रांची: झारखंड के कई जन संगठनों के संयुक्त मंच 'झारखंड जनाधिकार महासभा' ने रांची के मनरेसा हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया है कि प्रदेश की रघुवर सरकार अपने पांच सालों में कुशासन और संवैधानिक उल्लंघन के लिए कुख्यात हुई है। महासभा ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि रघुवर दास की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार झारखंड की पहली सरकार है जिसने अपने पांच सालों का समय पूरा किया। यह एक मौका था राज्य को नयी दिशा देने की एवं न्याय और समानता आधारित विकास की ओर ले जाने का। लेकिन भाजपा शासन के पांच सालों में भ्रष्टाचार और जन-विरोधी विकास (जो 2000 से विभिन्न सरकारों के शासन में चले आ रहा था) को और बढ़ौतरी मिली। लोगों के जनादेश के विपरीत, भाजपा ने अपनी राजनैतिक स्थिरता का इस्तेमाल हिदुत्व विचारधारा के विस्तार और कॉर्पोरेट घरानों के पक्ष में नीतियों को बनाने में लगा दी।
सत्ता में आने के कुछ दिनों में ही भाजपा सरकार ने छोटानागपुर और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियमों (CNTA व SPTA) को बदलने की कई कोशिशें की। इसका मुख्य उद्देश्य था खेती-योग्य भूमि को गैर-खेती (व्यावसायिक) इस्तेमाल में बदलना एवं इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को आसान करना। लेकिन व्यापक जन विरोध के कारण सरकार इन कानूनों को बदलने में सफल नहीं हुई। इसके बाद सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में ग्राम सभा द्वारा अनुमोदन एवं सामाजिक व पर्यावरण प्रभाव आंकलन के प्रावधानों को कमज़ोर कर दिया। इन संशोधनों का इस्तेमाल कर के सरकार ने गोड्डा में अडानी परियोजना के लिए आदिवासियों की सहमति के बिना उनकी ज़मीन को अधिग्रहित कर लिया।
भाजपा सरकार द्वारा आदिवासियों और मूलवासियों की सार्वजनिक ज़मीन (जैसे नदी, सड़क, तालाब, धार्मिक स्थल आदि) को “लैंड बैंक” में डालना भी कंपनियों के लिए बिना ग्राम सभा की सहमती के ज़मीन अधिग्रहित करने का एक तरीका है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भाजपा सरकार ने पूर्ण बहुमत के बावज़ूद भी पेसा और पांचवी अनुसूची के प्रावधानों और कानूनों को लागू नहीं किया।
इस सरकार की एक और प्रमुख पहचान रही इसके शासन में अल्पसंख्यकों पर लगातार हमलें एवं धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशें। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक आदिवासियों को हिंदुत्व खेमे में घीचने के लिए उन्हें हिन्दू (सनातन) धर्मं का हिस्सा बताने पर तुली रही। 2017 में बनें धर्मान्तरण निषेध कानून का इस्तेमाल सरना और ईसाई आदिवासियों के बीच दरार डालने के लिए किया गया। पिछले पांच वर्षों में कम-से-कम 21 लोगों को भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारा गया है। इनमें कम-से-कम 10 मुसलमानों और 3 आदिवासियों को धर्म या गाय के नाम पर मारा गया। ज़्यादातर घटनाओं में पुलिस की भूमिका अपराधियों के पक्ष में थी। सांप्रदायिक घटनाओं का विरोध तो दूर, भाजपा नेताओं ने तो मारने वालों को फूल-मालाओं से सम्मानित किया। कई पीड़ितों पर पुलिस ने ‘गौवंश हत्या अधिनियम’ अंतर्गत मामला भी दर्ज किया। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि संघ परिवार का एक प्रमुख नारा ‘जय श्री राम’ का इस्तेमाल भीड़ द्वारा लोगों को मारते समय किया गया।
पिछले पांच सालों में लोगों के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का भी व्यापक उल्लंघन हुआ है। सरकार ने लाखों योग्य परिवारों का राशन कार्ड, सामाजिक सुरक्षा पेंशन व नरेगा जॉब कार्ड रद्द कर दिया क्योंकि वे आधार से जुड़े नहीं थे। जन वितरण प्रणाली में आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था के कारण अनेक कार्डधारियों को राशन लेने में कठिनाओं का सामना करना पड़ता है। लाखों योग्य परिवार अभी भी राशन से वंचित हैं क्योंकि सरकार ने राशन कार्ड की सूचि, जो 2011 के सामाजिक-आर्थिक जनगणना पर आधारित है, को अपडेट नहीं किया है। वृद्ध, विधवा व विकलांग लोगों की लगभग आधी आबादी सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के दायरे से बाहर हैं। काम की अनुप्लब्द्धता और मज़दूरी भुगतान में देरी के कारण नरेगा की स्थिति बेहद ख़राब है। पिछले कई सालों से नरेगा में मज़दूरी दर के वास्तविक स्तर में बढौतरी नहीं हुई है। पिछले पांच वर्षों में आदिवासी और दलित परिवारों का कुल नरेगा मज़दूरी में हिस्सा 50% से गिर कर 36% हो गया है। इन उल्लंघनों और नीतियों के कारण रघुवर दास के कार्यकाल में कम-से-कम 22 भूख से मौतें हुई हैं।
पर्याप्त रोज़गार के अभाव में राज्य के युवा बड़ी संख्या में अन्य राज्यों में पलायन कर रहे हैं। नोटबंदी के बाद लाखों झारखंडी, जो असंगठित क्षेत्र में मज़दूरी करते थे, बेरोज़गार हो गए थें। 2018 में झारखंड का बेरोज़गारी दर 7।5% था, जबकि देश का औसतन दर 6।1% था। सरकारी नौकरियों के हजारों रिक्तियों को नहीं भरा गया। भाजपा सरकार द्वारा बनायीं गयी डोमिसाईल नीति के कारण राज्य के आदिवासी मूलवासियों के लिए रोज़गार मिलना और भी मुश्किल हो गया। साथ ही, सरकार लोगों से अपेक्षा करती है कि वे ये सब चुप-चाप देखते रहे। हाल ही में, सरकार ने आंगनवाड़ी कर्मियों, जो मज़दूरी में बढ़ौतरी और स्थायीकरण की मांग कर रहे थे, पर लाठी-चार्ज किया था।
भाजपा शासन में लोकतान्त्रिक अधिकारों पर दमन में काफी बढ़ौतरी हुई है। CNT-SPT कानून में संशोधन के विरुद्ध प्रदर्शन करने वाले अनेक लोगों को पीटा गया; कईं की तो पुलिस की गोलियों से मौत भी हो गयी। खूंटी के ही कम-से-कम 14000 ग्रामीणों पर देशद्रोह के फ़र्ज़ी आरोप पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं पर केवल फेसबुक पर पत्थलगड़ी गावों में सरकारी दमन पर सवाल उठाने के लिए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।
कश्मीर से धारा 370 हटाने और असम में नागरिकों का राष्ट्रिय रजिस्टर (NRC) बनाने की प्रक्रिया में की जा रही राजनीति से ही भाजपा की नफ़रत, ध्रुवीकरण और तानाशाही की विचारधारा बेनकाब हो गयी है। NRC के नाम पर, भाजपा की केंद्र और असम सरकार मुसलमानों को बंगलादेशी अवैध प्रवासी बताकर देश से निकालने की बात करते रहती है। साथ ही, केंद्र सरकार ने कश्मीर के वासियों की सहमति के बिना धारा 370 को कमज़ोर कर के राज्य को केंद्र-शासित प्रदेश में परिवर्तित कर दिया। वहाँ की ज़मीन के संरक्षण वाले संवैधानिक प्रावधान (धारा 35A) को भी निरस्त कर दिया। यही नहीं, तीन महीनों से लाखों कश्मीरियों को उनके ही राज्य में कैदियों जैसा रखा जा रहा है। झारखंड में भी भाजपा, अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए, NRC और 370 को मुद्दा बनाके लोगों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है।
झारखंड में लोगों के जनाधिकारों पर लगातार हमलों के लिए विपक्षी दलें भी ज़िम्मेवार हैं। ये शायद ही कभी इन हमलों के विरुद्ध एवं लोगों के संघर्षों के साथ खड़े दिखे। इन हमलो के बावज़ूद विपक्षी दलों में राजनैतिक एकता न होना यह दर्शाता है कि जन मुद्दे उनकी प्राथमिकताओं में भी नहीं हैं।
झारखंड जनाधिकार महासभा, जो सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन संगठनों का मंच है, भाजपा को चुनौती देती है कि वो जन मुद्दों, और न कि हिन्दू राष्ट्रवाद और ध्रुवीकरण की राजनीति, पर विधान सभा चुनाव लड़ के दिखाए। महासभा विपक्षी दलों से भी मांग करती है कि वे लोगों के साथ खड़े हों एवं उनके मांगों पर स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाएं