नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कृषि सुधार कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि यदि कानून ने उक्त पैनल की सिफारिश की है तो वह इसे लागू करने पर विचार करेगा।
केंद्र सरकार को इंगित करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, "बात यह नहीं कि आप पर विश्वास है या नहीं, हम भारत के सर्वोच्च न्यायालय हैं, हम अपना काम करेंगे।"
न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि क्या वह नए कृषि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगानेवाला है? जिसको लेकर किसानों के समूहों में विरोध है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर केंद्र ऐसा नहीं करता तो यह कानून बना रहेगा।
हालांकि, सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की मिसाल का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें कानून नहीं बना सकती हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार और किसानों की यूनियनों के बीच कृषि सुधार कानूनों को लेकर जिस तरह से बातचीत चल रही है, उससे वह निराश हैं।
शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि इसमें "एक भी याचिका" नहीं है, जिसमें कहा गया हो कि उक्त कृषि सुधार कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
हजारों किसान, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा से, दिल्ली की सीमाओं के पास धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध 26 नवंबर से शुरू हुआ।
किसान नए कृषि सुधार कानूनों की पूर्ण वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को बनाए रखने की गारंटी की मांग कर रहे हैं।
केंद्र और किसान संघ के नेताओं के बीच अबतक करीब आठ दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन गतिरोध में समाप्त नहीं हुई। विरोध कर रहे किसानों को डर है कि नए कानून, कॉर्पोरेट की कृषि क्षेत्र में घुसपैठ एमएसपी प्रणाली को नष्ट कर देंगे। जबकि केंद्र और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कह रही है कि इन कानूनों से किसानों को फायदा होगा।