नई दिल्ली: लोकसभा ने सोमवार को चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को पारित कर दिया। यह विधेयक मतदाता सूची को आधार संख्या से जोड़ने के पक्ष में है। इसे लागू होने पर मतदाता पंजीकरण अधिकारी मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने के इच्छुक आवेदकों से आधार नंबर मांग सकते हैं।
कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने बहस का जवाब देते हुए कहा कि यह विधेयक देश में महत्वपूर्ण चुनावी सुधार लाएगा। हम चाहते हैं कि पूरा सदन बहस में शामिल हो, लेकिन विपक्षी सदस्य सदन में विरोध और नारेबाजी करते रहे।
रिजिजू ने कहा कि यह विधेयक चुनाव आयोग और राज्य सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लाया गया है और यह देश में चुनावी प्रक्रिया को शुद्ध करेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार कार्मिक एवं प्रशिक्षण, विधि एवं न्याय विभाग की स्थायी समिति की रिपोर्ट की सिफारिश के बाद विधेयक लाई है, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल हैं। विरोध करने वाले सदस्यों ने या तो मसौदा विधेयक को पढ़ा नहीं है या जानबूझकर नए प्रावधानों से अनभिज्ञता दिखा रहे हैं।
रिजिजू ने कहा, 1987 में मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी, लेकिन मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए पात्रता तिथि प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी रखी गई थी। अब नए संशोधन के तहत 1 जनवरी जैसी चार तिथियां होंगी। हर साल 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर, ताकि कोई भी पात्र व्यक्ति 18 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करवा सके।
उन्होंने सदस्यों से विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने की अपील की, क्योंकि यह मतदाताओं और देश के हित में है।
इससे पहले, विधेयक पर बहस करते हुए सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पूछा कि सरकार इस विधेयक को लाने की जल्दी में क्यों है, क्योंकि कई सांसदों ने सरकार से इसे संसदीय समिति को भेजने का अनुरोध किया है।
चौधरी ने कहा, जिस तरह से विधेयक को सुबह पेश किया गया और इतनी जल्दी आज ही पारित किया जाना सही नहीं है। इसे विमर्श के लिए संसदीय स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए।
डीएमके सदस्य टी.आर. बालू ने कहा कि इस विधेयक को और अधिक जनमत की जरूरत है, जबकि बसपा सांसद रितेश पांडे ने कहा कि इस विधेयक पर और अधिक परामर्श की जरूरत है।
विधेयक पर बहस करते हुए टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, कानून मंत्री लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं।
भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि कांग्रेस ने हमेशा देश में संवैधानिक संस्थाओं को नीचा दिखाने की कोशिश की है और उन्होंने भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त को सांसद बनाया है। यहां तक कि उन्होंने फर्जी नागरिकता दस्तावेजों के आधार पर एक नेपाली नागरिक को भी इस सदन के लिए चुना।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक बांग्लादेशी और नेपाली शरणार्थियों को भारतीय मतदाता सूची में शामिल होने से रोकेगा। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां इस विधेयक का विरोध इसलिए कर रही हैं कि इसका उनके वोट बैंक पर असर पड़ेगा।
विपक्षी सदस्य असदुद्दीन ओवैसी और सुप्रिया सुले ने सरकार से और विचार-विमर्श के बाद एक नया विधेयक लाने को कहा, जबकि आरएसपी सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने अध्यक्ष से कहा कि उन्हें इस विधेयक पर विभाजन की मांग करने की भी अनुमति नहीं है।