होली मनाने के हर जगह के तौर-तरीके, रीति-रिवाज अलग होते है। लेकिन पत्थरों से होली खेलने की प्रथा के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना होगा। यह खतरनाक प्रथा दक्षिणी राजस्थान में गुजरात और मध्य प्रदेश से सटे आदिवासी क्षेत्र डूंगरपुर के भीलूड़ा गांव में देखी जा सकती है। इस अजीब मान्यता के चलते प्रतिवर्ष होली के दिन कई लोग घायल होते है। इस मौके पर यहाँ लोगों को अस्पताल पहुँचाने के लिए प्रशासन को एंबुलेंस और पुलिस लगानी पड़ती है। लोग होली से पहले ही पत्थर इकट्ठा कर लेते हैं। ये खेल होलिका दहन के बाद रात से ही शुरू होता है तो सुबह धुंधलका रहने तक चलता है। माहौल में वीर रस भरने के लिए ढोल कुंडी और चंग बजने लगते हैं। इस परंपरा को स्थानीय भाषा में ‘राड़’ बोला जाता है।राड का एक अर्थ दुश्मनी निकालने से भी लिया जाता है।
होली के इस शौर्य प्रदर्शन में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है । ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए होरिया की पुकार के साथ आदिवासी मोहल्लों और गांव से आने वाले लोग भिलूडा गाँव के रघुनाथजी मंदिर के पास गर्ल्स स्कूल ग्राउंड में परंपरागत पत्थरों की राड़ खेलने एकत्रित होते है । साथ ही हजारों लोग इस अनूठे खेल के दर्शनार्थी बनते है । दर्शक सुरक्षित स्थानों पर बैठकर इस रोमांचक खेल का आनंद लेते है। हालांकि इस ख़तरनाक होली को रोकने के लिए राज्य सरकार,जनप्रतिनिधि गण और ज़िला प्रशासन लगातार कई सालों से लोगो को समझा-बुझा कर होली रोकने के प्रयास कर रहा है लेकिन उन्हें इसमें आंशिक सफलता ही मिल सकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह हमारी बरसों पुरानी परम्परा है जोकि साल में एक बार आपसी रंजिश और बुराइयों को निकाल फ़ैकने से जुड़ी है इसलिए इसको बंद करना सही नहीं है।