मोदी के आगमन पर.. कश्मीरी पंडितों ने अमेरिका में अनुच्छेद 370 पर निकाली समर्थन रैली

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

ह्यूस्टन: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने के भारत सरकार के फैसले का प्रवासी कश्मीरी पंडितों ने समर्थन किया है। संगठन 'द ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा' (जीकेपीडी) ने कहा कि वह इस बात को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए प्रधानमंत्री और भारत का स्पष्ट रूप से समर्थन करेगा कि 370 के हटने से कश्मीर में मानवाधिकारों को बढ़ावा मिलेगा।

ह्यूस्टन में रविवार को भारतीय प्रधानमंत्री के बहुप्रतीक्षित 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम से पहले मोदी ने कश्मीरी पंडित समुदाय के 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की।

जीकेपीडी ने अमेरिका के सिविल सोसाइटी के सदस्यों और समुदाय के संगठनात्मक प्रमुखों के एक समूह की अगुवाई की। उन्होंने मोदी को एक ज्ञापन भी सौंपा।

मोदी ने मुलाकात के दौरान कहा कि कश्मीरी पंडितों ने एक समुदाय के रूप में जो दर्द झेला हैं, उसे वह समझते हैं।

90 के दशक की शुरुआत में आतंकवाद के चरम पर होने के दौरान इस समुदाय को कश्मीर घाटी से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया गया था। जीकेपीडी ने प्रधानमंत्री के हवाले से कहा, "आप, कश्मीरी पंडित और हम सभी मिलकर नए कश्मीर का निर्माण करेंगे।"

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को साहसिक बताते हुए संगठन के अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक, सुरिंदर कौल ने आशा व्यक्त की कि लंबे समय से चली आ रही न्याय की मांग और घाटी में एक सुरक्षित और स्थायी मातृभूमि की मांग पूरी होगी।

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने के भारत सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए अमेरिका में कश्मीरी पंडितों ने रैली निकाली। भारत सरकार ने पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केन्द्रशासित प्रदेश बनाने का फैसला किया था। कश्मीरी पंडितों ने भारतीय अमेरिकी समुदाय के अन्य लोगों के साथ अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के समर्थन में अटलांटा में ‘सीएनएन’ मुख्यालय के समक्ष पिछले सप्ताह रैली निकाली। 

कश्मीरी मूल के अटलांटा निवासी और ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन अमेरिकन एसोसिएशन’ (एनएफआईए) के पूर्व अध्यक्ष सुभाष राजदान ने कहा, "रैली ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जम्मू- कश्मीर से संबंधित इन अस्थायी अनुच्छेदों में इन संशोधनों की आवश्यकता थी, क्योंकि ये लगभग सभी कश्मीरी अल्पसंख्यकों (जैसे शिया, दलित, गुर्जर, कश्मीरी पंडित, कश्मीरी सिखों) के खिलाफ अत्यधिक भेदभावपूर्ण थे।"

रैली में कश्मीरी पंडितों ने अपने विस्थापन और अपनी मातृभूमि वापस जाने की तड़प के बारे में बताया, जो उन्होंने 1990 में आतंकवाद के कारण छोड़ी थी। राजदान ने कहा कि मोदी सरकार के इस कदम से भारत के हिंदुओं, मुस्लिमों, सिखों, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों को कानून के समक्ष बराबरी का अवसर मिलेगा। 

इस बीच, ‘लैंसेट’ पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. रिचर्ड होर्टन को लिखे एक पत्र में कश्मीरी-मूल के प्रवासी चिकित्सकों ने कहा कि 17 अगस्त को प्रकाशित उनकी हालिया राय में कई प्रासंगिक तथ्यों की अनदेखी की गई है। 

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