पटना: शराबबंदी कानून पर चौतरफा हमले में घिरी नीतीश सरकार ने अब इसका जवाब देने का मन बना लिया है. सरकार ने जनमत के सहारे इसका जवाब देने का निश्चय किया है. बिहार सरकार मधनिषेध नीति के प्रभाव का अब अध्ययन कराएगी. साल 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद सामाजिक और आर्थिक बदलाव का अध्ययन किए जाने का सरकार ने निश्चय किया है. दरअसल इसके तहत जनता खुद शराबबंदी कानून लागू होने के बाद आए बदलाव की हालत बयां करेगी. इसके लिए शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक लोगों से बातचीत का प्रस्ताव तैयार किया गया है.
मधनिषेध उत्पाद और निबंधन विभाग के आयुक्त कार्तिकेय धनजी की मानें तो राजधानी स्थित चाणक्य राष्ट्रीय विधि संस्थान यानी सीएनएलयू के पंचायती राजपीठ को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गई है. इसके लिए तकरीबन 30 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया गया है.
इसके अलावा एएन सिन्हा संस्थान भी अध्ययन रिपोर्ट बनाने में अपनी मदद करेगा. इसके लिए राज्य के अलग-अलग जिलों में लोगों के बीच जाकर टीम सर्वे करेगी. सर्वे रिपोर्ट डेढ़ महीने बाद 28 फरवरी को आने की संभावना जताई जा रही है. इसके पहले बिहार सरकार ने साल 2016 में भी शराबबंदी कानून लागू किए जाने के 6 महीने बाद भी सर्वे कराने का फैसला किया था. उस समय आद्री संस्थान द्वारा सर्वे किया गया था. इसके लिए पूरे बिहार को 5 जोन में बांटकर सर्वे किया गया था.
जानें किस आधार पर होगा सर्वे
बता दें, शराबबंदी कानून लागू होने के बाद सामाजिक क्षेत्र और आर्थिक क्षेत्र के अलावा स्वास्थ्य के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आया है. खासकर महिलाओं के जीवन में इसका विशेष तौर पर सकारात्मक असर देखने को मिला है. लेकिन, हाल के महीनों में जहरीली शराब से मौत की सूचनाओं के बाद विपक्ष से ज्यादा सत्ता पक्ष खासकर सहयोगी दलों ने सरकार की जिस तरीके से घेराबंदी की है उसको देखते हुए जनमत एक कारगर हथियार हो सकता है.
सर्वे टीम लोगों की जीवन शैली में आए बदलाव, पारिवारिक खर्च में हुए बदलाव, महिलाओं की स्थिति में सुधार, खानपान के तरीके में बदलाव, स्वास्थ्य पर हुए खर्च के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में बदलावों पर काम करेगी. इसके अलावा महिला हिंसा सड़क दुर्घटना जैसी चीजों पर भी सर्वे किया जाएगा.