झारखंड में राजनीतिक हलचल तेज है। झारखंड स्थापना से अब तक 22 वर्षों में अनेक बार सत्ता का परिवर्तन हुआ है, आगे भी होगा। परंतु क्या झारखंडी जन अर्थात आदिवासी- मूलवासी की जीवन में कोई परिवर्तन हो सका है? नहीं। उसका सपना "अबुआ दिसुम- अबुआ राज" के खिलाफ सब कुछ हो रहा है। तब क्या झारखंडी जन पार्टियों / नेताओं को कोसने के बदले निम्न नीति- सूत्र पर चिंतन मंथन कर एक नया झारखंड, अपने सपनों के झारखंड को सच बनाने के सार्थक पहल में भागीदारी निभा सकेगा ?
1) झारखंडी रोजगार नीति: झारखंड की सभी सरकारी/ गैर सरकारी नौकरियों/ रोजगार का लगभग 90% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाए। फिर उसको प्रखंडवार कोटा बनाकर केवल प्रखंड के आवेदकों से भरा जाए। तुरंत भरा जाए।
2) झारखंडी भाषा नीति: झारखंड की 5 आदिवासी भाषाएं + 4 मूलवासी भाषाएं ही झारखंडी भाषाएं हैं। इनको समृद्ध किया जाए। बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर स्थापित झारखंड प्रदेश वस्तुत: एक आदिवासी प्रदेश है। अतः अविलंब एक आदिवासी भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा देना अनिवार्य है। आठवीं अनुसूची में शामिल एकमात्र झारखंडी भाषा- संताली भाषा को प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जा सकता है।
3) झारखंडी स्थानीयता नीति: झारखंड और वृहद झारखंड की मांग खतियान आधारित नहीं था और अब भी नहीं है। झारखंड के पड़ोस में स्थापित बिहारी, बंगाली, उड़िया आदि उप- राष्ट्रीयता से भिन्न झारखंडी उप- राष्ट्रीयता को स्थापित कर विकास के पथ पर राजकीय स्वायत्तता (ऑटोनॉमी) के साथ अग्रसर करने का एक सपना था और है। झारखंड को माँगने वाले आदिवासी- मूलवासी (झारखंडी) को स्थापित करना ही झारखंडी स्थानीयता नीति बनाने का मूल लक्ष्य हो सकता है। जो बाकी उप- राष्ट्रीयता की तरह उनकी भाषा -संस्कृति और जातिगत पहचान (सूची) से स्वत: स्थापित है। अतएव आदिवासी- मूलवासी ही झारखंडी हैं, स्थानीय हैं।
आदिवासी सेंगेल अभियान का झारखंडी जन से अपील है उपरोक्त नीति-सूत्र पर चिंतन मंथन कर एक आम सहमति बनाई जाए। इससे भी बेहतर कोई नीति- सूत्र बन सके तो उत्तम है। फिर जन आंदोलन की रणनीति बनाकर अनुशासन के साथ कदम बढ़ाया जाए। जल्द बढ़ाया जाए। जोहार,
- सालखन मुर्मू, पूर्व सांसद
राष्ट्रीय अध्यक्ष, आदिवासी सेंगेल अभियान