नई दिल्ली/भोपाल: आठ महीनों के भीतर, बीजेपी ने मध्य प्रदेश में भी कर्नाटक जैसी ही कहानी दोहराई और कमलनाथ सरकार गिर गई। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले ही शुक्रवार दोपहर कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया। जुलाई 2019 में कर्नाटक में भी पॉलिटिकल ड्रामा चला था। वहां फ्लोर टेस्ट हुआ तो कांग्रेस की सरकार गिर गई थी।
एमपी में भी 2018 में ही विधानसभा चुनाव हुए। 230 सीटों में से बीजेपी ने 109, कांग्रेस ने 114, बीएसपी ने 2, सपा ने एक सीट पाई। चार निर्दलीय भी चुनाव जीते। कमलनाथ ने सपा, बसपा और निर्दलीयों को साधा और राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई। लोकसभा चुनाव में जीत के बाद, बीजेपी ने कोशिशें शुरू कीं। कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में कर लिया। 10 मार्च को सिंधिया खेमे के 22 कांग्रेस विधायक बेंगलुरु चले गए और यहीं से अपना इस्तीफा भिजवा दिया। स्पीकर ने मंत्री रहे 6 विधायकों का इस्तीफा तो स्वीकार कर लिया मगर बाकी 16 पर कोई फैसला नहीं किया। ड्रामा बढ़ता गया।
बीजेपी ने गवर्नर से मांग की कि कांग्रेस सरकार अल्पमत में है और बहुमत परीक्षण कराया जाए। राज्यपाल ने तीन बार कमलनाथ सरकार को पत्र लिखा मगर वह नहीं माने। शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दो दिन बहस के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि 20 मार्च 2020 की शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराया जाए। 19 मार्च की रात तक स्पीकर ने बाकी 16 विधायकों के इस्तीफे भी स्वीकार कर लिए और ये तय हो गया कि कांग्रेस सरकार अब गिर जाएगी। 20 मार्च की दोपहर में कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि वे इस्तीफा दे रहे हैं।
इस्तीफा देने से ठीक पहले कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था, "मेरी सरकार को अस्थिर कर भाजपा प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के साथ विश्वासघात कर रही है। उसे यह भय सता रहा है कि यदि मैं प्रदेश की तस्वीर बदल दूंगा तो प्रदेश से भाजपा का नामोनिशान मिट जाएगा।"