आदिवासी समाज में व्यवस्थागत पतन के कारण और निवारण
आदिवासी समाज अब तक राजनीतिक कुपोषण का शिकार है। वोट क्यों देना है? किसको देना है? सरकार, शासन, जनप्रतिनिधि आदि की सही समझ की कमी विकराल है। अंततः जिसका प्रतिफल झारखंड प्रदेश गठन के 20 वर्षों के बावजूद सर्वाधिक खस्ताहाल, सर्वाधिक आबादी और सर्वाधिक आरक्षित आदिवासी जनप्रतिनिधियों वाली आदिवासी समाज को भोगना पड़ रहा है। हँड़िया- दारु, चखना, रुपयों में वोट की खरीद- बिक्री आदिवासी समाज में परंपरा की तरह विद्यमान है। पढ़े-लिखे, नौकरी पेशा में शामिल आदिवासी भी इस मामले में अनपढ़ की तरह हैं। आदिवासी समाज अब तक राजनीति से घृणा कर खुद अपनी पांव में कुल्हाड़ी मार रहा है।
झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र के प्रमुख आदिवासी समाज में परंपरा के रूप में 1) नशापान 2) अंधविश्वास 3) ईर्ष्या-द्वेष 4) राजनीतिक कुपोषण और 5) प्राचीन राजतांत्रिक स्वशासन पद्धति आदि सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक पतन के प्रमुख कारण हैं। जिस पर आदिवासी समाज के पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी लोगों का सुधारात्मक पहल नगण्य है।