एहसास हर किसी को है। फ़िल्मी गलियारों में इसकी चर्चा भी होती रही है; यह और बात है कि चटखारे लेकर। दूसरे-तीसरे दर्जे की कलाकार अपने ऐसे अनुभव सार्वजनिक भी करती रही हैं। लेकिन उनके आरोपों को एक असफल कलाकार का रोना मान लिया जाता रहा है। फिर इंडस्ट्री के कद्दावर और रसूखदार लोगों से कोई पंगा भी लेना नहीं चाहता। सो ‘भले’ लोग भी चुप रहते हैं। माना यह जाता है कि यह उस दुनिया का ‘मान्य’ रिवाज है कि जिनका कोई गॉड फादर नहीं होता या परिवार का कोई सदस्य स्थापित नहीं होता, उनको आगे बढ़ना है, तो इस तरह के समझौते करने ही पड़ते हैं। संभव है, आज की अनेक सफल कलाकार उसी श्रेणी में हों; और वे उस ‘राज’ को कभी उजागर नहीं करेंगी।

राजनीति हो, निजी/सरकारी कार्यालय हो, मीडिया हाउस हो या कार्पोरेट जगत, हर जगह स्थिति में कम या अधिक, डिग्री का ही अंतर होगा। जहां ‘सफल’ होने का ईनाम जितना बड़ा है, वहां समझौते की जरूरत या बाध्यता भी उतना ही अधिक है।

लेकिन अचानक सब कुछ बदलता नजर आने लगा है। वर्षों तक चुप रही लड़कियां/महिलाएं उन लोगों को बेनकाब करने की हिम्मत जुटाने लगी हैं, जो अब तक शरीफ माने जा रहे थे। और ऐसे ‘शरीफों’ और उनके बचाव में उतरे लोगों की प्रतिक्रिया भी जानी-पहचानी है- इतने दिनों तक चुप क्यों थी? जब सफल नहीं हुई तो उल्टे सीधे आरोप लगा कर ख़बरों में बने रहना चाहती है। जो लोग महज आरोप को सबूत मान कर विपक्षी को चोर/अपराधी घोषित कर देते हैं, इस मामले में ‘अपने’ लोगों पर आरोप लगते ही, इसे बदनाम करने की साजिश बताने लगे हैं। बहुतों ने तो चुप्पी साध रखी है। 

सुदूर अतीत में हुए ऐसे यौन दुर्व्यवहार के आरोप अदालतों में टिक पायेंगे या नहीं, किसी को सजा हो पायेगी या नहीं, अभी यह कहना कठिन है। लेकिन इतना तो हुआ ही है कि काम, नौकरी और प्रमोशन के बदले लड़कियों के साथ बेजा हरकत करते रहे और करनेवालों के होश फाख्ता हो रहे हैं। लड़कियां/ महिलाएं कल तक जिस बात को कहने का साहस नहीं कर पाती थीं, अब वे नाहक शर्मिंदगी से उबर रही हैं। इसका एक दूरगामी और सकारात्मक असर यह भी होगा कि अब बच्चियां/ लड़कियां बदनामी के डर से चुप रहने के बजाय ऐसी बेजा हरकतों का उसी समय विरोध करेंगी। शायद उनके माता-पिता भी अब परिवार की कथित प्रतिष्ठा के भय से उन्हें खामोश रहने के लिए बाध्य न करें।

अच्छी बात यह भी हुई और हो रही है कि सम्बद्ध बिरादरी के कुछ लोग भी ऐसे आरोपों की जांच की मांग, साथ ही आरोपी लोगों से किनारा भी करने लगे हैं।  ताजा खबर है कि अभिनेता अक्षय कुमार ने यौन शोषण के आरोपों सामना कर रहे साजिद खान के साथ काम करने से इंकार कर दिया है। साथ ही फिल्म ‘हाउसफुल-4’ की शूटिंग रुकवा दी है। दूसरी ओर आरोप लगने के बाद साजिद खान फिल्म से अलग हो गये हैं। केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा है कि ‘मी टू’ के तहत जो मामले सामने आ रहे हैं, उनकी जांच होगी। 

हालांकि यौन दुर्व्यवहार की एक हकीकत यह भी है कि ऐसी हरकत करनेवाले अधिकतर लोग परिचित और घर/परिवार के ही होते हैं। यदि महिलाएं सचमुच अपनी आपबीती खुल कर बताने लगें, तो बहुतेरे पुरुषों की कलई उतर जायेगी, जिनमें उनके निकट संबंधी भी होंगे..

संभव है, इस अभियान के कारण कुछ सचमुच के शरीफ लोगों पर बदनामी का धब्बा लग जाये। लेकिन यह खतरा तो किसी भी कानून और अच्छी पहल के साथ जुड़ा ही रहता है। उन सबको बचाव का मौका मिलना ही चाहिए। लेकिन अब तक जितने मामले और नाम सामने आये हैं, पहली नजर में ऐसा नहीं लगता कि इन आरोपों के पीछे कोई बदनीयती है। 

इस अभियान में मुंह खोलने का साहस कर रही महिलाओं को सलाम!

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