एक ऐसा पत्रकार जिसने हिंदू-मुस्लिम दंगे को रोकने की कोशिश की और खुद दंगों की भेंट चढ़ गए। आज यानी 25 मार्च को हिन्दी पत्रकारिता जगत के सबसे सम्मानित व्यक्तित्व गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्य तथि है। देश की आजादी के लिए खुद को न्योछावर कर देने वाले और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए अपनी पहचान बनाने वाले विद्यार्थी ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दे दी थी।
1931 में जब भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी के बाद देश भर अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोग आक्रेाशित हुए तो अंग्रेज सरकार ने सांप्रदायिक दंगा भड़का दिया। कानपुर में, पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी बर्दास्त नहीं कर पाये, नंगे पांव घर से निकल पड़े। कई जगह उन्हें दंगा रोकने में सफलता भी मिली। अचानक वह गायब हो गये। लोग खोज खबर लेने लगे तो एक अस्पताल के बाहर लाशों की ढ़ेर में उनका शरीर मिला। विद्यार्थी ने मानवता के लिए पत्रकारिता करते करते अपनी जान न्योछावर कर दी। उनकी मृत्यू के बाद महात्मा गांधी ने शानदार मौत बताया था। गणेश शंकर विद्यार्थी गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने 16 साल की उम्र में गांधी पर किताब लिख दी थी। उन्होंने 1913 में प्रताप नामक सम्मानित पत्रिका का संपादन शुरू किया था। उन्हें अपनी पत्रकारिता के लिए पांच बार जेल भी जाना पड़ा। न्यूज मेल इंडिया गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
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