नई दिल्ली: भारत के नए प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति एन वी रमण ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। इनमें जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध हटाने का फैसला भी शामिल है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद लगाये गए इंटरनेट प्रतिबंध पर न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल जनवरी में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है। हालांकि उनकी अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से पिछले साल मार्च में इनकार कर दिया था।
आंध्र प्रदेश में कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में जन्मे मृदुभाषी न्यायमूर्ति रमण को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। उनका कार्यकाल 16 महीने से अधिक समय का होगा। 27 अगस्त, 1957 को जन्मे, न्यायमूर्ति रमण 10 फरवरी, 1983 में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए थे। उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और वह 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर कार्यरत रहे।
न्यायमूर्ति रमण को दो सितंबर, 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया था और 17 फरवरी, 2014 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी। पूर्व में, केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति रमण को 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की थी। उन्होंने न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की जगह ली है जो कल सेवानिवृत्त हो गए थे। न्यायमूर्ति रमण अगले साल 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होंगे और उन्हें देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच शीर्ष अदालत में कामकाज में सुगमता रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालनी होगी।