हैदराबाद: एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बुधवार को कहा कि तीन तलाक को आपराधिक कृत्य बनाए जाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित अध्यादेश से मुस्लिम महिलाओं के साथ और अन्याय होगा। अध्यादेश को महिला-विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि यह संविधान के अंतर्गत दिए गए मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।
हैदराबाद के सांसद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक पर अपने फैसले में कहा था कि अगर एक व्यक्ति तीन तलाक कहता है तो शादी निरस्त नहीं होगा।
उन्होंने कहा, "तो फिर आप किसके लिए उसे सजा देना चाहते हो?"
ओवैसी ने कहा कि सबूत का बोझ भी महिला पर डाल दिया गया है, जो कि महिला के साथ एक और अन्याय है।
इस प्रावधान पर कि पति महिला को गुजारा भत्ता प्रदान करेगा, पर उन्होंने कहा कि कैसे तीन साल तक जेल में रहने वाला व्यक्ति गुजारा भत्ता देगा।
उन्होंने कहा, "इस्लाम में शादी एक नागरिक अनुबंध है और इसे दंडनीय अपराध बनाना पूरी तरह गलत है।"
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ओवैसी ने कहा कि उनके निजी विचार में बोर्ड को सर्वोच्च न्यायालय में इस अध्यादेश को चुनौती देना चाहिए क्योंकि ऐसा करने के लिए मजबूत आधार है।
सांसद ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सच में महिलाओं को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें पतियों द्वारा छोड़े गए 24 लाख महिलाओं के लिए एक कानून लाना चाहिए।
ओवैसी ने कहा, "ये 24 लाख महिलाएं जिनमें 22 लाख हिंदू महिलाएं शामिल हैं, विवाहित हैं, लेकिन वे अपने पतियों के साथ नहीं रह रही हैं।"
उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश मोदी सरकार की पेट्रोल व डीजल की बढ़ी कीमतें, रुपये का अवमूल्यन और नौकरियों की कमी, कश्मीर में अस्थिरता से ध्यान बंटाने का प्रयास है।
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