एक्जिट पोल ने खोली मीडिया की पोल

:: ग्लैडसन डुंगडुंग ::

लगभग सभी अंग्रेजी और हिन्दी समाचार चैलनों ने मोदी की सरकार बनवा दी। लेकिन इसके चक्कर में खूद को नंगा कर दिया।
इसमें अंग्रेजी समाचार चैनलों ने बाजी मारी है। रिपब्लिक टीवी और टार्इम्स नाउ ने एक-ंउचयदूसरों को मात देने की कोिाा में अपना की किरकिरी करवा लिया है। रिपब्लिक टीवी ने अपने एक्जिट पोल में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को 605 सीटों पर जीता दिया जबकि लोकसभा में कुल 545 सीटें हैं, जिनमें से 543 सीटों पर चुनाव होता हैं एवं 2 सीटें एग्लों इंडियान के लिए सुरक्षित है, जिसके लिए राश्ट्र्पति नामित करते हैं।

19 मई 2019, भारत के इतिहास में एक अद्भ्ाुत दिन के रूप में याद करना चाहिए। यह इसलिए नहीं कि भारत ने कुछ हासिल किया बल्कि यह इसलिए कि भारतीय मीडिया ने अपना बचा-ंउचयखुचा विश्‍वास खो दिया। एक्जिट पोल में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनवाने के चक्कर में अधिकांा भारतीय मीडिया घरानों ने खूद की ही बैंड बजवा दी है। लगभग सभी अंग्रेजी और हिन्दी समाचार चैलनों ने मोदी की सरकार बनवा दी। लेकिन इसके चक्कर में खूद को नंगा कर दिया। इसमें अंग्रेजी समाचार चैनलों ने बाजी मारी है। रिपब्लिक टीवी और टार्इम्स नाउ ने एक-ंउचयदूसरों को मात देने की कोिाा में अपना की किरकिरी करवा लिया है। रिपब्लिक टीवी ने अपने एक्जिट पोल में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को 605 सीटों पर जीता दिया जबकि लोकसभा में कुल 545 सीटें हैं, जिनमें से 543 सीटों पर चुनाव होता हैं एवं 2 सीटें एग्लों इंडियान के लिए सुरक्षित है, जिसके लिए राश्ट्र्पति नामित करते हैं। हालांकि चैनल ने अपनी गलती सुधारते हुए बाद में इसे 305 दिखाया। टार्इम्स नाउ तो रिपब्लिक टीवी से भी आगे निकल गया। टार्इम्स नाउ ने अपने एक्जिट पोल में एनडीए को 297 सीटें, यूपीए को 144 सीटें एवं अन्य को 173 सीटें दी है, जिसका कुल योग 614 होता है जबकि लोकसभा में कुल 545 सीटें हैं, जिनमें से 543 सीटों का ही चुनाव होता है। इतना ही नहीं टार्इम्स नाउ ने उतराखंड में आम आदमी पार्टी को 2.5 प्रतिात वोट मिलता हुआ दिखाया जबकि पार्टी वहां चुनाव नहीं लड़ रही है।


जब एक्जिट पोल दिखाने में अंगे्रजी चैनलों ने बाजी मारी तो फिर हिन्दी समाचार चैलन पीछे क्यों रहते? एबीपी न्यूज ने हरियाना में भाजपा को 22 सीटों पर जिता दिया जबकि वहां लोकसभा के सिर्फ 10 सीटें हैं। एबीपी ने और एक कमाल किया। जब एनडीए को बहुमत नहीं मिल रहा था तब 10 सीटें बाद में ब-सजयाकर एनडीए को बहुत दे दिया। फिर न्यूज एंकरों ने दृाोर मचाना दृाुरू किया।


इसी तरह आजतक ने पंजाब में बीजेपी को 4 सीटें दे दी जबकि पार्टी वहां सिर्फ तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ रहीं है। इसके अलावा एनडीए को बिहार में सौ प्रतिात सीटें दे दी। इसी तरह -हजयारखंड में जेएमएम को पांच सीटे दे दी जबकि पार्टी सिर्फ चार सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। यदि सारे हिन्दी और अंग्रेजी टीवी समाचार चैनलों तथा सर्वे करने वाले एजेंसियों का औसत निकाला जाये तो एनडीए को लगभग 275 से 300 सीटों पर चुनाव जीतते हुए दिखाया गया। यहां मौलिक सवाल यह उठता है कि आखिर टीवी समाचार चैनल इतना ज्यादा क्यों मोदिया गये हैं? क्या इनके उपर गांधीछाप कागजों की भारी बारिा करवायी गयी है? क्या यह ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद के गांठजोड़ का परिणाम है? क्यों ये मीडिया घराने अपने अस्तित्व को दांव पर लगा रहे हैं? क्या अब भी हमें इन्हें लोकतंत्र का चौधा स्तंभ कहना चाहिए?


लोकसभा चुनाव एनडीए जीते या यूपीए। केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बने या कांग्रेस के नेतृत्व में लेकिन लोकतंत्र नामक सांप-ंउचयसी-सजयी के इस खेल में मीडिया खासकर हिन्दी और अंग्रेजी माचार चैनलों ने अपना विश्‍‍वास खो दिया है। अब देा के चर्चित न्यूज एंकर किसी राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करते दिखार्इ पड़ते हैं। उनकी भाशा, सवाल पूछने की दृौली और हाव-ंउचयभाव से कभी भी यह एहसास नहीं होता है कि वे देा के जानेमाने पत्रकार और न्यूज एंकर हैं। यह भारतीय मीडिया के लिए दृार्मनाक बात है। यह सही समय है जब भारतीय मीडिया को अपना मूल्यांकन करना चाहिए वरना मीडिया का बचा-ंउचयखुचा साख भी समाप्त हो जायेगा।

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