'जापान' बनाने की होड़ में गुम होता 'हिंदुस्तान' : मेहता

मदुरै: मुंबई के हीरा कारोबारी यतिश भोगी लाल मेहता (75) महात्मा गांधी के अनुयायी नहीं है, लेकिन उनसे प्रेम करते हैं और कहते हैं कि अगर वर्तमान दौर में महात्मा होते तो देश की यह हालत नहीं होती, क्योंकि देश के जिम्मेदार लोग जापान बनने की चाहत में हिंदुस्तान को भूलते जा रहे हैं। 

मदुरै से 22 किलोमीटर दूर स्थित सेंटर फॉर एक्सपीरियंसिंग सोशल कल्चरल इंटरेक्शन (सीईएससीआई) में आए मेहता ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में देश के वर्तमान हालात पर चिंता जताई। 

मेहता ने एक सवाल के जवाब में कहा कि गांधी इस देश के सबसे गरीब और कमजोर के हित में नीतियां और कानून बनाने के पक्षधर थे, मगर आज जो नीतियां बन रही हैं, उससे महज पांच प्रतिशत लोग लाभान्वित हो रहे हैं, 95 प्रतिशत लोग अब भी सुविधाओं से वंचित हैं। हम यह कैसा देश बना रहे हैं।

देश में विकास का दावा करने वाली सरकारों के रवैये से मेहता खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ आखिर किसके लिए है, हिंदुस्तान को जापान बनाने की होड़ अच्छी नहीं है, इसके चलते हिंदुस्तान को ही भूल चले हैं, गांधी का हिंदुस्तान पीछे छूट गया है, विकास और तरक्की कहां ले जाएगी, यह कोई नहीं जानता, लेकिन देश के बहुसंख्यक वर्ग का सुविधाओं से वंचित होना चिंताजनक हैं।

अपनी जीवन यात्रा का जिक्र करते हुए मेहता बताते है कि वर्ष 1960 में हीरे का कारोबार संभाला, वर्ष 2001 तक पूरी तरह इस कारोबार में रमे रहे, जब 60 वर्ष के होने लगे तो कारोबार अगली पीढ़ी के सुपुर्द कर दिया। उसके बाद उनका रुझान लिखने पढ़ने की तरफ हुआ। वर्ष 2007 में पी. वी. राजगोपाल से हुई मुलाकात के बाद गांधी पर काम करने का मन बनाया। 

मेहता बताते है कि वर्ष 2007 से गांधी को पढ़ना शुरु किया और उनके वक्तव्यों को संग्रहित करने सिलसिला जारी रखा। अब तक गांधी के 7,000 हजार अंग्रेजी भाषा में व्यक्तव्यों का संग्रह कर प्रकाशन किया जा चुका है, इसी तरह हिंदी में संपूर्ण गांधी वांगमय नाम से संग्रहण निकाले, जिसमें 5,000 हजार व्यक्तव्य हैं, जबकि गुजराती भाषा में अक्षर देह नाम से संग्रहण प्रकाषित किया गया, जिसमें 3,500 व्यक्तव्य हैं। 

गांधी को पढ़ने के बाद भी मेहता गांधी के अनुयायी नहीं हो पाए हैं। वे कहते हैं कि गांधी की कई बातों से वे सहमत नहीं हैं, यही कारण है कि वह गांधी के प्रेमी हैं, अनुयायी नहीं। -संदीप पौराणिक

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