आरएसएसः 2019 के पहले अलग छवि दिखाने की कोशिश

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मोहन भागवत ने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों का बिना नाम लिए बताया कि सभी संगठन स्वायत्त हैं और अपने फैसले खुद करते है। भागवत ने बताने की कोशिश की कि उनके कार्यों की जिम्मेदारी संघ की नहीं है। संघ से उनका रिश्ता सिर्फ इतना है कि उसमें इसके स्वयंसेवक काम करते हैं।

नजदीक आ गए 2019  चुनावों के पहले एक अभियान के तहत आरएसएस ने सोमवार को देश में फैले हिंदुत्व वादी संगठनों से दूरी दिखाने की कोशिश की। इसने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े होेने का भी दावा किया। दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुई तीन दिनों की व्याख्यान माला का उद्घाटन  करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तिरंगे से जुड़े विवाद से भी संघ को अलग करने की कोशिश की।  उन्होंने कहा कि भगवा झंडे को उनका संगठन अपना गुरू मानता है और तिरंगे को इसके जन्म से ही राष्ट्रध्वज का सम्मान देता है।
उन्होंने संघ की तटस्थ छवि पेश की। साथ ही, भागवत ने हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र के निर्माण और हिंदुओं के संगठन के संघ का लक्ष्य बताना नहीं भूले। वह अंग्रेजों के साथ मुसलमानों को हमलावर बताने से भी नहीं चूके ।

‘भविष्य के भारत’ को लेकर संघ के दृष्टिकोण को रखने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में फिल्म जगत और अन्य क्षेत्र की कई हस्तियां भाग ले रही हैं। इनमें मनीषा कोइराला, मधुर भंडारकर, गजेंद्र चैहान और अनु मलिक शामिल हैं। सम्मेलन में अमर सिंह, सुब्रमणियम स्वामी, मनीष तिवारी आदि नेता भी थे।

भागवत ने कहा कि भगवा अपनी परंपरा है और इतिहास में हर जगह मौजूद है। यही वजह है कि संघ इसे अपना गुरू मानता है। इसे दी गई  दक्षिणा से अपना काम चलाता है। तिरंगे के बारे में उन्होंने दावा किया कि फैजपुर के कांग्रेस अधिवेशन में जब इसे फहराया गया तो यह बीच में ही अटक गया था। इसे ठीक करने में संघ के स्वयंसेवक ने सहयोग किया।  

वैसे, इतिहासकार तिरंगे को राष्ट्रध्वज बनाने के संघ के तीव्र विरोध का दस्तावेज पेश करते रहे हैं। इसमें संघ के मुखपत्र में छपा लेख शामिल है। उनका मानना है कि संघ ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया और नागपुर के मुख्यालय में  भगवा ध्वज ही फहराता रहा है। 

भागवत ने इस  सम्मलेन में संघ की एक समन्वयकारी तस्वीर पेश करने की कोशिश की।  उन्होंने कहा कि  इसका कोई एजंडा नहीं है। उन्होंने इससे भी इंकार किया कि संघ परिवार के संगठन किसी नियंत्रण में काम करते हैं।

मोहन भागवत ने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों का बिना नाम लिए बताया कि सभी संगठन स्वायत्त हैं और अपने फैसले खुद करते  है। भागवत ने बताने की कोशिश की कि उनके कार्यों की जिम्मेदारी संघ की नहीं है। संघ से उनका रिश्ता सिर्फ इतना है कि उसमें इसके स्वयंसेवक काम करते हैं। 

सरसंघचालक ने संघ को आजादी के आंदोलन से जुड़ा बताया। आजादी के आंदोलन मेें कांग्रेस की भूमिका को बड़़ा बतया।  संघ के संस्थापक डा हेडगेवार के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधों को के उदाहरण गिनाये । उनके क्रन्तिकारी संगठन  अनुशीलन समिति से संबंधों का दवा किया।   उन्होंने कहा कि शहीद राजगुरू को उनके भूमिगत होने की अवधि में डा हेडगेवार ने मदद की थी। 

इतिहासकार बताते हैं कि आजादी के आंदोलन से संघ ने अपने को दूर रखा।  हेडगेवार असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे।  वह सविनय अवज्ञा आंदोलन में व्यक्तिगत रूप से शमिल हुए  थे। लेकिन उन्होंने संघ को इसमें भाग लेने से रोक दिया था।  इतिहासकारों के मुताबिक, 1942 में संघ ने अंग्रेजों का साथ दिया था। (Courtesy : DrohKaal.com)

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