नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को सर्वोच्च न्यायालय के उस अवलोकन से असहमति जताई जिसमें लैंगिकता (सेक्सुअलिटी) को बोलने की आजादी (फ्री स्पीच) का भाग बताया गया है। जेटली ने यह भी कहा कि सबरीमाला मंदिर, समलैंगिकता और व्याभिचार पर न्यायालय के फैसले से समाज पर विपरीत असर पड़ सकता है। जेटली ने कहा, "अगर आप एक प्रगतिशील कदम उठाना चाहते हैं, तो फिर अनुच्छेद 14 और 21 सभी धर्मो के विरुद्ध लागू होगा। यह नहीं हो सकता कि आप कोई एक प्रैक्टिस चुनें और इसको लागू करें। भारत जैसे बहुलतावादी देश पर इसका कई प्रभाव पड़ सकता है।"
जेटली हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसलों पर पूछे जाने पर अपनी बात रख रहे थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है और आधार कानून को कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी है।
वित्त मंत्री ने समलैंगिकता पर न्यायालय के फैसले का स्वागत किया लेकिन कहा, "मैं न्यायपालिका के इस विचार से असहमत हूं कि सेक्सुअलिटी बोलने की आजादी (फ्री स्पीच) का एक भाग है।"
उन्होंने कहा कि यह थोड़ा ज्यादा हो गया। संविधान के अंतर्गत बोलने की आजादी को कुछ परिस्थितियों जैसे लोक शांति (पब्लिक आर्डर) के आधार पर नियंत्रित किया जा सकता है।
जेटली ने पूछा, "तब आप कैसे आर्मी फ्रांटियर, स्कूल हॉस्टल में यौन गतिविधियों पर रोक लगाएंगे। कई बार आप ऐतिहासिक फैसले देते समय भावना में बह जाते हैं और एक कदम आगे बढ़ जाते हैं।"
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 377 (समलैंगिकता) पर फैसला समाजिक सुधार पर एक अनवरत अभियान का हिस्सा है।
व्याभिचार पर उन्होंने कहा कि इस कानून को समाप्त किए जाने की जरूरत थी।
लेकिन, उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और इसके कई परिणाम भी हो सकते हैं।
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