आदिवासी समाज में व्यवस्थागत पतन के कारण और निवारण

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

आदिवासी समाज अब तक राजनीतिक कुपोषण का शिकार है। वोट क्यों देना है? किसको देना है? सरकार, शासन, जनप्रतिनिधि आदि की सही समझ की कमी विकराल है। अंततः जिसका प्रतिफल झारखंड प्रदेश गठन के 20 वर्षों के बावजूद सर्वाधिक खस्ताहाल, सर्वाधिक आबादी और सर्वाधिक आरक्षित आदिवासी जनप्रतिनिधियों वाली आदिवासी समाज को भोगना पड़ रहा है। हँड़िया- दारु, चखना, रुपयों में वोट की खरीद- बिक्री आदिवासी समाज में परंपरा की तरह विद्यमान है। पढ़े-लिखे, नौकरी पेशा में शामिल आदिवासी भी इस मामले में अनपढ़ की तरह हैं। आदिवासी समाज अब तक राजनीति से घृणा कर खुद अपनी पांव में कुल्हाड़ी मार रहा है।

झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र के प्रमुख आदिवासी समाज में परंपरा के रूप में 1) नशापान 2) अंधविश्वास 3) ईर्ष्या-द्वेष 4) राजनीतिक कुपोषण और 5)  प्राचीन राजतांत्रिक स्वशासन पद्धति आदि सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक पतन के प्रमुख कारण हैं।  जिस पर आदिवासी समाज के पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी लोगों का सुधारात्मक पहल नगण्य है। 

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DigiLocker or a tool of surveillance?

:: M.Y.Siddiqui ::

Ministry of Human Resource Development has decided to make DigiLocker a National Academic Depository (NAD) wherein all degrees, diploma and certificates from all recognized universities and academies of excellence will be stored in digital format as ready reckoner for instant accessibility by users. DigiLocker provides critical identity, educational, transport, financial and municipal documents in digital format to citizens through a digital wallet.

App based DigiLocker system platform, set up by the Union Ministry of Electronics and Information Technology, under the DigiLocker Rules, 2016 as amended in 2017, in terms of the Information Technology Act, 2000, intends to enable people to store all their utility documents in digitized format for consumption of such documents by public and private agencies while delivering services to the citizens. DigiLocker Rules provide legal sanctity to all such documents as stored in in this platform.

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किसानों के साथ हूं, भारत बंद के साथ नहीं

Approved by Srinivas on Mon, 12/07/2020 - 23:06

:: श्रीनिवास ::

फिर इससे हासिल भी क्या होता है? एकदम अप्रत्याशित या पूरे देश के मानस को छूने वाला कोई कारण या मुद्दा न हो, तो मुझे नहीं लगता कि बंद बुलाने वालों और उनके कट्टर समर्थकों के अलावा बंद को आम आदमी का समर्थन मिलता है. उल्टे यह भी संदिग्ध है कि संबद्घ मांगों से सहमत सभी लोग खुले मन से बंद का समर्थन करते होंगे.

किसी भी समूह, समुदाय या संगठन को अपनी मांगों के समर्थन या सरकार के किसी फैसले के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन सहित अन्य आंदोलनात्मक कार्यक्रम करने का अधिकार है. यह संवैधानिक भी है. मगर समाज के अन्य लोगों के स्वतंत्र विचरण के अधिकार को बाधित करने का नहीं. पता नहीं इस बारे में संविधान क्या कहता है, मगर 'बंद' का आयोजन निश्चय ही दूसरों को परेशान करने का कारण बनता है. इसकी तुलना जुलूस से नहीं की जा सकती. तब भी परेशानी होती है, पर थोड़े वक्त के लिए.

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प्रस्तावित फिल्म सिटी...कुछ जरूरी एहतियात

Approved by Srinivas on Fri, 12/04/2020 - 08:43

:: श्रीनिवास ::

उत्तर भारत के किसी प्रदेश में प्रस्तावित फिल्म सिटी को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परेशान हैं. क्योंकि इससे मुम्बई में रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे. यह बेतुकी बात है. मुम्बई के अलावा कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलूर आदि जगहों पर तो फिल्में बन ही रही हैं. एक और ऐसा सेंटर बनने से क्या फर्क पड़ जायेगा?

उत्तर भारत के किसी प्रदेश में प्रस्तावित फिल्म सिटी को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परेशान हैं. क्योंकि इससे मुम्बई में रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे. यह बेतुकी बात है. मुम्बई के अलावा कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलूर आदि जगहों पर तो फिल्में बन ही रही हैं. एक और ऐसा सेंटर बनने से क्या फर्क पड़ जायेगा? शायद श्री ठाकरे को डर है कि उत्तर भारत में कहीं ऐसा केंद्र बनने से हिन्दी फिल्मों पर मुम्बई का एकाधिकार ख़त्म हो जायेगा और राज्य की आय और वहां रोजगार के अवसर भी कम हो जायेंगे. यह आशंका निराधार नहीं है.

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लव जिहाद : हिंदुओं का खून खौलाने का एक और अभिक्रम

Approved by Srinivas on Fri, 11/27/2020 - 14:48

:: श्रीनिवास ::

बेशक यदि कोई आदमी इस नीयत से, अपनी पहचान छिपा कर प्रेम (असल में दिखावा और फरेब) करता है, फिर विवाह के लिए लड़की का धर्म बदलने की शर्त रखता है या जबरन ऐसा करता है, तो उसे अधार्मिक कृत्य ही कहा जायेगा.

आप बेरोजगारी, महंगाई, भूख, विस्थापन और कोरोना आदि का रोना रोते रहिये, धर्मान्धता फैलाने के लिए उनके पास एक से एक हथियार हैं, जो देश को बुनियादी मुद्दों से भटकाने के लिए कारगर हैं. ऐसा ही एक नया हथियार या शिगूफा है- लव जिहाद. उप्र की योगी सरकार ने इस पर एक अध्यादेश लाने का फैसला कर लिया है - अवैध धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश. गत 24 नवम्बर को कैबिनेट से इसे मंजूरी मिलने बाद यूपी सरकार ने कहा कि यह  'महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए जरूरी था!' बढ़िया जोक है, नहीं?

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Massive vacancies in AIR & DD

:: M.Y.Siddiqui ::

Out of a combined sanctioned strength of 45,791 strong manpower in AIR and DD, there are 21,314 vacancies, an alarming situation. AIR has total sanctioned staff strength of 26,129, out of which 13,395 posts are vacant. So AIR is working at less than half the full strength. This excludes several regional language news units and several posts in programme, engineering, and administration having been already downsized earlier. Similarly in DD, out of a sanctioned total staff of 19,662, there are 7,919 vacancies, mostly in programme, administration, and engineering. However, contractual employees from Sangh Pariwar stocks currently man massive vacancies in news wings of AIR and DD.

Public broadcasters (Prasar Bharati) comprising All India Radio (AIR) and Door Darshan (DD) under the Prasar Bharati Act, 1990 (Broadcasting Corporation of India) are together facing acute human resource (manpower) crunch as never before.

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बिहार का चुनाव : नतीजों से भिन्न कुछ नतीजे

Approved by Srinivas on Thu, 11/19/2020 - 09:05

:: श्रीनिवास ::

बेशक प्रकट में मुकाबला बेहद नजदीकी दीखता है. अनेक क्षेत्रों में अंतर इतना कम रहा कि कोई भी जीत सकता था; और किसी भी पक्ष को बहुमत मिल सकता था. मगर कुछ तथ्यों को ध्यान में रखें तो नतीजा इतना भी चौंकानेवाला नहीं दिखेगा.

विधानसभा के आधिकारिक नतीजों से कुछ लोगों (मैं भी उनमें शामिल हूं) की निराशा का एक कारण शायद यह है कि हमने ‘बेवजह’ कुछ ज्यादा उम्मीद पाल ली थी. यदि कथित चुनावी गड़बड़ियों के आरोपों को गलत मान लें तो, इसमें अपनी सदिक्षा के आलावा मीडिया रिपोर्टिंग का भी योगदान रहा, जो जमीनी सच्चाई को भांपने में नाकाम रहा. वैसे राजनीतिक पंडितों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ता भी अक्सर ‘जनता’ के ‘जागरूक’ और समझदार होने को लेकर एक भ्रम में रहते हैं.

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संपत्ति मोह विपत्तियों का घर है

:: अच्युत पंकज ::

आनंद और विवेक पूर्ण जीवन जीने के लिए छोटी सी संपत्ति जिसका उपयोग आप कर सके पर्याप्त है। ज्यादातर लोग आगामी पीढ़ी के लिए संपत्ति संरक्षित रखने के लिए अपना जीवन खपा देते हैं।  किंतु अक्सर देखने में आता है कि आगामी पीढ़ी संरक्षित रखी गई संपत्ति को छोड़ अन्यत्र बस जाती है। और बहुत से ऐसे मामले भी होते हैं जब आगामी पीढ़ी उस संपत्ति के लिए आपसी झगड़ों में बर्बाद हो जाती है।

संपत्ति उतनी ही हो जिसका उपयोग कर सकें। जरूरत से ज्यादा संपत्ति टिकती नहीं और प्रायः व्यर्थ के उलझनों में डाल देती है । संपत्ति की चिंता जीवन जीने का मजा खराब कर देती है।

आज तक जरूरत से ज्यादा संपत्ति कोई नहीं रख सका। राजे महाराजे नहीं रख सके तो आम आदमी की बात ही क्या। 
संपत्ति वीरान हो तो अतिक्रमण अवश्यंभावी है।  इसलिए संपत्ति की सुरक्षा और रखरखाव पर नित्य प्रतिदिन ध्यान देना चाहिए।
 
यदि आप समुचित सुरक्षा और रखरखाव नहीं कर सकते तो लुटेरे उस पर कब्जा जमा लेंगे और आप झमेले उलझन और चिंता में पड़ जाएंगे। जीवन का आनंद जाता रहेगा। भगवत भजन कर नहीं पाएंगे।

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इस अतिवाद और धर्मोन्माद के खिलाफ बोलना ही होगा

Approved by Srinivas on Tue, 11/03/2020 - 16:15

:: श्रीनिवास :https://newsmail.in/node/2080

(संदर्भ : फ्रांस का कार्टून विवाद) जैसे अपनी चंद पेंटिग्स के कारण प्रसिद्ध चित्रकार (अब दिवंगत) एमएफ हुसैन की जान के पीछे पड़ जाना कुत्सित धर्मोन्माद का नतीजा और निंदनीय था, उसी तरह फ्रांस में मजहबी जूनून के तहत की गयी हत्याएं गलत और निंदनीय हैं. जैसे कलिबुर्गी और गौरी लंकेश जैसों की उनके विचारों के कारण हुई हत्या निंदनीय थी, वैसे ही फ्रांस की ये घटनाएं निंदनीय हैं.

कतिपय मुसलिम देशों में फ्रांस के खिलाफ जारी आक्रोश प्रदर्शन निहायत अफसोजनक है. यह मुसलिम समुदाय पर जुनूनी/अतिवादी होने के पहले से लगते रहे आरोप को प्रकारांतर से पुष्ट करता है. गनीमत है कि भारतीय मुसलिम समाज के अनेक चर्चित नामचीन बुद्धिजीवियों ने इस उन्माद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है. मगर अफसोस कि वे समग्र मुसलिम समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते; जैसे कि (जन्मना) हिन्दू सेकुलर/वामपंथी समस्त हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते. और अफ़सोस की बात यह भी है कि कथित सेकुलर जमात का एक हिस्सा भी इस जुनूनी हिंसा की निंदा करते हुए भी ‘किन्तु- परन्तु’ लगा रहा है.

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Types of custodial torture in India

:: M Y Siddiqui ::

It is learnt officially that of the 255 custodial deaths between 2017 and 2019, no police personnel were punished for their misconduct. So are the cases between 2014 and 2015. It indicates custodial deaths do not indicate full picture.

Custodial deaths in India are a cold-blooded play of power and class, which cannot be viewed in isolation. When law enforcement agencies become perpetrators of violence, it becomes an ominous case of abuse of authority, which is antithetical to the rule of law-based system of democratic governance where human rights rule supreme. Custodial deaths are excesses by police force on citizens.

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