ममता बनर्जी बहुत चतुर राजनीतिक हैं और आगे बढ़कर मोर्चा लेने की हिम्मत रखती हैं। उनका राजनीतिक ग्राफ देखेंगे तो यही पाएंगे। रविवार को ममता ने सीबीआई के जरिये सीधे मोदी-शाह पर दांव आजमाया है। पिछले एक हफ्ते का राजनीतिक घटनाक्रम देखें। शनिवार को नॉर्थ चौबीस परगना व दुर्गापुर में प्रधानमंत्री की रैलियां थीं। रविवार को कोलकाता में वामदलों की रैली थी और पटना में कांग्रेस की। रविवार की दोनों रैलियां बेहतर रहीं। बंगाल में वामदलों का मजबूत होना ममता के लिए बड़ा खतरा है। क्योंकि वामदल मजबूत हुए तो यकायक ममता के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी। वहीं, बंगाल में कमजोर टर्फ पर खेल रही भाजपा यदि मुकाबले में दिखाई दे तो ममता के लिए राजनीतिक रूप फायदेमंद साबित होगा। बंगाल में करीब ३० फीसदी मुस्लिम आबादी हैं। ममता की नजर केंद्र की राजनीति पर भी है। ममता के लिए सबसे अच्छा यह रहेगा कि २०१९ के आम चुनाव में किसी को बहुमत न मिले। ऐसे में उनके लिए मौका बन सकता है। लेकिन यदि कांग्रेस मजबूत होती गई और यूपीए का दायरा बढ़ गया तो ममता के लिए संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी।
ममता की रणनीति स्पष्ट है। उनकी कोशिश है कि बंगाल में ममता बनाम भाजपा का माहौल बन जाए। यदि यह माहौल बन गया तो वामदलों व कांग्रेस को झख मारकर उनके पीछे आना पड़ेगा। ऐसे में सबसे ज्यादा फायदा ममता को ही होगा। अभी हाल में बंगाल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों के आकड़े इस बात तस्दीक करते नजर आते हैं। टीएमसी ने जिला परिषद की 95 फीसदी, पंचायत समिति की 90 फीसदी और ग्राम पंचायतों की 73 फीसदी सीटों पर कब्जा किया। भले ही भाजपा खुद को बंगाल की नंबर दो पार्टी घोषित करती रहे लेकिन ये आकड़े बताते हैं कि भाजपा को अपनी जगह बनाने में बहुत वक्त लगेगा। ममता की रणनीति स्पष्ट थी कि भाजपा को सबसे बड़े खतरे के रूप में उभारो, राज्य के ३० फीसदी मुसलिम मतदाताओं का समर्थन स्वत: मिल जाना है।
और, यदि मुकाबला बहुकोणीय रहा तो सबसे ज्यादा नुकसान ममता को और सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को होगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद ममता ने बंगाल की ४२ सीटों में से ३५ जीतीं थीं। इस बार स्थितियां अलहदा हैं। वामदलों ने अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन रविवार को कोलकाता में किया तो कांग्रेस तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नये उत्साह से भरी नजर आ रही है। प्रियंका के खुलकर राजनीति में आने से यह उत्साह और मजबूत हुआ है।
सीबीआई से मुचेटा लेकर ममता ने सीधे मोदी-शाह से मुचेटा ले लिया है। इस पूरे मामले में विपक्षी वाम व कांग्रेस के पास ममता को समर्थन देने के सिवा कोई दूसरा चारा भी नहीं। बिहार में ऐसा ही हुआ था और कांग्रेस व वामपंथी लालू प्रसाद यादव के पीछे हो लिये थे।
सीबीआई की साख पर सवाल तो पहले से ही उठते रहे हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो घटनाक्रम सामने आया, उससे साख को काफी नुकसान हुआ। ऐसे में सीबीआई पर हमला करने की रणनीति सबसे मुफीद है। ममता के इस हमले के बाद देश भर के विपक्षी दल उनके साथ खड़े नजर आने लगे हैं। भाजपा भक्त ममता को विलेन के तौर पर जितना स्थापित करने की कोशिश करेंगे, ममता उतनी ही मजबूती से भाजपा विरोधी ताकतों की धुरी बनती चली जाएंगी। यह तो तथ्य है ही कि सीबीआई पर उंगली सब उठाते रहे हैं लेकिन कांग्रेस से लेकर अखिलेश-मायावती, चंद्रबाबू तक, किसी ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई।
ममता की निगाह दिल्ली पर है, यह सबको पता है। ममता को लगता है कि लोकसभा में इस बार बहुमत किसी को न मिलेगा। इसीलिए वह विपक्षी एकता की लगातार कोशिश करती रहीं लेकिन उनको सफलता सीबीआई तीर ने दिलायी।
अगर, मौजूदा हालात में केंद्र सरकार ममता की सरकार को बर्खास्त करने का कदम उठाती है तो ममता का फायदा और यदि केंद्र सरकार ऐसा नहीं करती है तो भी ममता का फायदा।