नई दिल्ली: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने यह संकेत दिया है कि कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की वापसी अभी भी परिणाम दे सकती है, राजनीतिक हालात चाहे जो भी हों। चुनाव परिणाम पर सोनिया गांधी और पटेल की छाप भी है। जब पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारी शुरू की, तब इसके सामने कई समस्याएं थीं। पार्टी के पास सीमित संसाधन थे और पैसे की बड़ी किल्लत थी। महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस में एक नई जान फूंक दी है और पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ने की तैयारी में जुट गई है।
कांग्रेस ने अपने कामकाज को धार देने और पार्टी व राष्ट्र के सामने मौजूद विभिन्न मुद्दों पर अपना रणनीतिक रुख तय करने के लिए अगले कुछ दिनों के दौरान कई बैठकें बुलाई है।पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, शुक्रवार को विनिवेश, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) जैसे मुद्दों पर चर्चा करेगी।
राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने से पहले पटेल ने पार्टी मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनकी आवाज को एक कमांड माना जाता था। राहुल युग के दौरान उन्होंने अपने आप को सीमित कर लिया था। लेकिन पटेल ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को पराजित कर अपनी ताकत का अहसास कराया था, जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गुजरात के मामले को देख रहे थे। राहुल के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद पटेल दोबारा सक्रिय हो गए हैं। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा की वापसी को भी पार्टी के सत्ता के गलियारे में उनकी उपस्थिति की घोषणा करती है। दोनों नेताओं को पटेल का करीबी माना जाता है।
हरियाणा के पार्टी अध्यक्ष अशोक तंवर के राहुल का करीबी होने के बावजूद पटेल ने हुड्डा को बड़ी भूमिका निभाने देने के लिए उन्हें राजी किया। उसी तरह महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण की जगह बालासाहेब थोरात को कमान सौंपी गई, और मिलिंद देवड़ा की जगह एकनाथ गायकवाड़ को जिम्मेदारी दी गई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ आराम से हुए सीटों के बंटवारे का भी श्रेय पटेल को जाता है। यद्यपि कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट पाई है, लेकिन उसने अच्छा प्रदर्शन किया है, और यह विषम परिस्थितियों में इस अच्छे प्रदर्शन ने टीम सोनिया की वापसी के संकेत दिया है जिसने 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था और उसके बाद 2009 में भी लगातार केंद्र में अपनी सरकार को बरकरार रखा था।