नई दिल्ली: बीते कुछ दशकों से वे संसद के निचले सदन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख चेहरे रहे और उनकी आवाजें हमें सुनाई देती रहीं, लेकिन 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद गठित होने वाली 17वीं लोकसभा में न तो उनके चेहरे अब दिखाई देंगे और न ही उनकी आवाजें सदन में सुनाई देंगी। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, रमेश बैस, बी.सी. खंडूरी, राजेन गोहेन और बिजॉय चक्रवर्ती पार्टी के उन दिग्गजों में शुमार हैं, जिन्हें भाजपा ने इस महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव में नहीं उतारा है, जबकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और फायरब्रांड नेता उमा भारती ने इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है।
इस घटनाक्रम का अपना महत्व है, क्योंकि इसका उद्देश्य सत्तारूढ़ पार्टी में एक पीढ़ीगत बदलाव लाना है। यह वहीं पार्टी है, जो अपने लंबे सफर के दौरान ज्यादातर समय विपक्ष में रही।
भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक और 11 बार सांसद रहे आडवाणी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि पार्टी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गांधीनगर से चुनाव मैदान में उतारा है। आडवाणी ने पार्टी की राजनीतिक जड़ों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
1990 के दशक में आडवाणी के रथ यात्रा निकालने के बाद भाजपा के आकार में वृद्धि हुई। यह यात्रा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए निकाली गई थी।
आडवाणी चार बार राज्यसभा के लिए और सात बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।
आडवाणी के अलावा पार्टी के दिग्गज नेता शांता कुमार (85), कलराज मिश्र (77) और भगत सिंह कोशयारी (77) लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। कानपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले मुरली मनोहर जोशी को भी टिकट नहीं दिया गया है।
2014 में कानपुर से जीत दर्ज करा चुके जोशी 1991 से 1993 के बीच भाजपा अध्यक्ष रहे थे और उन्होंने संसद में इलाहाबाद व वाराणसी का भी प्रतिनिधित्व किया है। नरेंद्र मोदी को वाराणसी से चुनाव मैदान में उतारने के पार्टी के फैसले के बाद उन्हें 2014 में कानपुर भेजा गया था।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद आडवाणी और जोशी को भाजपा के शीर्ष नेताओं में शुमार किया जाता है। लेकिन शाह के अध्यक्ष पद संभालने के बाद उन्हें भाजपा की शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय संसदीय बोर्ड में जगह नहीं दी गई। इसके बजाए शाह ने मार्गदर्शक मंडल बनाया, जिसमें जोशी व आडवाणी के साथ प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और शाह खुद इसके सदस्य बने।
हिमाचल प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ाने में मदद करने वाले शांता कुमार पहाड़ी राज्य के कांगड़ा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार वहां से 1989 में पहली बार निर्वाचित हुए थे, इसके बाद वह 1998, 1999 और 2014 में निर्वाचित हुए। आखिरी बार वह 1.7 लाख मतों के रिकॉर्ड अंतर से जीते थे।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश की देवरिया संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे कलराज मिश्र भी भाजपा के प्रमुख चेहरों में शामिल हैं। उनके अलावा बिहार के मधुबनी का प्रतिनिधित्व करने वाले हुकुमदेव नारायाण यादव, झारखंड के भाजपा नेता करिया मुंडा, छत्तीसगढ़ से आने वाले बैस, उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करने वाले कोशयारी जैसे दिग्गज चेहरे संसद में दिखाई नहीं देंगे।
वहीं बिजॉय चक्रवर्ती और राजन गोहेन असम से भाजपा के प्रमुख चेहरे रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में होंगे और नतीजों की घोषणा 23 मई को की जाएगी।