चेन्नई: अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में प्रकाशित राफेल संबंधी आलेख के तथ्यों के बारे में द हिंदू ग्रुप ऑफ पब्लिकेशन के अध्यक्ष एन.राम ने कहा कि उनके पास लड़ाकू विमान राफेल की खरीद से संबंधी दस्तावेज चोरी के नहीं हैं, उन्हें सूत्रों ने मुहैया कराया है और सूत्रों का खुलासा नहीं किया जाएगा। बोफोर्स तोप सौदे में कथित रिश्वतखोरी के मामले पर काफी कुछ लिखने वाले एन.राम ने उन दिनों की तुलना करते हुए कहा कि उन्हें और 'द हिंदू' को उस वक्त आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत कार्रवाई की धमकी नहीं दी गई थी, जैसा कि मोदी सरकार द्वारा अब किया जा रहा है।
बुधवार को महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि राफेल सौदे के दस्तावेज सरकार के पास से चोरी हो गए हैं और उन्हें प्रकाशित करने वालों के खिलाफ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई होनी चाहिए।
गुरुवार को आईएएनएस से बात करते हुए राम ने कहा कि चोरी दस्तावेजों का हौआ विकिलीक्स, पेंटागन पेपर और अन्य मुद्दों के दौरान भी उठा था।
दिग्गज पत्रकार ने राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेजों पर केंद्र सरकार के रुख के बारे में कहा, "हमारे पास चुराए गए दस्तावेज नहीं हैं। हम अपने सूत्रों को उजागर नहीं करेंगे, क्योंकि हमने उन्हें (सूत्रों को) जुबान दी है।"
राम ने कहा, "खोजी पत्रकारिता के हिस्से के रूप में हमने जनहित में वह जानकारी प्रकाशित की है, क्योंकि इसे संसद के भीतर व बाहर लगातार मांग के बावजूद दबाकर रखा गया था।"
उनके मुताबिक, सरकार कह रही है कि दस्तावेज चोरी हो गए हैं और इसकी वास्तविकता को प्रमाणित किया गया।
राम ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ए, भाषण व अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार और सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) (आई) व 8(2) के अंतर्गत सुरक्षा उपलब्ध है, जो आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम से अधिक महत्वपूर्ण है।
यह पूछे जाने पर कि जो आंकड़ा उन्होंने आलेख में दिया है, क्या वह केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल दस्तावेजों का हिस्सा है? इस पर राम ने कहा, "हमें नहीं पता कि केंद्र सरकार ने सीलबंध लिफाफे में सर्वोच्च न्यायालय में क्या दिया है। मुझे लगता है कि हमने जो भी प्रकाशित किया है वह केंद्र सरकार द्वारा अदालत के साथ साझा किए गए दस्तावेजों का हिस्सा नहीं है।"
राम ने कहा कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम ने अपनी जरूरत खो दी है और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले राफेल सौदे पर उनकी पहली रिपोर्ट छपने के बाद केंद्र सरकार की ओर से कोई धमकी नहीं मिली थी।
राफेल सौदे के बारे में लिखना शुरू करने के बाद 'द हिंदू' को केंद्र सरकार से विज्ञापन मिलना क्या प्रभावित हुआ, इस पर उन्होंने कहा, "हमें विज्ञापन मिल रहे हैं। शुरुआत में कुछ रिपोर्ट के बाद डीएवीपी तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया गया था।"
जब 'द हिंदू' ने बोफोर्स तोप सौदे में कथित रिश्वतखोरी के मामले को उजागर किया था, तब क्या प्रभाव पड़ा था? इस सवाल पर राम ने कहा, "उन दिनों द हिंदू और मुझे कोई धमकी नहीं मिली थी।"
राम ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत कार्रवाई की धमकी नहीं दी थी।
उन्होंने कहा, "जिस वक्त हम बोफोर्स सौदे के बारे में खबरें छाप रहे थे, मेरी राजीव गांधी के साथ बैठक हुई थी। यह एक सौहार्दपूर्ण मुलाकात थी। हमने उनसे श्रीलंका के बारे में भी बात की थी।"
राम ने राफेल सौदे के बारे में खबरों को तवज्जो न दिए जाने को लेकर समाचारपत्रों की आलोचना की।
उन्होंने कहा, "बोफोर्स सौदे की जांच के दिनों के दौरान गंभीर प्रतियोगिता चला करती थी। अरुण शौरी इंडियन एक्सप्रेस में लिखते थे और इंडिया टुडे भी बोफोर्स सौदे के बारे में रिपोर्ट चला रहा था।"
राम ने कहा, "लेकिन अब बड़े अखबार राफेल सौदे पर वैसा काम नहीं कर रहे हैं, जैसी उनसे उम्मीद थी। टीवी चैनल भी सिर्फ सरकार के लिए प्रोपगेंडा चला रहा हैं।"
उन्होंने कहा, "बोफोर्स का दौर और राफेल का दौर, दोनों के बीच यही सबसे बड़ा अंतर है। उस वक्त खोजी पत्रकारिता अपने शबाब पर थी।"