श्रद्धांजलि - अपनी शायरी से हमेशा हमारे बीच रहेंगे शौक जालंधरी

वीना श्रीवास्तव

मशहूर वरिष्ठ शायर सैमुअल डेनियल जनाब शौक जालंधरी जी का निधन अपना जन्मदिन मनाने से एक दिन पहले हो गया. उनके निधन से अदब की दुनिया को भारी क्षति हुई है. व्यक्तिगत रूप से मुझे बेहद दुख है. वह मेरे पिता समान थे. आज लग रहा है मैंने फिर से अपना पिता खो दिया है. एक साल से उनकी जो तबियत बिगड़ी फिर वो सुधर नहीं सकी. शौक साहब शायरी में ही जीते थे, उसी में सोते, उठते, बैठते थे. हर वक़्त उनके जहन में सिर्फ मिसरे और शेर घूमा करते थे. उनकी अधिकांश शायरी बा- मकसद ही लिखी गई. एक तरफ जहां उन्होंने मसीही शायरी की, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने देश - समाज और समाज में फैली नफरत के खिलाफ खूब लिखा.
पहला शेर उन्होंने हिंदुस्तान पाकिस्तान बंटवारे  के समय रिफ्यूजी कैंप में रह रहे लोगों का दर्द देखकर, महसूस करके लिखा जिसका दूसरा मिसरा कुछ यूं था 
(जो किसी के काम न आए वो बशर क्या है).  एक साल पहले तक वह रोज ही या हर दूसरे दिन फोन करके अपना शेर सुनाते थे और कहते थे- बेटे आज ये शेर हुआ है मैंने सोचा पहले अपनी बेटी को सुनाऊँ. कुछ समय से वो लोगों को पहचान नहीं पा रहे थे. कुछ दिन पहले जब उनसे मिली तो भाभी जी (उनकी बहू) ने कहा कि वो आपको ज़रूर पहचानेंगे और हुआ भी यही. दादा ने कहा सबको भूल जाऊं पर अपनी बेटी को नहीं भूल सकता.
उनको शहरयारे ग़ज़ल, पासबाने अदब, आफताबे अदब आदि सम्मान मिले. अक्सर वह अपने मुशायरे से जुड़े किसे सुनाया करते थे. वह रायपुर में काफी बरस रहे और उर्दू अकैडमी के  वाइस प्रेसिडेंट भी रहे. वह एक जिम्मेदार शायर ही नहीं बल्कि एक जिम्मेदार पति, जिम्मेदार बेटा और पिता थे. अपने  परिवार की खातिर वह फिल्मी दुनिया में नहीं गए. उनके पास कई ऐसे मौके आये जब वह मुंबई की मायानगरी जा सकते थे लेकिन अपनी जिम्मेदारियों के चलते वह नहीं गए. उनके जाने से साहित्य जगत को भारी क्षति पहुंची है. हालांकि  अपनी शायरी से वह हमेशा हमारे बीच रहेंगे.

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