नरेगा सहायता केंद्र (मनिका) के सदस्यों् ने महुआडाड प्रखंड का दौरा कर पाया कि वहां की एक बड़ी आबादी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। वर्ष के पहले दिन यानी 01 जनवरी को 2019 को बुधनी बिरजिया की भूख से मौत हो गई। टीम के सदस्योंर ने १७ जनवरी २०१९ को महुआ महुआडाड प्रखंड का दौरा किया गया। उस दिन भूखमरी से जूझते अलग-अलग परिवारों में जाकर उनके आर्थिक हालात और सरकार द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का भी जायजा लिया। स्थिति काफी चिंतनीय है। अनाथ बच्चे, बुजुर्ग और विधवा महिलाएं अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन रात जद्दो -जहद कर रहे हैं। एक विस्तृत प्रतिवेदन आप लोगों के अवलोकन के लिए संलग्न किया जा रहा है।
राज्य में खाद्यान्न के अभाव में राज्य के निवासी खासकर दलित आदिवासियों की भ्ाूख से मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। विगत् 1 जनवरी 2019 को जहाँ पूरी दुनिया नये वर्ष के जश्न में डूबी थी, वहीं लातेहार जिले के महुआडाँड़ प्रखण्ड में बुधनी बिरजिया जो आदिम जनजाति समुदाय से तालुक रखती थी, अन्न अभाव के कारण भ्ाूख से उसकी मृत्यु हो गर्इ। भोजन का अधिकार अभियान, झारखण्ड से जुड़े सदस्यों ने इस निमित्त पीड़ित परिवार और ऐसे ही गरीबी और भ्ाुखमरी से ग्रसित अन्य परिवारों से विस्तृत जानकारी ली। प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण से इस आदिवासी बहुल प्रखण्ड में गरीबी और भ्ाुखमरी के गंभीर हालात का स्पष्ट लक्षण परिलक्षित होते हैं। यह प्रतिवेदन ऐसे ही भ्ाूख और गरीबी से जूझ रहे एक-एक परिवार को केन्द्रित कर तैयार की गर्इ है।
केस 1 : मुन्नी देवी और उनके बच्चों को विगत् 1 वर्ष से दाल नसीब नहीं हुई
महुआडाँड़ प्रखण्ड मुख्यालय के करीब में ही मुन्नी देवी पति स्व0 चुन्नू नगेसिया अपने 3 बच्चों के साथ एक झोपड़ीनुमा 1 कमरे के मकान में रहती हैं। उसका परिवार जिस जमीन पर घर में रहते हैं वह भी उनका खुद का नहीं है। बल्कि किसी दूसरे के मकान के पिछवाड़े में रहती हैं। बदले में वह मकान मालिक के घर में जब वो परिवार महुआडाँड़ में आते हैं तो उनके घरों में काम करती हैं इस कारण मकान किराया वगैरह मुन्नी देवी से नहीं लिया जाता है।
मुन्नी देवी के 3 बच्चे हैं, सबसे बड़ा बेटा अनुप नगेसिया (10 वर्ष) है जो स्थानीय सरकारी विद्यालय में वर्ग 2 में पढ़ता है। दूसरा पुत्र अजय नगेसिया (4 वर्ष) और तीसरी बेटी अनुप्रिया (2 वर्ष) है। स्व0 चुन्नू नगेसिया की मृत्यु उस समय हो गर्इ थी जब बेटी अनुप्रिया महज डेढ़ महीने की थी। उसकी मृत्यु के कारणों के संबंध में मुन्नी देवी ने बताया कि दिसंबर-जनवरी का ही अत्यधिक ठण्ड का समय था। अत्यधिक ठण्ड और बुखार के कारण ही उसके पति की मौत हो गर्इ थी। मृत्यु के पहले 6 माह तक वो किसी प्रकार का मेहनत मजदूरी नहीं कर रहे थे। क्योंकि वो बिमारियों के कारण शरीरिक रूप से काफी कमजोर हो गए थे।
मृत्यु के समय ठण्ड व बुखार से पीड़ित थे। उसे इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ले गये थे। वो काफी कमजोर हो गये थे। अस्पताल में जाँच वगैरह करवाये थे। सरकारी कर्मियों द्वारा बताया गया था कि बड़ा वाला मलेरिया है। घर में ही दवार्इ ले रहे थे। लेकिन दवार्इ भी खत्म होग गया था। वे शरीरिक कमजोरी के कारण चलने में असमर्थ थे। इस कारण बाद में उसे अस्पताल नहीं ले जा सके। दवार्इ खत्म होने के तीन दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी थी। उनके जीवित रहते भर में उनका किसी तरह का राशन कार्ड नहीं था और न ही मनरेगा रोजगार कार्ड। जबकि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड था। वो घर के लिए एकमात्र कमाऊ सदस्य थे। पिछले साल जब परिवार के सदस्य 1 सप्ताह तक भ्ाूखे थे। किसी तरह से यह खबर मीडिया में आर्इ तब अभी उन्हें 20 किलोग्राम राशन मिल रहा है लेकिन कार्ड अभी भी हाथ में नहीं मिला है।
पति के मृत्यु के बाद भी राष्ट्रीय पारिवारिक योजना का लाभ नहीं मिल पाया क्योंकि उसके आवेदन के लिए जाति प्रमाण पत्र, स्थानीय प्रमाण पत्र और बीपीएल नंबर माँगा जा रहा था। विधवा पेंशन के लिए फरवरी एवं दिसंबर 2018 में अंचलाधिकारी के पास आवेदन जमा है। किन्तु अधिकारियों की असंवेदनशीलता के कारण पेंशन का लाभ भी मुन्नी देवी को नहीं मिल रहा है।
मृत्यु के 6 माह पूर्व से मुन्नी देवी के पति शारीरिक कमजोरी के कारण मेहनत मजदूरी करना बन्द कर दिये थे। उन दिनों में मुन्नी देवी गर्भवती होने के बावजूद दूसरों के घरों में बर्त्तन वगैरह साफ कर किसी भाँति परिवार का भरण पोषण कर रही थी। काम के बदले कोर्इ मजदूरी निर्धारित नहीं थी। वह जिनके घरों में काम करती थी वो लोग उसे हमेशा ही बासी भात अर्थात् रात का खाना सुबह और सुबह का खाना शाम को मजदूरी के रूप में देते थे। मुन्नी देवी उसी खाना को अपने बच्चों और बीमार पति को खिलाती थी। पिछले वर्ष उसकी भी तबीयत काफी खराब हो गर्इ थी तब एक सप्ताह तक उनके बच्चे व स्वयं भ्ाूखे पेट रहते थे।
राशन कार्ड बनवाने के लिए उसने स्थानीय राशन डीलर बिजू एवं अशोक के पास अलग-अलग 2 बार आवेदन जमा की थी। उसने प्रखण्ड के एम0 ओ0 के पास भी अपनी समस्या को कर्इ बार रखा था। लेकिन एम0 ओ0 ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि राशन कार्ड बनवाने का कोर्इ विकल्प नहीं है।
पीड़ित परिवार के घर से आंगनबाड़ी केन्द्र की दूरी लगभग 400 मी0 की दूरी पर है। वहाँ भी उसने बताया कि यातायात और भीड़-भाड़ वाला क्षेत्र होने के कारण बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्र तक नहीं जा पाते हैं। बेटा अजय को वहाँ तक पहुँचा देने के बाद ही आंगनबाड़ी में खाना खा पाते हैं। फिलहाल पिछले 6 माह से वहाँ भी पोषाहार बन्द है। मुन्नी देवी के कथनानुसार आंगनबाड़ी सेविका ने कहा कि उन लोगों का वेतन बन्द है, इस कारण व पोषाहार भी बाँटना बन्द कर दिये हैं। जब केन्द्र से पैकेट मिलता था तब वो भी सेविका 4 पैकेट के वजाय 3 पैकेट ही वितरण करती थी। जिसे परिवार के सभी सदस्य सुबह और शाम को बनाकर 4 से 5 दिन उसी से गुजारा करते थे।
मुन्नी देवी वर्त्तमान में दूसरे के घरों में घरेलू काम करके अपने 3 बच्चों का लालन पालन कर रही हैं। उसकी औसत आमदनी 30 रूपये प्रतिदिन है। उसके पास मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, बैंक पासबुक है। उसने काफी जद्दोजहद कर उज्वला गैस कनेक्शन प्राप्त कर लिया है। उसके पास रोजगार कार्ड नहीं है। उसे हमेशा एक डर सताता रहता है कहीं उन्हें कुछ हो गया तो उनके तीनों बच्चे अनाथ हो जाएँगे।
केस 2
महुआडाँड़ प्रखण्ड के चटकपुर पंचायत अन्तर्गत लोध गाँव में 75 वर्षाीय बुजुर्ग सुरजन घासी अकेले रहते हैं। वह अत्यंत गरीब हैं। इनके पास आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र एवं बैंक खाता मौजूद है। बावजूद इसके पास राशन कार्ड नहीं बना। सुरजन घासी ने बताया कि जब राशन कार्ड बनने का कार्य हो रहा था, तब उन्होंने स्थानीय राशन डीलर रामप्रवेश को अपने घर के छत में लगे खपडे़ बेचकर 1000/- (एक हजार) रूपये दिये थे। लेकिन इसके बाद भी राशन कार्ड नहीं बना।
सुरजन घासी के पास कुल जमीन लगभग डेढ़ एकड़ है। जिसे वह अधबटार्इ में खेती के लिए दे दिये हैं। इस वर्ष उसे खेती से अपने हिस्से के 30 किलो धान मिले थे। उसे आखरी बार पेंशन राशि का भ्ाुगतान 18 जनवरी 2017 को हुर्इ थी। इसके बाद उसका पेंशन अचानक क्यों बन्द कर दी गर्इ उसे नहीं मालूम। उसे आँखों से बहुत कम दिखार्इ देती है। वो अपने नजदीक के लोगों को भी न ठीक से देख पाते हैं और न ही पहचान पाते हैं।
उनका एक भान्जा लोध के चौकीदार हैं। वो कभी-कभार 1-2 किलो चावल दे जाते हैं। सुरजन का इसी अनाज से गुजारा चल रहा है। इनके रूके हुए पेंशन की शिकायत नरेगा सहायता केन्द्र के माध्यम से मर्इ-जून एवं दिसंबर 2018 में संबंधित राजस्व कर्मचारी जमा किया गया है। लेकिन आवेदन पर सरकारी कर्मचारी किसी प्रकार का प्रशासनिक कार्रवार्इ नहीं कर रहे हैं। राशन कार्ड कार्ड के लिए आवेदन अब तक जमा नहीं लिया जा रहा है।
केस 3
पहली जनवरी 2019 की रात महुआडाँड़ गाँव के अम्बाटोली (तेतर टोली) में रहने वाली 80 वर्षीय बुधनी बिरजिया के लिए आखरी रात साबित हुर्इ। अंतत: नये साल के आगमन के साथ ही गंभीर भ्ाुखमरी और ठंड से बुधनी को हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल गर्इ। आजाद भारत के निष्ठुर प्रशासनिक तंत्र इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है। सिर्फ बुधनी देवी ही नहीं उसके गरीब बेटे और बेटी भी पिछले एक वर्ष के अन्तराल में ही इस दुनिया से चल बसे। लेकिन प्रशासनिक तंत्र ऐसे विलुप्त होती जनजातियों के असमय मौत से सबक लेने के वजाय सामान्य मौत की संज्ञा देकर अपनी जिम्मेवारियों से किनारा कर लेना ही बेहत्तर समझता रहा है। अगर समय रहते यदि सरकार के प्रतिनिधि शेष बचे परिवारों के लिए कोर्इ ठोस कदम नहीं उठाती है तो उनके खानदान में जो परिवार बच गए हैं वो भी अपनी गरीबी व भ्ाूखमरी के कारण मृत्यु के करीब पहुँच जाएँगे।
पिछले वर्ष होली के समय बुधनी के बेटे रोपना बिरजिया की मौत हो गर्इ थी। वो शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो चुके थे। स्व0 रोपना बिरजिया की पत्नी सनकी बिरजिया हैं। फिर 2018 में ही दशहरे के समय बेटी सीता बिरजिया की भी मृत्यु हो गर्इ थी। एक बेटी भगिया बिरजिया हैं जिनकी दिमागी हालत अपने भार्इ की मौत के बाद से ही ठीक नहीं रहता है। बेटी सीता बिरजिया की मृत्यु के बाद से ही बुधनी, सनकी देवी के पास रह रही थी।
आधार कार्ड के अनुसार सनकी बिरजिया की उम्र 40 वर्ष है। उनका बैंक खाता भी है किन्तु राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत् उनका राशन कार्ड नहीं बना है। वह महुआडाँड़ बाजार में लकड़ी वगैरह बेचकर गुजारा करती है। सनकी देवी के 2 बेटे और एक बेटी थे। 2 वर्ष पूर्व उनका एक 20 वर्षीय बेटा सस्तु बिरजिया र्इंट भट्ठे में कमाने के लिए बाहर गये थे। फिर वह उधर ही लापता हो गये उनकी बहन भी गर्इ थी,वह वापस आर्इ लेकिन उधर दोनों अलग-अलग भट्ठों में काम कर रहे थे। इस कारण उसकी बहन को भी नहीं मालूम कि उनके भार्इ का क्या हुआ। अत्यंत गरीब परिवार होने के कारण परिवार के लोगों ने भी ज्यादा खोजबीन नहीं कर पाये। सभी लोग एक किराये के मकान में रहते थे।
इधर बुधनी देवी बरसात में पानी लाने के क्रम में पैर फिसल जाने के कारण दाहिने पैर से चोटिल थी। गरीबी के कारण घर में ही नीजि चिकित्सक से उनका इलाज परिवार वालों ने करवाया था। वह चलने फिरने में भी असमर्थ थी। पैसे के अभाव के कारण उनका भी कोर्इ बेहत्तर इलाज नहीं करा पाये। विकलांगता शिविर में भी उनका विकलांगता प्रमाण पत्र नहीं बन पाया। चलने फिरने में असमर्थ रहने के कारण उनका आधार कार्ड भी नहीं बन पाया था। जिसके कारण न उन्हें विकलांगता पेंशन, न वृद्धावस्था पेंशन और न ही आदिम जनजाति पेंशन योजना का लाभ मिल पाया।
मृत्यु से 10 दिन पूर्व बेटी भगिया कुंअर ने अपनी माँ बुधनी के लिए 5-5 किलो चावल दो दिन पहुँचा दी थीं। सनकी का दूसरा बेटा बसंत बिरजिया और उसकी पत्नी गुड्डी बिरजिया साथ में रहते हैं। सामान्य दिनों में भी बुधनी जिनके साथ रहती थी उनके घर के सभी सदस्य सिर्फ चावल का भात बनाकर ही माड़-भात खाकर गुजारा करते थे। सनकी बिरजिया की एक पोती अर्थात गुड्डी देवी की एक 2 माह की बेटी भी है। आंगनबाड़ी केन्द्र, दीपाटोली में उसका पंजीयन भी किया था। लेकिन विगत् 6 माह से पोषाहार बन्द रहने के कारण वहाँ से भी किसी प्रकार का आहार नहीं मिल पा रहा था। बच्ची भी काफी कमजोर थी। उसका वजन महज 1.50 कि0 ग्रा0 था। गुड्डी और बसन्त दोनों ने ही दूसरी बार दाम्पत्य जीवन विगत् 1 साल से साथ रहने के साथ की है। इस कारण उनका राष्ट्रीय मातृत्व वन्दना योजना का फार्म भी नहीं भरा गया है।
बुधनी की मृत्यु के वक्त जब नरेगा सहायता केन्द्र, महुआडाँड़ के महिला कार्यकत्तागण व अन्य लोग मृतक के घर गये तो वहाँ उन्होंने देखा कि घर में सिर्फ एक खाना बनाने का एक बर्त्तन (डेगची) और एक थाली पड़ा था। डेगची में 4 दिनों का सूखा खाना पड़ा हुआ था। एक थाली में भी थोड़ा सूखा खाना पड़ा हुआ था। 3-4 दिनों से घर का चूल्हा भी नहीं जला था। मृतक के शरीर में सिर्फ एक कम्बल पड़ा हुआ था। नीचे 2-3 जूट के बोरे थे जिसपर शव पड़ी हुर्इ थी। मृतक के घर के बगल में एक मुस्लिम विधवा परिवार रहता है। वह भी अपने इलाज के लिए राँची अपनी बीमारी के इलाज के लिए गर्इ हुर्इ थी। अक्सर वह बुधनी को अपने हिस्से में से खाना वगैरह दे दिया करती थी।
यहाँ यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि महुआडाँड़ और आसपास में किसी की मृत्यु हो जाने पर कब्र खोदवाने, कफन, बाँस एवं सामुदायिक नेग मिटाने का न्यूनतम खर्च 5 हजार रूपये है। पोता बसन्त के पास दाह संस्कार और नेग मिटाने के लिए पैसे नहीं थे। इसी सामाजिक डर से वह बुधनी के मरने की खबर किसी को बताने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। 2 जनवरी की शाम को बसन्त की पत्नी गुड्डी देवी अपने 2 माह की बच्ची को लेकर दीपाटोली यह सोचकर चली गर्इ कि कहीं बच्ची को कोर्इ अपशगुन न लग जाए। तब बसन्त ने साहस जुटाकर धीरे से बुधनी की बेटी भगिया कुंअर को मृत्यु की जानकारी दी। फिर 3 जनवरी की सुबह बगल में रहने वाले मुस्लिम परिवार की महिला ने भी बुधनी के मरने की खबर प्रेस से जुड़े लोगों को बतार्इ।
बसन्त एवं भगिया बिरजिया दोनों परिवारों के लिए कोर्इ अपना घर नहीं है और न ही जमीन है। नतीजतन सरकारी योजनाओ का लाभ भी सामान्यत: नहीं मिल पाता है। दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में अत्यधिक ठण्ढ बढ़ जाने के कारण दोनों किसी प्रकार की मेहनत मजदूरी में नहीं कर पा रहे थे। घटना की सूचना स्थानीय प्रशासन को मिलने के बाद अंचलाधिकारी और थाना प्रभारी घटना स्थल पर पहुँचे और पीड़ित परिवार को 2000 रूपये नगद एवं 45 किलो अनाज मुहैया कराया गया है। दफन क्रिया के बाद बाकी सदस्यों को 3 कम्बल दिया गया है। इसके पूर्व इस परिवार के किसी सदस्य को कम्बल भी नहीं मिल पाया था। मृत्य से पूर्व इस परिवार ने राशन कार्ड के लिए 3 बार एवं बाद में 1 बार आवेदन प्रशासन को आवेदन सौंपा है। लेकिन संवेदनी विहीन डीलर को ये गैर जिम्मेदाराना बयान कि लोग कहाँ- कहाँ से आते रहेंगे हम उनका राशन कार्ड ही बनावाते रहेंगे।
इस प्रखण्ड में अब तक भी आदिम जनजाति परिवारों को डाकिया योजना के तहत् पैकेट में खाद्यान्न नहीं मिलता है। रहने का कोर्इ नियत ठिकाना नहीं रहने के कारण गुड्डी देवी का खाता संख्या एवं आधार कार्ड खो गया है। सनकी देवी को पेंशन मिलता है। लेकिन उनका खाता ग्रामीण बैंक के महुआडाँड़ शाखा में है। इस शाखा में ग्राहकों को परेशान करने का एक अलग ही बेमतलब का तरीका शाखा प्रबंधक द्वारा अपनाया गया है। जिसमें खातेधारकों को अपने पैसे की निकासी के लिए निकासी फार्म पर स्थानीय मुखिया या ग्राम प्रधान से हस्ताक्षर कराना अनिवार्य कर दिया गया है। घटना के पूर्व भी सनकी देवी काफी दिनों तक निकासी फार्म में हस्ताक्षर कराने के लिए मुखिया को खोजती रही। लेकिन उनसे नहीं मिल पार्इ। घटना प्रकाशित होने के बाद उसने अपने खाते से पेंशन के 1200 रूपये निकाले। वर्त्तमान में महुआडाँड़ प्रखण्ड मुख्यालय में सरकार के स्तर से आधार कार्ड बनाने के कार्य बन्द कर दिया गया है। नीजि ऑपरेटरों के द्वारा 200 रूपये लेकर आधार कार्ड बनाया जा रहा है। यह राशि आम गरीब परिवारों के लिए काफी ज्यादा है।
केस 4
लातेहार जिले के महुआडाँड़ प्रखण्ड मुख्यालय के बिल्कुल करीब महावीर मन्दिर के पास गृह संख्या 169 में रहती हैं, 58 वर्षीय विधवा महिला मूलो देवी पति स्व0 शंकर बड़ार्इक। ये महिला शरीरिक रूप से काफी कमजोर हैं। इनका अपना कोर्इ घर या आशियाना नहीं है। ये दूसरों के घर में किराये की तरह रहती हैं। किराया देने के बदले ये घर मालिक का घरेलू काम कर देती हैं। इनका पी0 एच0 कार्ड बना हुआ है, जिसमें मात्र 5 किलो राशन मिलता है, जो कि महीने भर के खाने के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है।
पेंशन के लिए मूलो देवी ने अपने स्थानीय वार्ड के पास 2 बार आवेदन जमा कर चुकी हैं। पुन: दिसंबर 2018 में नरेगा सहायता केन्द्र के माध्यम से राजस्व कर्मचारी के पास आवेदन जमा किया गया है। जो कि अब तक प्रशासनिक स्वीकृति के लिए लंबित है।
केस 5
लातेहार जिले के महुआडाँड़ प्रखण्ड मुख्यालय के दीपाटोली में 68 वर्षीय बुगुर्ग आदिवासी महिला चरनी नगेसिया रहती हैं। ये आर्थिक रूप से काफी गरीब हैं। ऊपर से 2 नाबालिग अनाथ पोतियों के लालन पालन का बोझ इन्हीं के जिम्मे हैं। क्योंकि उन बच्चों के माता-पिता 2010 एवं 2011 में ही गुजर गये। तब से लेकर अब तक वो उन 3 अनाथ बच्चों में से 2 बच्चियों (मंजू नगेसिया 9 वर्ष एवं संगीता नगेसिया 12 वर्ष) को किसी तरीके से पाल रही हैं। इनका 2 कमरों वाला कच्चा मकान है, जिसका छत एस्बेस्टस का है, वह भी बरसात के समय में कमरे में ही पानी चूता है।
चरनी नगेसिया का पी0 एच0 राशन कार्ड है। जिसमें परिवार के 3 सदस्यों का नाम दर्ज है। लेकिन पी0डी0एस0 से खाद्यान्न की कालाबाजारी करने वाले डीलर ऐसे निर्धन परिवारों के राशन की चोरी करने से भी नहीं हिचकते। मंजू नगेसिया का नाम आधार कार्ड से लिंक नहीं होने का बहाना बनाकर डीलर हमेशा 10 किलो ही राशन मुहैया कराता रहा है। जबकि राशन कार्ड में 15 किलो राशन की मात्रा नियमित रूप से चढ़ाता रहा है। अभी जब इस महीने चरनी नगेसिया के निर्धनता का मामला मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आया तब उसे 15 किलो राशन दिया गया है।
मंजू नगेसिया, सुनिता नगेसिया और संगीता नगेसिया ये कुल 3 अनाथ बच्चियाँ हैं, जिनकी माँ स्व0 मिलियानी नगेसिया की मृत्यु 2010 में हो गर्इ थी। ठीक उसके दूसरे ही साल 2011 में पिता स्व0 कृष्णा नगेसिया अपने 3 अबोध बालिकाओं को अनाथ छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गये। संगीता 7वीं एवं मंजू 3रा क्लास में स्थानीय सरकारी विद्यालय में पढ़ार्इ कर रहे हैं। सुनिता अपने माता-पिता के जीवित रहते ही चचेरी फुआ किरण के पास रहकर पढ़ार्इ कर रही हैं। वे 2016 में इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास कर चुकी हैं। वह आगे अपनी पढ़ार्इ जारी रखना चाहती है लेकिन उनकी पढ़ार्इ में आर्थिक निर्धनता बाधक बन रही है।
वर्त्तमान में चरनी नगेसिया की तबीयत खराब है। उसे काफी दिनों से खाँसी की बीमारी है। स्थानीय सरकारी अस्पताल एवं दवा दुकान से दवार्इयाँ लेने के बाद भी खाँसी की बीमारी ठीक नहीं हो रहा है। अब तो पैसे के अभाव के कारण दवा भी नहीं ले पा रहे हैं। आयुष्मान भारत वाला दस्तावेज भी इनके पास है। लेकिन इसके इस्तेमाल का तरीका इनको मालूम नहीं है। आखरी बार पेंशन पिछले वर्ष दशहरे के समय 600 रूपये मिली थी। 16 जनवरी 2019 को बैंक गये थे। लेकिन खाते में पेंशन की राशि नहीं आर्इ है। बीमारी के कारण पिछले 2 सप्ताह से किसी प्रकार की मेहनत मजदूरी भी नहीं कर पा रहे हैं। सामान्य दिनों में वह दूसरों के घरों में घरेलू काम जैसे आंगन की लिपार्इ, जहां नजदीक में किसी का घर बन रहा हो तो वहाँ बालू चालना जैसे कार्य करके गुजारा करती हैं। वार्ड सदस्य इस परिवार का काफी मदद करती हैं। उन्हीं के मार्फत चरनी को कम्बल मिला था। पड़ोस के लोग भी इनकी मदद करते हैं। चरने को हमेशा ये डर सताते रहता है कि उनकी मृत्यु हो जाने पर उन अनाथ बच्चियों का क्या होगा?