सीबीआई में बड़ा फेरबदल, अस्थाना की जांच कर रहे अधिकारी स्थानांतरित, निदेशक आलोक वर्मा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के साथ ही एजेंसी के 13 अन्य अधिकारियों का भी तबादला कर दिया है। इस कदम के साथ केंद्र ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी के मामले की जांच कर रहे लगभग सभी अधिकारियों को हटा दिया है। सूत्रों के अनुसार, जिन 13 सीबीआई अधिकारियों का तबादला किया गया है, उसमें अस्थाना के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहे पुलिस उपाधीक्षक अजय कुमार बस्सी भी शामिल हैं।

बस्सी को 'जनहित' में तत्काल प्रभाव से पोर्ट ब्लेयर स्थांतरित कर दिया गया है।

अस्थाना के विरुद्ध जांच कर रहे सीबीआई के एसी-3 इकाई के सुपरवाइजरी पुलिस अधीक्षक एस.एस. गुरम को भी तत्काल प्रभाव से मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया है।

संयुक्त निदेशक(पॉलिसी) अरुण कुमार शर्मा से भ्रष्टाचार रोधी प्रमुख का प्रभार छीन लिया गया है और उन्हें अन्यत्र तैनात कर दिया गया है।

अस्थाना के विरुद्ध जांच की अगुवाई कर रहे उपमहानिरीक्षक मनोज सिन्हा को नागपुर स्थानांतरित कर दिया गया है।

सूत्रों के अनुसार, पुलिस अधीक्षक सतीश डागर, उपमहानिरीक्षक तरुण गौबा और संयुक्त निदेशक वी. मुरुगेसन अब अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी की जांच को देखेंगे।

 

सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे

केंद्र सरकार ने बुधवार को सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई के बीच जांच एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा को एक तरह से बर्खास्त कर दिया और उन्हें छुट्टी पर भेज दिया। सरकार का यह फैसला विपक्ष की कड़ी आलोचना के बीच आया है। विपक्ष ने इसे संस्थान की स्वतंत्रता में अंतिम कील ठोकने जैसा बताया है।

आलोक वर्मा ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। न्यायालय शुक्रवार को वर्मा की याचिका पर सुनवाई करेगा।

आलोक वर्मा का केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) प्रमुख के तौर पर कार्यकाल दो महीने बचा हुआ है और उन्हें औपचारिक रूप से नहीं हटाया जा सकता।

मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (एसीसी) ने वर्मा पर फैसला किया है। एसीसी ने संयुक्त निदेशक एम.नागेश्वर राव को सीबीआई निदेशक के दायित्व संभालने के लिए कहा है।

एक आधिकारिक आदेश में कहा गया है कि यह व्यवस्था अंतरिम समय तक जारी रहेगी, क्योंकि आलोक वर्मा व सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीचे रिश्वतखोरी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली आलोक वर्मा की याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई होगी। वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के केंद्र के आदेश को अदालत में चुनौती दी है।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने श्रंखलाबद्ध ट्वीट में कहा, "मोदी सरकार ने सीबीआई की स्वतंत्रता में आखिरी किल ठोक दी है। सीबीआई का व्यवस्थित तरीके से विखंडन और विघटन अब पूरा हो गया है। एक समय शानदार जांच एजेंसी रही सीबीआई की ईमानदारी, विश्वसनीयता और दृढ़ता खत्म करने का काम प्रधानमंत्री ने सुनिश्चित कर दिया है।"

सुरजेवाला ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी सीबीआई निदेशक को बर्खास्त करने का जो काम प्रत्यक्ष तौर पर नहीं कर सकते, उसे उन्होंने गुप्त तरीके से और चुपके से किया है। मोदी सरकार और भाजपा की गंभीर आपराधिक मामलों की निष्पक्ष जांच से छेड़छाड़ करने की आदत ही इन सबका बड़ा कारण है।"

कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सीबीआई में इस गोपनीय डकैती के जरिए अपने मोदी मेड कुख्यात गुजरात मॉडल का सही रंग दिखा दिया है।

सुरजेवाला ने सवाल किया कि क्या राफेल घोटाले में भ्रष्टाचार की जांच करने में उत्सुकता दिखाने के कारण तो सीबीआई निदेशक को बर्खास्त नहीं किया गया है?

उन्होंने कहा, "क्या यह लीपा-पोती नहीं है? प्रधानमंत्री जवाब दें!"

आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने के क्या कारण हैं? किस कानून के तहत मोदी सरकार को जांच एजेंसी के प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का अधिकार मिला? एजेंसी के प्रमुख की नियुक्ति लोकपाल अधिनियम के तहत होती है। मोदी सरकार क्या छिपाने की कोशिश कर रही है?

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्विटर पर केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की और इसे अवैध करार दिया।

उन्होंने कहा, "मोदी सरकार ने खुद से चुने गए अपने प्रिय अधिकारी (राकेश अस्थाना) की रक्षा करने के लिए सीबीआई निदेशक को अवैध रूप से हटा दिया है, जबकि उस अधिकारी (राकेश अस्थाना) के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच की जा रही है। यह इस बात को स्पष्ट करता है कि भाजपा के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व से उस अधिकारी के सीधा संबंधों की हिफाजत के लिए यह एक गंभीर लीपापोती की कोशिश है।"

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता न रहे, इसके लिए एजेंसी के प्रमुख को सुरक्षा देने के साथ-साथ दो साल का कार्यकाल दिया था। मोदी सरकार जल्दबाजी में उठाए गए कदम से क्या छिपाने की कोशिश कर रही है।

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