शहीद का परिवार सरकारी घोषणाओं के पूरे होने की बाट जोह रहा है

Approved by Anonymous (not verified) on Wed, 03/06/2019 - 23:51

:: कमलनयन ::

अमन के दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपनी शहदत दे चुके जम्मू में तैनात बीएसएफ के जवान शहीद सीता राम उपाध्याय का शव बीते वर्ष मई महीने में गिरिडीह जिले के नक्सल प्रभावित पीरटाड के पालगंज गांव पहुंचा तो सतारुढ भाजपा समेत विभिन्न संगठनों के हजारों लोगों का हुजूम उमडा था। हर किसी ने शहीद की शव याज्ञा में शामिल होने की होड़ मची थी। झारखंड सरकार की तरफ से भी शहीद के आश्रित को सरकारी नौकरी और गांव मे खेती के लिए एंव शहर में घर बनाने के वास्ते जमीन देने की घोषण की गयी थी। कहा तो यह भी गया कि शहीद के गांव में स्टेचू और भव्य तौरणद्वार बनाया जायेगा। लेकिन इसे हमारे सिस्टम की कमजोरी कहा जाय या फिर अफसरों की उदासीनता, इन दस महीनों में न तो अबतक जमीन का एक टुकडा मिला और नही नौकरी।

इस संबंध में शहीद की विधवा रेशमी उपाध्याय ने कहा कि बीते 8 से 10 महीनों में सरकारी दफतरों का दर्जन भर चक्कर काट चूकीं हुँ। हर बार अधिकारियों से सिर्फ आश्‍वासन ही मिला हैं। हो जायेगा, लेकिन कब होगा यह कोर्इ नही जानता। उन्होनें बताया कि वे अपने माता पिता की अकेली संतान हैं। मॉ बीमार रहती है पिता को कानों से सुनायी नहीं देता हैं। इस प्रकार सुसर को ऑखों से दिखता नहीं हैं। एक छोटा देवर है जो मधुबन की जैन सस्ंथा में कर्मी हैं। जैन संस्था के क्वाटर के छोटे छोटे कमरों में अपने बुजूर्ग माता पिता और तीन साल के बेटी सिद्वि एंव दो वर्ष के पुज्ञ कन्हैया को लेकर जीवन गुजार रही हैं। रेशमी कहती है कि चार बडें बुजुगों और दो मासूमों के साथ कैसे जीवप गुजार रही है यह बताना बहुत ही कठीन हैं। उनके पति रहते तो बहुत कुछ अच्छा हो जाता । लेकिन उनके जाने के बाद दो घरों की जिम्मेदारी हैं। उन्होनें बताया कि सरकार की और से मिली मुआवजे की राशि में से कुछ खर्च हो गयी हैं। शेष राशि अपने दोनों अच्चों के भविष्य की खातिर रखी हैं। दरअसल सीताराम उपाध्याय का नाम जेहन में आते ही जिलें की 23 लाख आवादी के दिल में शहीद के प्रति संवेदना का भाव जागजाता हैं। चाहे वह किसी भी धर्म सम्प्रदाय का क्यों नही शहीद के प्रति हमदर्दी होना आम भारतीय संस्कति में पले बडें लोगों के स्वभाव में हैं। परन्तु अफसोस इस बात का है कि वतन के लिए कुर्बानी देने वाले शहीद के आश्रित की सुध लेने वाला कोर्इ नहीं हैं। यदपि प्रधानमंश्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमश्री रघ्ाुवर दास आये दिन खासकर पुलवामा हमले के बाद अपने भाषणों में देश के शहीदों के सम्मान को लेकर अपने सरकार प्रतिबधता दोहराते रहे हैं। किन्तु सह कहना अनुचित नहीं होगा कि हमारे सिस्टम की कमजोरिया उनके भाषणो ंको तार तार करती दिखायी दे रही हैं। हालांकि बीते नंबवर महीने में झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर रांची में आयोजित शहीद सम्मान समारोह में पहुँची की विधवा ने राज्स विधान सभा अध्यक्ष दिनेश उरावं से गुहार लगायी तो जिला प्रशासन में संचिका रडार पर आ गयी हैं। इस संबंध में उपायुक्त राजेश कुमार पाठक ने पिछले दिनों रेशमी उपाध्याय को इस मामले का निष्पादन शीघ्र जिला स्थापना समिति को बैठक में करने का भरोसा दिया हैं। अब शहीद की विधवा को उक्त बैठक का इंतजार हैं।


यह बता दे कि सीताराम उपाध्याय के संग रेशमी कुमारी का विवाह 2014 में हुआ । विवाह के बाद रेशमी उपाध्याय ने दो बच्चों को जन्म दिया। बच्चें अभी पैरों से ठीक स ेचल भी पाये थे कि 18 मर्इ 2018 में जम्मु सेक्टर में सीताराम उपाध्याय इंसनियत के दुश्मन से लौहा लेते हुउ बीरगती को प्राप्त हुए और अपने पीछे छोड गये दो बुढ माता पिता पत्नी और दो मासूम बच्चे। ऐसे में सरकार को इस दिशा में ठोस और त्वरीत कारवार्इ करने की जररुत है तांकि शहीदो की विधावएं अपना आगे का जीवन आसानी से गुजार सके।
 

Add new comment