हाथी की सत्ता : सत्ता का हाथी

:: हेमन्‍त (वरिष्‍ठ पत्रकार):

वह एक गणराज्य था। पहले वहां राजतंत्र था। लम्बे संघर्ष के बाद वहां गणतंत्र स्थापित हुआ। नये राजा ने सूबे के विकास के लिए राज-काज की नयी प्लानिंग की। 
राजा के पास एक हाथी था। उसने अफसरों की अपनी फौज में से पांच को चुना ; उनको बुलाया और हाथी सौंपते हुए आज्ञा दी –“इस हाथी को गांव ले जाइए। इसकी पूरी तरह देखभाल कीजिए। हाथी मरना नहीं चाहिए और मर जाए तो इसकी सूचना मुझे तुरंत दी जाए। हाथी के मरने की खबर लेकर जो आएगा उसे मौत की सजा दी जाएगी।”

 

चुनाव-2019 : मेगा शो : “यह प्राचीन लोक-कथा है। यह सिर्फ हमारे देश में नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग हर अविकसित, विकसित और विकासशील देश में सुनी-कही जाती है ; पढ़ी और पढाई जाती है। एक बार कुछ अंधों को एक हाथी मिल गया। उन्होंने हाथी को छूकर, टटोल-टटोल कर महसूस किया और हाथी के बारे में अपनी अनुभूति बताई। हाथी की टांगों को पकड़ने वाले ने हाथी को किसी खम्भे या पेड़ के तने की भांति बताया। पूंछ पकड़ने वाले ने उसे रस्सी जैसा बताया। सूँड़ पकड़ने वाले ने उसे सांप जैसा बताया। कान पकड़ने वाले ने हाथी को सूप जैसा बताया। दांत पकडने वाले ने भाले जैसा, तो हाथी के पेट को छूने वाले ने मशक या दीवार जैसा बताया...।” 

कहानी पूरी हुई भी नहीं कि ‘क्लास’ में हंगामा मच गया। पढ़ने-लिखने वाले हिरन, सियार, गधे, घोड़े जैसे युवाओं में से जवान हाथी किस्म का एक युवक उठा और बोला – “यह कहानी नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए गढ़ी गयी है। बरसों से यह सिलसिला चल रहा है। अब हम यह चलने नहीं देंगे – अपने दिव्यांग लोगों का अपमान हम बर्दाश्त नहीं करेंगे!” 

खरगोशनुमा शिक्षक कुछ देर तक हतप्रभ-सा खड़ा रह गया। डरा-सहमा-सा। उसने अपनी कुर्सी की पीठ को दोनों हाथों से थामा। तब गले में अटकी सांस ऊपर-नीचे हुई। उसने हकलाते हुए कहा – “डिअर स्टूडेंट्स, आपको क्यों लगता है कि यह कहानी नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए गढ़ी गयी है? यह कथा तो केवल एक प्रचलित कहावत के अर्थ को समझाने के लिए गढ़ी गयी है। ‘अंधों का हाथी’ लोकोक्ति है - कहावत है। इसका अर्थ है - किसी विषय का पूर्ण ज्ञान का न होना। हाल में हमारी सरकार ने एक ‘भारत कोश’ प्रकाशित किया है। उसमें कहा गया है कि इसमें नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई उद्देश्य नहीं है।“

अचानक एक हिरन सरीखा युवक उठा। कुलांचे मारने के लहजे में बोला - “ये सब बकवास है! आप टीचर हैं कि फटीचर? आपकी कहानी का पहला सन्टेंस है - एक बार कुछ अंधों को एक हाथी मिल गया। अंधों को हाथी मिल गया? इसका क्या माने?”     

उसको देख शिक्षक को लगा, यह कतई इस कक्षा का स्टूडेंट नहीं हो सकता। इसलिए कुछ रौब में आकर बोला - 
“इसका अर्थ यह हुआ कि हाथी के बारे में सही जानकारी किसी को भी न हो सकी।”
“यही तो! अंधे जब आंख के अंधे थे, तो उन्हें जो मिला वह हाथी था यह कैसे जान लिया? उन्हें ऐसा हाथी कैसे मिल गया, जिसने खुद को टटोलने का चांस दे दिया? तब तो, वह काठ का हाथी था या खुद अंधा था! है कि नहीं?”
कक्षा में हंसी के फौव्वारे छूटने लगे, तालियां बजने लगीं। टेंशन ढीला होते देख शिक्षक मुस्कराने लगा। शोर थमा, तो वह खरगोश की चाल में हिरननुमा युवक के नजदीक जाकर बोला – “डिअर स्टूडेंट, आप इंटेलिजेंट लगते हैं। उम्मीद है, आप फिक्शन और फैक्ट में फर्क समझ सकते हैं। ‘अंधों का हाथी’ फिक्शन है, माने कि कल्पना है। और इस कथा का मैसेज यह है कि थोड़ा-सा ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को सम्पूर्ण ज्ञानी समझना मूर्खताहै।”
“अगर यह कल्पना है, तो सवाल उठता है कि यह कथा किसने गढ़ी? किसी नेत्रहीन ने तो नहीं गढ़ी होगी? किसी आँखवाले ने ही गढ़ी होगी।तो यह कहानी उसने किसके लिए गढ़ी? नेत्रहीनों के लिए या नेत्र होते हुए भी जो दृष्टिहीन हैं उनके लिए?” 
“यह उनके लिए है जो नेत्र होते हुए भी दृष्टिहीन हैं।”
“तब तो ये सवाल आज और इम्पोर्टेंट हो जाता है कि लिखनावाला कौन था? क्योंकि उससे ही समझ में आयेगा कि उसकी कहानी का हाथी कौन हाथी था? जंगल का हाथी था? सर्कस का हाथी था या कि मेले-त्यौहार में ले जाने वाला हाथी? और लास्ट बट नॉट लीस्ट, सवाल ये है कि आप हमें यह कहानी क्यों सुना रहे हैं? यह काल्पनिक हाथी की सत्ता का विवरण है या वर्तमान सत्ता के हाथी का बखान?” 

शिक्षक की बोलती बंद! इलेक्शन का टाइम है। वह क्या कहे? उसने अपने पुरखों को याद किया और आंख बंद कर दार्शनिक की मुद्रा धारण की! पल भर में उसके ज्ञान-चक्षु खुल गए और उसके मुंह से अमृत वचन झरने लगे – “आपके सारे सवाल वैलिड हैं। ये सब सवाल व्यापक शोध-अध्ययन की मांग करते हैं। इसीलिए तो हमारी सरकार ने पॉलिटिकल लेवल पर कई फैसले किये हैं। पिछले पांच साल में सरकार ने देश के कई विश्वद्यालयों में इस तरह के विषय पर वैज्ञानिक शोध-अध्ययन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए काफी आर्थिक सहयोग किया है। इसका ताजा प्रमाण है - भारतीय विज्ञान कांग्रेस (इंडियन साइंस कांग्रेस - आईएससी)।पांच साल पहले के अधिवेशन में हमारे पीएम जी ने ‘गणेश जी’ के शरीर पर लगे हाथी के सिर को प्लास्टिक सर्जरी की अद्भुत मिसाल के रूप में प्रस्तुत किया और दुनिया भर में फैले भारतीय वैज्ञानिकों को शोध-अध्ययन की नयी राह दिखाई। उसके बाद ही तो हाल में - आईएससी-2019 में - हमारे प्रोफ़ेसर वैज्ञानिकों ने एक से एक नायाब रिसर्च पेपर्स पेश किये थे! जैसे, कौरव टेस्ट ट्यूब बेबी थे। रावण के पास 24 प्रकार के विमान थे। राम के पास गाइडेड मिसाइलें थीं! ब्रह्मा को डायनासोर के बारे में बहुत पहले मालूम था। आदि-आदि। आप आईएससीअधिवेशन के बारे में मीडिया में देख-पढ़ चुके होंगे। हमारा यूनिवर्सिटी-कॉलेज सबकी पूरी रिपोर्ट मंगा रहा है। आशा है, जल्दी ही आपको रिपोर्ट सप्लाई करने में हम कामयाब होंगे। अगली पारी में सरकार हमें भी उस तरह के शोध-अध्ययन की फेसिलिटी जरूर मुहैय्या कराएगी...।” शिक्षक की बातें सुन कुछ विद्यार्थी ठहाके लगाने में मस्त हो गए और कुछ अपना माथा खुजलाने में व्यस्त हो गए! इसे शुभ शकुन मान शिक्षक क्लास से खिसक गया!

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पीएमओ का फैसला : प्रमोशन की फांसी 

वह एक गणराज्य था। पहले वहां राजतंत्र था। लम्बे संघर्ष के बाद वहां गणतंत्र स्थापित हुआ। नये राजा ने सूबे के विकास के लिए राज-काज की नयी प्लानिंग की। 
राजा के पास एक हाथी था। उसने अफसरों की अपनी फौज में से पांच को चुना ; उनको बुलाया और हाथी सौंपते हुए आज्ञा दी –“इस हाथी को गांव ले जाइए। इसकी पूरी तरह देखभाल कीजिए। हाथी मरना नहीं चाहिए और मर जाए तो इसकी सूचना मुझे तुरंत दी जाए। हाथी के मरने की खबर लेकर जो आएगा उसे मौत की सजा दी जाएगी।”

राजा की आज्ञा सुनकर अफसरों के रोंगटे खड़े हो गए। भारी-भरकम हाथी देखने से तो लगता था कि स्वस्थ है। लेकिन राजा की बातों से लग रहा था कि वह चंद दिनों का मेहमान है। उसके मरते ही राजा को सूचना देनी होगी! जो सूचना देगा वह भी मारा जाएगा! यह कैसी आज्ञा? 

वैसे से, सब अफसर प्रशिक्षित थे –पूर्व के राजतंत्र में उन्होंने ‘भोगने-पचाने’ का अच्छा-खासा अनुभव प्राप्त किया हुआ था। फिर भी नये राजा के नये आदेश से चिंतित हुए। आज्ञा न मानने से उनके प्राण तत्काल संकट में पड़ सकते हैं। सो सबने इशारे-इशारे में फैसला किया - हाथी को गांव ले चलो। फिर देखा जाएगा। 

वे राजधानी से निकल पड़े।एक हाथी के पांच महावत की तरह वे पैदल चल पड़े। लम्बी यात्रा के बाद वे हाथी के साथ एक गांव पहुंचे। घोड़े से जिस गांव तक दो दिन में पहुंच सकते थे - वहां पहुंचे सात दिन में! 

यात्रा के दौरान वे समझ गए कि हाथी बीमार है। सो उन्होंने रास्ते में ही अपनी सर्वसम्मत भावी रणनीति तय की। गांव पहुंचते ही ढिंढोरा पिटवाकर लोगों को इकट्ठा किया। तय स्ट्रैटजी के अनुसार पाँचों ने बारी-बारी से गांव के लोगों को कुछ नम्र, कुछ दबंग और कुछ आदेशात्मक लहजे में कहा – “इस हाथी का नाम है ‘विकास।’ राजा ने गणराज्य में जनता के विकास के लिए नयी प्लानिंग की है। हमें उस प्लानिंग के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपते हुए इस हाथी को गांव ले जाने को कहा है और आदेश दिया है कि इसके मरते ही उनको तुरंत सूचना दी जाए। राजा ने यह भी कहा है कि जो व्यक्ति मरने की खबर लेकर आएगा, उसे मौत की सजा दी जाएगी। इस तरह गांव का कोई न कोई आदमी जरूर मारा जाएगा। आप लोग इस समस्या का कोई हल निकालें। सवाल दो हैं। पहला, सूचना देने कौन जाएगा? और दूसरा हम किस तरह उस एक आदमी की जान बचा सकते हैं? इन दोनों समस्याओं का हल खोजिए। हम अफसर नहीं जानते कि राजा की इस प्लानिंग का क्या मतलब है और क्या मकसद है? आप जनता ने ही राजतंत्र को खत्म कर गणतंत्र की स्थापना की और नया राजा चुना। हम तो सत्ता से बंधे हैं। किसी भी हालत में सिंहासन के आदेश का पालन करना है। इसलिए हाथी को आप तक ले आये हैं।” 

ये बातें सुनकर गांव के लोग चिंता में डूबे। आपस में कानाफूसी होने लगी। मरता क्या न करता! अंततः निर्णय किया कि हाथी की खूब सेवा-टहल की जाए। उसको खूब खिलाया-पिलाया जाए,ताकि हाथी जल्दी नहीं मरे। इस बीच यह मालूम किया जाए कि आखिर राजा ने इस तरह का आदेश जारी क्यों किया? हो सके तो इस आदेश को खारिज कराने का उपाय किया जाए। अगर इसके पहले हाथी मर गया, तो जिसके द्वार पर मरेगा वही राजा को खबर देने जाएगा।

गांव के लोग रुटीन बांधकर हाथी को तरह-तरह की चीजें खिलाने के काम में प्राणपण लग गए। कोई गन्ने लाता, कोई गुड़। कोई सादा दाल-भात खिलाता, तो कोई हरे-हरे पात। हाथी की खूब सेवा होने लगी। हाथी के साथ अफसरों को भी मुफ्त का ‘माल’ उड़ाने का मौका मिल गया। हाथी तो हाथी था, वह भी मरणासन्न। उसके स्वास्थ्य में क्या फर्क पड़ता? अलबत्ता, अफसर हाथी जैसे मोटाने लगे। 
‘एक न एक दिन हाथी मरेगा, लेकिन हमारे घर के द्वार पर मर गया तो?’यह डर गांव के घर-घर में पैठ गया। इसलिए लोग तय क्रम के अनुसार हाथी को अच्छे से अच्छा माल खिलाते हुए भी अपने द्वार से ज्ल्द से जल्द दूर भगाने के नये-नये जतन करते। सबसे आसान और ‘कॉमन’ उपाय था  - पांचों अफसरों को खुश रखने का इंतजाम। हाथी को अपने घर के दरवाजे से जल्दी से जल्दी भगाने के लिए गांव का हर परिवार किसी न किसी अफसर को पटाकर उसकी ‘पंसद और फरमाइश’ के अनुरूप तोहफा देता। सो मुटाते अफसर मुफ्त में मालामाल भी होने लगे। 

तब भी जल्द ही एक दिन बीमार हाथी एक के घर से दूसरे घर ले जाते समय गांव के ‘चौगान’ में मर गया। तब सवाल उठा कि इसकी सूचना देने कौन जाएगा? इसके लिए अफसरों में से किसी एक को जाना होगा! सो अफसरों ने ‘क्लोज डोर मीटिंग’ की और फटाफट उपाय निकाला कि हाथी किसी के दरवाजे पर न सही, गांव में मरा। इसलिए इसकी सूचना देने की पहली जिम्मेदारी गांव के लोगों की है। वे खुद अपने बीच से एक आदमी चुनें।

अफसरों ने फरमान जारी किया। ढिंढोरा पिटवाया। गांव के लोग फिर जमा हुए। अफसरों ने कहा - भाइयो, हाथी मर चुका है। राजा को खबर नहीं दी गयी, तो पूरे गांव पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ेगा। गांव की रक्षा के लिए आपमें से किसी को कुर्बानी देनी होगी। गांव में कौन ऐसा वीर है, जो अपना बलिदान देकर गांव की रक्षा करे? 

वह गरीब-पिछड़ा गांव था। सो वहां ऐसे वीरों की कमी न थी। कई हाथ उठे - हम बलिदान देंगे। 

गांव के बड़े-बूढे़ जोश में आए। उन्होंने विमर्श कर सुझाव दिया कि बलिदान के लिए तत्पर युवकों में से सर्वोत्तम वीर को चुनना चाहिए ताकि गांव का नाम पूरे देश में मशहूर हो। लेकिन इसका पैमाना क्या हो? वे उलझन में पड़ गए। यह देख पांचों अफसरों ने ‘वीर’ के चयन का कमान अपने हाथ में लिया। पंच परमेश्वर की तरह उन्होंने चुनने की अपनी प्रशासकीय कसौटियों के आधार पर एक युवक को चुन लिया। 
वह युवक राजदबार पहुंचा। राजा को साष्टांग प्रणाम किया। फिर हाथ जोड़कर बोला - ‘श्रीमान, मैं गांव का रहने वाला हूं। श्रीमान की आज्ञा हो तो एक समाचार देना चाहता हूं।’ 
राजा ने युवक को घूरकर देखते हुए कहा - ‘कहो।’

‘श्रीमान, आपने जो हाथी हमारे गांव में भेजा था, वह सो रहा है। नचलता है, न उठता है, न कान हिलाता है और न ही सूंड उठाता है। न कुछ खाता है और न ही कुछ पीता है।’

राजा समझ गया कि हाथी मर चुका है। युवक ने खबर भी पहुंचा दी, मगर दंड से बचने के लिए ‘हाथी मर गया’ नहीं कहा। 

राजा ने कुछ सोचते हुए कहा - ‘तुम जा सकते हो। जब जरूरत होगी, तुम्हें बुलाऊंगा। जाने के पहले इतना बताओ, हाथी के साथ गये पांच अफसर कहां हैं?’ 

युवक ने कहा - ‘हजूर, सब अफसर हमारे गांव में हैं।’ 

‘कैसे हैं?’

‘ठीक हैं। हम गरीब गांववासियों के लिए जैसा आपका हाथी, वैसे ही आपके अफसर। हम भरसक कोशिश कर रहे हैं। बाकी प्रभु की कृपा। हाथी का स्वास्थ्य स्थिर हो गया, लेकिन अफसरों का स्वास्थ्य हाथियों जैसा ही तेजी से बढ़ रहा है।’

तुमको यहां किस अफसर ने भेजा? हाथी की खबर इस तरह देने की सीख किस अफसर ने दी?’  
 
युवक ने कहा - ‘पांचों ने मिलकर मुझे चुना। लगता है, उनको बलि का बकरा चुनने का खासा अनुभव है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि हाथी की स्थिति की सूचना देकर मैं अपना सर्वस्व आपको समर्पित कर दूं। बस। इसके सिवा कुछ नहीं कहा।’ 

राजा समझ गया कि उसके अफसर सिर्फ बुद्धिमान नहीं, बल्कि धूर्तता की हद तक चतुर हैं। उसने कहा – ‘तुम बुद्धिमान हो। इसलिए अपने लिए कुछ चाहो तो मांग सकते हो।’
 
युवक ने कहा - ‘श्रीमान, माफ करें तो एक बात कहूं। आपने हाथी भेजा। जिंदा हाथी लाख का। मरे तो सवा लाख का। इसलिए हम गांव वालों ने उसकी देखभाल का काम मंजूर किया। लेकिन हाथी के साथ आपने जिनको भेजा, उनको हाथी जैसा पालना हम गांव वालों के बूते के बाहर है। इस काम से मुक्त करें तो हमारी जान बचेगी, हम लाखो पाएंगे।’

राजा मुस्कराया, लेकिन तुरंत गंभीर होकर बोला - ‘जाओ, देखता हूं। फिलहाल जो अफसर तुम्हारे गांव में हैं, उनसे सिर्फ इतना कहना कि मैंने उनको जल्द से जल्द राजदरबार पहुंचने का आदेश दिया है। उनसे और कुछ नहीं कहना। मैंने जो पूछा और तुमने जो कहा वह भी नहीं। समझे? नहीं तो तुम्हारी जान जाएगी।’

युवक गांव लौटा। उसे जिंदा देख गांववालों में हड़कंप मच गया, अफसरों के हलक सूख गये। युवक ने अपने जिंदा लौटने का रहस्य नहीं खोला। सिर्फ राजा का आदेश कह सुनाया। यह सुनकर अफसरों के होश उड़ गये! 

वे गांव से राजधानी के लिए रवाना हुए। लेकिन रास्ते में वे अफसर कभी अकेले तो कभी आपस में एक दूसरे का माथा ठोकते रहे - ‘अब क्या होगा? राजा ने हमें सौंपे काम की प्रगति या उपलब्धि के बारे में कोई कमेंट किये बिना क्यों बुलाया? शाबाशी देगा? या कि गोली मारेगा?’

वे करीब दस दिन बाद राजधानी पहुंचे। सीमा पर का नजारा देख स्तब्ध रह गए! वहां राज-दरबार के नवरत्न उपस्थित थे। भारी पुलिसिया बंदोबस्त था। यह देख उनके हलक सूख गये।उनको लगा कि सीमा पर ही फांसी का इंतजाम किया गया है! वे गश खा कर गिरने को हुए, लेकिन तब तक कई लोग उनकी ओर दौड़े आये और उन्हें कन्धों पर उठा लिया। सब राजा के जिंदाबाद का नारा लगाने लगे। अफसरों को तब होश हुआ, जब उन्होंने सुना कि राजा ने उनकी योग्यता और कार्य-क्षमता से प्रसन्न हो कर उनको ‘प्रमोशन’ देने का फैसला किया है – उन्हें अपने प्लानिंग एंड मॉनिटरिंग ऑफिस (पीएमओ) में ‘ओएसडी’ नियुक्त किया है। ओएसडी माने – ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी! 

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