ब्राजील में अमेजन के जंगल पिछले तीन सप्ताह से भयावह आग की चपेट में हैं। जंगलों में फैली आग की लपटे मानवजनित विनाश को भयावह रूप दे रही है। 55 करोड़ हेक्टेयर में फैले इन वनों में से एक आकलन के अनुसार लगभग आठ लाख एकड़ के जंगल इस आग से राख में तब्दील हो चुके हैं। पिछले दो सालों में आग से जंगलों की हुई क्षति से यह कई गुणा ज्यादा है। एक आकलन के अनुसार पिछले साल से इस साल आग लगने की घटनाआंें में 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आग से जंगल में निवास करने वाले 500 किस्म से ज्यादा विभिन्न प्रजातियों पर संकट के बादल छाये हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आग से हुई क्षति को पूरा करने में दो सौ साल से ज्यादा समय लगेंगे। इससे ही आग की भयावहता को समझा जा सकता है। परिस्थितिकी य असंतुलन का खतरा अलग से है। आग के कारण प्रतिदिन लाखों टन कार्बन डाइ-आक्ॅसाइड वातावरण में फैल रहा है। ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फाॅर स्पेस रिसर्च के अनुसार प्रति मिनट एक फुटबाॅल मैदान जितने क्षेत्रा को अपनी चपेट में लेती जा रही है। क्षति की भरपाई निकट भविष्य में नहीं दिख रही है। ब्राजील के साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक, कार्लोस नोब्रे का कहना है कि अब हम चरम बिंदु के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। यदि हमने इस बिंदु को पार कर लिया तो यह बदलाव अपरिवर्तनीय होगा। अफसोस हम उसी ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय तक विश्व के इस सबसे बड़े वर्षावन को संरक्षित करने के प्रयास के बाद भी हम इस खतरनाक बिंदु तक पहंुच गये हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में इस पर चिंता जातई जा रही है।
अमेजन के जंगल की महत्ा के मद्देनजर दुनिया भर से इसे बुझाने के लिए आवाज उठ रही है। आग की दहक पूरी दुनिया महसूस करने लगी है। जंगल में लगी आग लगातार फैलती जा रही है और जंगलोे को निगलती जा रही है। आग के चलते वहां निवास करने वाले आदिवासी मूल के लोगों के अलावे आसपास के लोग भी तबाह हैं। आग से ब्राजील के अलावे स्पेन का कैनेरी द्वीप, अमेरिका का अलास्का, ग्रीनलैंड, रूस में साइबेरिया के साथ बोलीवियाई वन जल रहे हैं। आग से प्रभावित क्षेत्रों में हाहाकार मचा है। भोजन-पानी का अभाव होने से तबाही मची है। स्कूल बंद कर दिये गए हैं, और की जनता दुनिया से बचाने का गुहार भी लगा रही है। आग के चलते ब्राजील के साओ पाउलो शहर में अंधेरा छा गया है। आग बुझाने को लेकर दुनिया भले चिंतित हो लेकिन वहां के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो इतमिनान दिख रहे हैं। उन्होंने पहले तो यह कह कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली कि हमारे पास आग बुझाने की क्षमता नहीं है। आग बुझाने को लेकर न सिर्फ ब्राजील में बल्कि दुनिया के कई देशों में लोग सड़क पर उतर गये हैं। यह अकारण ही नहीं है कि लोग अमेजन के जंगल को लेकर इतना चिंतित हैं और सड़क पर उतरने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।
जानना जरूरी है कि ये वहीं जंगल हैं जो दुनिया के पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्ी भूमिका निभाते हैं। अमेजन धरती जलवायु प्रणाली का एक प्रमुख घटक है। यह सम्पूर्ण वातावरण के लगभग एक चैथाई काॅबर्न को अकेले नियंत्रित करता है। प्रतिवर्ष दुनिया में हमलोगों द्वारा छोड़े गए कुल कार्बनडाई आॅक्साइड के पांच प्रतिशत को अकेले यह अवशोषित करता है। अमेजन के वन दुनिया के सबसे उष्णकटिबंधीय जंगल हैं और धरती के आॅक्सीजन का 20 प्रतिशत यहीं से आता है। इन जंगलों में जैव-विविधता की संघनता भी सबसे ज्यादा है। विश्व की सबसे बड़ी नदी से सिंचित ये वन 140 अरब मीट्रिक टन कार्बन भी अवशोषित करते हैं। इतना ही नहीं इस क्षेत्रा में कई समुदाय के तीन करोड़ आदिवासियों के साथ ही अनमोल वन्य प्राणियों की भरमार है। दुनिया में कहीं और नहीं पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का यही निवास स्थल है।
भारी दबाव के बीच ब्राजील ने आग बुझाने के लिए सेना भारी मन से भेज दी है। लेकिन वे आग बुझाने के लिए मन से तैयार नहीं हैं। उनके अनुसार आग लगने की घटना समान्य है। उन्होंने तो दुनिया भर में उठ रही आवाज और विशेष कर यूरोपीय देशों से बनाये गये दबाव को आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की संज्ञा दी थी, इससे ही उनकी मंशा को समझा जा सकता है। लेकिन दुनिया समझ रही है कि यदि अमेजन की आग इसी तरह बढ़ती रही तो जलवायु परिवर्तन व वैश्विक तापमान का दंश झेलती दुनिया के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। मनुष्य जाति के साथ ही वन्य प्राणियों व जैव-विविधता के अस्तित्व पर ही खतरा छा जायेगा। वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने का प्रयास विफल हो जायेगा। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि जंगल में आग लगने की घटना अनेक जंगलों में पारिस्थितिकी का अंग होती है। लेकिन अमेजन के जंगलों में लगी आग का संदर्भ ऐसा नहीं है। वहां लगी आग का लगभग हर कारण मानवीय गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अमेजन के जंगलों में रहने वाले विभिन्न समुदायों के लगभग तीन करोड़ लोग इसके लिए जिम्मेवार हैं। वे तो सदियों से प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहने के आदि हैं, इन्हें भी विस्थापित कर वहां से हटाने, खेती के लिए जमीन बनाने, खनिज, खनन के लिए जंगल में आग लाभ के मकसद से वे लोग लगाते हैं, जो वहां से जंगल की कीमत पर भी लाभ कमाने से बाज नहीं आने की मंशा रखते हैं। जंगल को सिर्फ एक संसाधन मान कर लाभ कमाने वाले लोग आदिवासियों के अधिकारों को खारिज कर जंगलों का व्यवसायिक इस्तेमाल को इच्छुक हैं, यही कारण है कि वे जंगलों को साफ करने में लगे हुए हैं। और अफसोस कि वहां की सरकार भी उनके इस काम में साथ खड़ी दिखती है।
इस बात की पुष्टि इस बात से ही होती है कि वर्तमान राष्ट्रपति ने अपने चुनावी वादों में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही आदिवासियों के अधिकारों को खारिज कर जंगलों के व्यवसायिक इस्तेमाल की बात कही थी। चुनाव जीतने के बाद वे इसी राह पर चलते भी दिखते हैं। राष्ट्रपति बनते ही पर्यावरण संरक्षण की राष्ट्रीय एजेंसी के बजट से 95 प्रतिशत की कटौती कर दी है। इससे भी आग बुझाने में संसाधनों की कमी सामने आ रही है। लेकिन इससे बेखबर राष्ट्रपति अपने स्तर से मामले को टालने में लगे हैं। सबसे खतरनाक तो यह कि इनके पद पर आसीन होते ही वनों पर आफत आ गई है। इनके राष्ट्रपति बनने के पहले तक अमेजन के जंगलों की स्थिति ऐसी नहीं थी। इनके आने के बाद यों भी बीस हजार मील कम हो गया है अमेजन का जंगल। वर्ष 2004 में ब्राजील की तत्कालीन सरकार ने वनों के विनाश को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों को संरक्षित और जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित करने के लिए कई कदम उठाये थे। इस दौरान नियम का उल्लंघन करने वालों पर दंड के साथ ही गिरफ्तार करने के मामले भी सामने आते रहे हैं। इन एहतियाती कदमों से 2012 तक 75 फीसदी वन क्षेत्रा के नुकसान में कमी आई थी। वहीं के वैज्ञानिक नोब्रे के अनुसार राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद, मई से वनों के कटाई में तेज वृद्धि हुई है। इस वर्ष करीब 2000 वर्ग मील जंगल कम हो गये हैं।
आग को प्राकृतिक बताने वाले लोगोें को यह समझना जरूरी है कि प्राकृतिक तौर पर अमेजन शायद ही कभी जलता है। लेकिन गौर करने की बात है कि इस महीने अमेजन के वन में 25,000 से अधिक बार आग लगने की गणना आइएनपीइ ने की है।
आग से ही नहीं कटाई से भी यहां के वन सिकुड़ रहे हैं। मई, जून और जुलाई में प्राप्त उपग्रह चित्रों में, वनों की कटाई में वृद्धि देखी गई है। वन में आग लगने से पहले ही ये चित्रा लिये गए हैं। नासा के गोड्डर स्पेस फ्लाइट सेंटर के बायोस्फेरिक साइंसेज लेबोरेटरी के प्रमुख डाॅग मोर्टन के अनुसार अमेजन के बड़े-बड़े विशाल पेड़ों को गिराने के लिए कुल्हाड़ी या मैचेट के बदले अब लोग बुल्डोजोर का प्रयोग कर रहे हैं। सरकार ने इन वन क्षेत्रों के हजारों एकड़ में कृषि का आदेश दे दिया है। पहले इस जमीन का उपयोग पशु चारागाह के तौर पर या सोयाबीन जैसी फसल उगाने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन देश में सत्ता बदलने से प्राथमिकताएं बदली हैं और वनों के जलने की खबर आ रही है। भले यूरोपीय नेताओं के दबाव के बाद आग बुझाने के लिए भले सेना भेजी गई है, लेकिन उनका मन अपनी जगह शांत है। राष्ट्रपति ने आरोप लगाया है कि आग को लेकर राजनीति हो रही है। लेकिन उनके ध्यान में यह नहीं कि पिछला महीना जुलाई यूरोप के लिए सबसे गर्म महीना रहा है। यही कारण है कि यूरोप के कई देश उन पर एक तरह से दबाव बनाये में एकजुट होकर कामयाब हुए हैं। दबाव में उन्होंने घोषणा की है कि सेना अमेजन के रेनफाॅरेस्ट की सीमाई, आदिवासी, संरक्षित इलाकों में तैनात होगी। फ्रांस और आयरलैड ने कहा था कि वह ब्राजील के साथ यूरोपीय संघ-मर्कोसुर व्यापार समझौते को तब तक मंजूरी नहीं देंगे, जब तक अमेजन के आग को बुझाने का प्रयास नहीं किया जाता।
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने इस मुद्दें पर राजनीति करने की बात कही है। जंगलों की महत्ा से आंख मंूदने वाले इस शासक को इसकी परवाह नहीं कि दुनिया के 20 प्रतिशत से अधिक आक्सीजन पैदा करने वाले जंगल को बर्बाद करने का नतीजा क्या होगा? इसे प्राकृतिक फेफड़ा की संज्ञा दी गई है। यही फेफड़ा आज जल रहा है। इसलिए ब्राजील के अमेजन में लगी आग हमारे देश के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस बात से दुनिया का कोई भी राजनीतिज्ञ इंकार नहीं कर सकता कि पर्यावरण के बिगड़ने से हमारी अर्थव्यवस्था, जिंदगी व जीने का अंदाज भी बदला है और जीवन पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है। सत्ता को असान बनाने में पर्यावरण के मुद्दें भले बहुत कारगर नहीं लगते हों लेकिन यह बात तय है कि अब पर्यावरण को नजरअंदाज करना संभव नहीं होगा।
बहरहाल, दुनिया भर में अमेजन के जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए संसद से सदन तक प्रयास देखे जा रहे हैं। अमेजन के जंगल न सिर्फ ब्राजील के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। पर्यावरण को संतुलित रखने मेें महत्ी भूमिका निभाने वाले इस जंगल को किसी भी कीमत पर बचाया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहभागिता से आगे ले जाया जाए। प्रकृति के असंतुलित दोहन का दुष्परिणाम समूची मानवता को भुगतना पड़ रहा है, इसलिए सामूहिक चिंता और प्रयास दोनों जरूरी हैं।
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