जुआन रुल्फो की कहानी ‘उनसे बोलो मेरा कत्ल न करें’ अनुवाद : यादवेन्द्र

यह जीवन अमूल्य है। इस जीवन की अहमियत तब समझ आती है जब सामने मौत खड़ी हो। जुवेन्सियो ऐसा ही एक पात्र है जो मौत से बचने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अंततः एक दिन उसका सामना मौत से होता है। मैक्सिको के कहानीकार जुआन रुल्फो अपनी कहानी ‘उनसे बोलो मेरा कत्ल न करें’  में जिस बारीकी के साथ इस कथ्य का ताना बाना बुनते हैं वह क्लासिकल लगता है। इस कहानी का अनुवाद किया है जाने माने अनुवादक और रचनाकार यादवेन्द्र ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं जुआन रुल्फो की कहानी ‘उनसे बोलो मेरा कत्ल न करें’।     

    

उनसे बोलो मेरा क़त्ल न करें

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निश्छल प्रेम और जड़ से जुड़े रहने की गाथा है ‘जंगल के आगे’

1968 में ब्लैकवूड द्वारा प्रकाशित सीता रत्नमाला की ‘जंगल के आगे’ आत्म स्ंास्मरण निश्छल प्रेम और जड़ से जुड़े रहने की अनूठी गाथा है. यद्यपि मौलिक रूप से यह आत्म संस्मरण अंग्रेजी में ‘बियोंड द जंगल’ (1968) के नाम से प्रकाशित है, लेकिन भारत के इस पहले आदिवासी आत्म संस्मरण का हिंदी अनुवाद कर अश्विनी कुमार पंकज ने आत्मकथा पढ़ने के अभ्यस्त हिंदी के पाठकों को अलग किस्म के ‘आत्मकथा’ (आत्म संस्मरण) से एकाकार होने का अवसर प्रदान किया है. यह आत्म संस्मरण इस दृष्टि से खास है कि इसमें न तो आत्मकथा की तरह व्यक्तिगत पहचान पर जोर है और न ही व्यक्तिगत उपलब्धियों का बखान.

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'Toxic' is Oxford Dictionaries' Word of the Year

London: Oxford Dictionaries announced that it has chosen "toxic" as its annual "Word of the Year", arguing that it was "the sheer scope of its application that has made it the standout choice".

Strictly defined as "poisonous", Oxford Dictionaries said on its website Thursday that its research showed that "this year more than ever, people have been using 'toxic' to describe a vast array of things, situations, concerns and events", CNN reported.

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उम्मीदों की बरसात करने वाली पुस्तक है- फैसले जो नज़ीर बन गये 

भारतीय न्यायपालिका की स्वायत्तता एवं निष्पक्षता को लेकर चाहे न्यायविदों, राजनीतिज्ञों या आम आदमी के बीच जितनी भी बहस होती रही हों या समय-समय पर देश के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा न्यायपालिका पर गंभीर टिप्पणियां की जाती रही हों, पर सच यह है कि भारतीय जनता न्याय के लिए अंततः सर्वोच्च न्यायालय की ही बांट जोहती है। निचली अदालतों से लगातार निराश हुए व्यक्तियों व समूहों को भी सर्वोच्च न्यायालय से ही समय-समय पर राहत मिलते रहा है। यही कारण है कि आज भी भले जिस रूप में भी, भारतीय लोकतंत्र की शाख बची हुई है। लोकतंत्र की अनिवार्य शर्तों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि समाज के हर तबके को समुचित अधिकार प्

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