भोपाल: मध्य प्रदेश के भोपाल में आयोजित डॉ. अजय खरे स्मृति व्याख्यानमाला में "कृषि संकट: खाद्यान्न सुरक्षा एवं स्वास्थ्य" विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने कृषि संकट के लिए देश की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार बताया।
पी साईनाथ ने कहा, “कृषि संकट अब पूरे समाज और सभ्यता का संकट हो गया है। भारत में पिछले 20 साल में तीन लाख दस हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं लेकिन इसको लेकर आक्रोश नहीं है”। विकराल होते कृषि संकट पर विस्तार के साथ बात रखते हुए उन्होंने कहा कि इसे हम सिर्फ़ पांच शब्दों से व्यक्त कर सकते है ये अंग्रेज़ी के पांच शब्द होंगे “Corporate Hijack of Indian Agriculture”।
उन्होंने कहा कि कृषि का संकट सरकारों की ग़लत नीतियों की वजह से पैदा हुआ है जिसकी वजह से 1991 के बाद से देश में हर दिन 2 हजार से ज्यादा किसान कम हो रहे हैं और इसके मुकाबले खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ रही है व शहरों की तरफ पलायन बहुत तेजी से हुआ है। इस दौरान खेती के नाम पर कई तरह के कर्ज तो बढ़े लेकिन इसका फायदा किसानों के नाम पर एग्री बिजनेस करने वाली बड़ी कारपोरेट कंपनियों को मिला।
कृषि पत्रकार साईनाथ ने आगे कहा कि किसानों के पास अब किसानी के लिए कुछ बचा नहीं है वे पूरी तरह से कारपोरेट पर निर्भर हो गए हैं। आज किसाब बीज, खाद, कीटनाशक जैसी सामग्रियों के लिए वे कंपनियों पर आश्रित हैं इसकी वजह से कृषि लागत चार गुना बढ़ गया है लेकिन इसके मुकाबले उनके उत्पादों की कीमत दोगुना भी नहीं बढी है।
पी. साईनाथ ने कहा कि किसान और खेती-किसानी के लिये हमारे नीति निर्माता कितने संवेदनशील हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2004 में स्वामीनाथन कमेटी ने अपनी पहली रिपोर्ट संसद को दी थी तथा 2006 में अंतिम रिपोर्ट भी दे दी गयी थी। लेकिन 14 साल बीत जाने के बाद भी संसद में इस मुद्दे पर एक घंटे की बहस नहीं हो सकी। वहीं दूसरी तरफ रात में संसद का विशेष सत्र बुलाकर महज 4 घंटे में जीएसटी को कानून बना दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कृषि संकट की व्यापकता और गंभीरता को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि इसके लिये संसद का कम से कम 3 हफ्ते का विशेष सत्र आयोजित किया जाये।
मध्यप्रदेश में कर्जमाफी पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि कर्जमाफी अहम है लेकिन यह पूरा समाधान नहीं बल्कि पहला कदम है। उन्होंने मध्यप्रदेश में नवगठित कांग्रेस सरकार को कृषि कल्याण आयोग गठित करने, मप्र में किसानों की स्थिति पर श्वेतपत्र जारी करने और कृषि संकट पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का सुझाव भी दिया। जिसमें इससे निपटने की ठोस व स्थायी रणनीति बनायीं जा सकें।
पी. साईनाथ ने कहा कि मुम्बई का किसान मार्च और दिल्ली में किसानों का बड़ा प्रदर्शन उम्मीद पैदा करते हैं। इससे लगता है कि लम्बे समय से निराशा में डूबे किसान आखिरकार अपने अधिकारों के लिए आंदोलन की राह पर बढ़ रहे हैं। खास बात ये है कि इन रैलियों में मध्यम वर्ग के युवाओं ने आगे बढ़कर सहयोग किया जोकि आशा जगाने वाला है।
इस अवसर पर मप्र लोक सहभागी साझा मंच की पत्रिका "साझी बात" के डॉ अजय खरे स्मृति अंक का विमोचन किया गया तथा "शरीर की वसीयत" नाम से वेबसाइट भी लॉन्च की गई। इस वेबसाइट पर कोई भी व्यक्ति अपने नेत्र दान, अंग दान और देहदान को लेकर वसीयत कर सकता है।