नकारात्मक वोटिंग हमेशा ‘निगेटिव नहीं’ होती
निःसंदेह ’67 और ’77 का गैरकांग्रेसवाद किसी सैद्धांतिक और वैचारिक सहमति पर नहीं खड़ा था। उसे एक तरह से सिद्धांतविहीन अवसरवादी गंठजोड़ भी कह सकते हैं। लेकिन तत्कालीन स्थितियों में वह अपरिहार्य रणनीति थी। हम सफल भी हुए। वह नकारात्मक वोटिंग ही थी, नगर सकारात्मक उद्देश्य के साथ।
चुनाव, यानी दो या दो से अधिक विकल्पों में से एक को चुनना। भले ही कोई विकल्प हमारे आदर्शों के अनुरूप न हो, पर चुनना पड़ता है। मगर बहुधा एक दुविधा जरूर होती है। जो किसी पार्टी के समर्थक या सदस्य हैं; या जात-धर्म के नाम पर मतदान करते हैं, उनको कोई दुविधा नहीं रहती। लेकिन हम जैसों को रहती है। कंडीडेट देखें या पार्टी को या उस नेता या समूह को, जिसकी धुरी पर चुनाव हो रहा है, जिसकी सरकार बनेगी।। प्रत्याशी का घोषित विचार देखें या उसका आचरण?