सवाल है कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने उत्तराखंड या कोटा से अपने लोगों को लाने का जो फैसला किया, उस पर अमल भी किया, वह लॉकडाउन का उल्लंघन था या नहीं? प्रधानमंत्री की ‘जो जहाँ है, वहीं रहेगा’ की नसीहत के खिलाफ था या नहीं?
(संदर्भ : लॉकडाऊन में फंसे लोगों को वापस लाने का मामला) उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों और कोटा में फंसे उप्र के छात्रों को लक्जरी बसों में वापस लाने के बाद मुख्यमंत्री योगी ने अब लॉकडाउन के कारण बाहर फंसे मजदूरों को वापस लाने की योजना का एलान कर दिया है. जाहिर है कि उनकी वाहवाही हो रही है. यहां तक कि प्रियंका गांधी ने भी उनकी प्रशंसा की है. इधर बिहार और झारखण्ड के मुख्यमंत्री क्रमशः नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन विपक्ष के निशाने पर हैं. इन प्रदेशों के जिन लोगों के परिजन बाहर फंसे हुए हैं, वे भी लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार उनको लाने के इंतजाम करे. उनमे आक्रोश बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर एकदम खामोश हैं!
सवाल है कि इन राज्यों के अलावा भी देश भर के लाखों की संख्या में जो नागरिक, मजदूर, विद्यार्थी आदि जहाँ-तहां फंसे हुए हैं, जो किसी तरह घर पहुँचने को तड़प रहे हैं, भोजन और अन्य जरूरी सामन की कमी से परेशान हैं, इस स्थिति के लिए कौन जवाबदेह है? सभी जानते हैं कि देशव्यापी लॉकडाउन का यह फैसला केंद्र का था/ है. बेशक यह फैसला जरूरी था. कोरोना के संभावित फैलाव को रोकने के लिए इसके अलावा और इससे बेहतर कोई तरीका हमारे पास नहीं था, शायद अब भी नहीं है. इसी कारण सभी राज्य सरकरें इस फैसले पर अमल में पूरी क्षमता से लगी हुई भी हैं. मगर इस फैसले की अपरिहार्य परिणति के रूप में देश भर में करोड़ों लोग जिस तरह अपने घरों से बहुत दूर फंस गए, उसके लिए किसी राज्य सरकार को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है? बल्कि यदि केंद्र या प्रधानमंत्री ने अचानक वह घोषणा करने के बजाय दो-तीन दिनों की मोहलत दी होती कि लोग अपने सुरक्षित ठिकानों तक पहुँच जाएँ, तो यह अफरातफरी नहीं होती. न ही दिल्ली से हजारों की भीड़ लॉकडाउन घोषित होने के तीन दिन बाद पैदल ही अपने घर की ओर चल पड़ती. उसके बाद भी कहा गया कि जो जहाँ है, वहीं रहे और सम्बद्ध राज्य की सरकार उनका ख्याल रखेगी.
याद कीजिये कि 24 मार्च की रात अचानक चार घंटे बाद से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने क्या कहा था- अपने घर की देहरी को ‘लक्ष्मण रेखा’ मान लीजिये... कोई बाहर नहीं निकलेगा...जो जहाँ है, वहीं रहेगा.
यह और बात है कि लॉकडाउन का मतलब कर्फ्यू नहीं होता और लोगों को जरूरी सामान (दूध, सब्जी, फल, दवा आदि) खरीदने के लिए पास की दूकानों तक जाने की छूट थी, अब भी है. लेकिन प्रधानमंत्री ने ‘जो जहाँ है, वहीं रहेगा’ की नसीहत या चेतावनी को बाद में भी दुहराया, जो गलत भी नहीं था.
अब सवाल है कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने उत्तराखंड या कोटा से अपने लोगों को लाने का जो फैसला किया, उस पर अमल भी किया, वह लॉकडाउन का उल्लंघन था या नहीं? प्रधानमंत्री की ‘जो जहाँ है, वहीं रहेगा’ की नसीहत के खिलाफ था या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि योगी के फैसले और कृत्य को प्रधानमंत्री का मौन समर्थन हासिल है? या कि श्री योगी प्रधानमंत्री को ही चुनौती दे रहे हैं? यदि योगी ने सराहनीय कार्य किया है, जैसा कि बहुत लोग मान रहे हैं, और प्रधनमंत्री ने भी इसके खिलाफ कुछ नहीं कहा है, तो क्या खुद प्रधानमंत्री को बिहार, झारखण्ड, राजस्थान आदि राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस विषय में चर्चा नहीं करनी चाहिए? नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन तो यही कह रहे हैं कि हम केंद्र के निर्देशों और फैसले के अनुरूप काम कर रहे हैं. क्या उनका ऐसा कहना गलत है? तीन दिन पहले जब केरल सरकार ने अपने स्तर पर अपने राज्य में लॉकडाउन में छूट संबंधी कोई निर्णय लिया, तो केंद्र ने तत्काल आपत्ति की, जिसके बाद केरल सरकार ने अपना फैसला बदल भी दिया. तो उत्तराखंड से तीर्थ यात्रियों को बसों में भर कर उप्र और गुजरात ले जाने, फिर कोटा (राजस्थान) से छात्रों को उप्र लाने पर केंद्र को ऐतराज क्यों नहीं हुआ, यह समझ से परे है.
अब तो केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी उप्र सरकार के उस ताजा फैसले से असहमति जताई है, जिसमें बाहर फंसे राज्य के मजदूरों को वापस लाने की बात कही गयी है. श्री गडकरी ने गत 25 अप्रैल को एनडीटीवी से बात करते हुए ज़ोर देकर कहा कि जो मज़दूर जहाँ है, उसे वहीं रोज़गार देने और उसका ख़्याल रखे जाने की ज़रूरत है. मौजूदा हालात में उसे अपने गृह राज्य ले जाना ग़लत है. वे यदि अपने गाँव जाएंगे, तो उनके साथ संक्रमण भी जाएगा और वे अधिक लोगों को संक्रमित करेंगे.
बेशक घरों से दूर फंसे लाखों प्रवासियों को यदि उनके घर पहुँचाया जा सके, तो इस दिशा में निश्चय ही सोचना चाहिए, कुछ करना चाहिए. संबद्ध राज्य पर इससे खर्च और बाहर से आये हजारों- लाखों लोगों की मुकमी जांच और उन्हें अलग रखने का इंतजाम करना होगा. इसके लिए
लेकिन इस दिशा में पहल का मूल दायित्व केंद्र का है. इसके लिए उसे केंद्र से मदद मिलनी चाहिए. कोई मुख्यमंत्री इस मामले मनमाना फैसला करे, यह सही नहीं है; उसे नायक के रूप में चित्रित करना भी उचित नहीं है; और न ही जो केंद्र से निर्देश का इन्तजार कर रहा है, उसे बेचारा और खलनायक बताना.