शिक्षाविदों, यूरोपीय संघ के सांसदों, नोबेल पुरस्कार विजेताओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर की अन्य हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधान न्यायाधीश, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अन्य भारतीय प्रशासकों को पत्र लिखकर भीमा कोरेगांव के संबंध में गिरफ्तार किए गए राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की मांग की है. भारत की जेलों में कैद मानवाधिकार रक्षकों की दयनीय स्थिति और उचित मेडिकल देखरेख नहीं होने पर चिंता जताते हुए पत्र में कहा गया कि राजनीतिक कैदियों को कोरोना वायरस के नए और अधिक घातक स्ट्रेन से संक्रमित होने का गंभीर खतरा है.
पत्र में जेलों में अत्यधिक भीड़, पानी और मेडिकल उपकरणों की कमी से कैदियों को होने वाले गंभीर जोखिम की ओर ध्यान दिलाया गया है, और कहा है कि इनमें से कई कोरोना संक्रमित हैं और उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई है.
पत्र में कहा गया, ‘अप्रत्याशित राष्ट्रीय आपदा के समय हम सरकार और अदालत से भीमा कोरगांव घटना के आरोपी 16 कैदियों को रिहा करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करने की मांग करते हैं ताकि भविष्य में किसी तरह की अनहोनी से बचा जा सके.’
उन्होंने कहा कि राजनीतिक बंदी मानवीय आपातकाल का सामना कर रहे हैं. पत्र में कहा गया, ‘भीमा कोरेगांव के दो आरोपियों को परिवार और नागरिकों के जोर देने के बाद हाल ही में सुविधाओं वाले अस्पतालों में भर्ती किया गया है.’
उन्होंने कवि वरवरा राव का भी जिक्र किया, जिन्हें कई हफ्तों तक अस्पताल में रहने के बाद चिकित्सा आधार पर अस्थाई जमानत दी गई.
भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार लोगों में लेखक एवं दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, गढ़चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख रह चुकीं शोमा सेन, अधिवक्ता अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज, लेखक वरवरा राव, कार्यकर्ता वर्नोन गोन्जाल्विस, कैदी अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, यूएपीए विशेषज्ञ और वकील फादर स्टेन स्वामी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेनी बाबू, विद्वान एवं कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और सांस्कृति समूह कबीर कला मंच के सदस्य सागर गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगताप हैं.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रख्यात अकादमिक और भाषाविद नोम चॉम्स्की, यूएन वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन के पूर्व अध्यक्ष जोस एंटोनियो गुएरा बरमुडेज, नोबेल पुरस्कार विजेता ओल्गा तोकार्चुक और वोल सोयिंका, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पार्थ चटर्जी, ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय, मानवाधिकार कार्यकर्ता शाहिदुल आलम, द गार्डियन यूके के पूर्व एडिटर इन चीफ एलेन रूसब्रिजर और पत्रकार नाओमी क्लेन शामिल हैं.