दुनिया भर में पत्रकारिता के सबसे सम्मानित पुरस्कार 'पुलित्जर पुरस्कारों' की घोषणा हुई है। लेकिन खबर यह है कि इस बार पुलित्जर प्राइज से सम्मानित दो नाम भारतीय मूल के हैं। मेघा राजगोपालन और नील बेदीदो भारतीय मूल के पत्रकारों को पुलित्जर प्राइज और सिटिजन जर्नलिज्म श्रेणी में अश्वेत जार्ज फ्लॉयड की हत्या फिल्माने के लिए प्रशस्ति-पत्र । मेघा को satellite technology के सहयोग से खोजी पत्रकारिता करते हुए चीन के अत्यंत गोपनीय नजरबंदी शिविरों की रिपोर्टिंग के लिए यह पुरस्कार दिया गया है। वहीं भारतीय मूल के एक अन्य पत्रकार नील बेदी को फ्लोरिडा में एक लॉ एनफोर्समेन्ट अधिकारी द्वारा बच्चों के अधिकार हनन करने के खिलाफ रिपोर्टिंग के लिए यह लोकल रिपोर्टिंग पुरस्कार दिया गया। बतायें कि पुलित्जर पुरस्कारों की कडि़यों की श्रृंखला में इस वर्ष यह 105 वीं कड़ी है। यह पुरस्कार न्युयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के एक बोर्ड द्वारा उत्कृष्ट पत्रकारीय कृतियों के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है।
इस वर्ष की पुलित्जर प्राइज कड़ी में एक तीसरे नाम के बारे में जानना भी काफी रोचक हो सकता है। आपको याद होगा, जार्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत का एक श्वेत अमेरिकी पुलिसकर्मी के घुटनों से दबाकर मारा जाना। हां, वही घटना जिसकी चर्चा आज भी ट्रम्प सरकार के गिरने के कारणों में से एक मानी जाती है। जार्ज फ्लॉयड की उस दर्दनाक मौत को फिल्माने का साहस करनेवाली 18 वर्षीया डानेर्ला फ्रेजियर को 'सिटिजन जर्नलिज्म' श्रेणी का इस पुलित्जर प्राइज कड़ी के विशेष प्रशस्ति पत्र से नवाजा गया है। उस पुलिसकर्मी ने जार्ज फ्लॉयड की गर्दन को अपने घुटने से दबाकर दिनदहाड़े सड़कों पर मार डाला था। डानेर्ला फ्रेजियर ने उन बर्बर पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में बेहद निडरता के साथ उस अमानवीय घटना को अपने मोबाइल में फिल्मांकित किया, जो बाद में दुनिया भर में वायरल हो गया। उसी के बाद पुलिस बर्बरता के खिलाफ अमेरिका में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।
अब बात करते हैं भारतीय मूल की मेघा राजगोपालन की। पिछले दिनों एक खबर आपने भी सुनी होगी, चाइना में लाखों मुस्लिमों को नजरबंद शिविरों में रखकर प्रताडि़त किया जाता रहा। राजगोपालन ने करीब दो दर्जन पूर्व कैदियों से साक्षात्कार लिया। लेकिन उसे सत्यापित करना आसान नहीं था। अंतत: उन्होंने सैटेलाइट इमेजरी और 3डी आर्किटेक्चरल सिमुलेशन का इस्तेमाल कर शिविरों में प्रताडि़त उइगर व अन्य अल्पसंख्यक लोगों की दुर्दशा को चित्रित कर दुनिया के सामने रखा। हालांकि राजगोपालन को इस दौरान चीन द्वारा कई बार उत्पीडि़त भी किया गया। लेकिन मेघा ने हार नहीं मानी और मानवाधिकार के आयाम को पत्रकारिता के जरिये पुन:स्थापित करने की जिद पूरी की।