नई दिल्ली : विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 सोमवार को लोकसभा में पारित हो गया। सरकार ने गत शुक्रवार को यह संशोधन विधेयक निम्न सदन में पेश किया था। यह विधेयक केंद्र एवं राज्य स्तर पर सूचना आयुक्तों के वेतन एवं सेवा शर्तों का निर्धारण करने के लिए केंद्र सरकार को शक्ति देता है। सरकार की ओर से प्रस्तावित इस संशोधन का विरोधी दलों ने विरोध किया। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार इस संशोधन के जरिए इस कानून को कमजोर बना रही है। सरकार ने पिछले साल भी सूचना का अधिकार कानून में संशोधन की कोशिश की थी लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते वह इस पर आगे नहीं बढ़ सकी।
क्या कुछ बदलेगा?
संशोधन विधेयक सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून की धाराओं 13 एवं 16 में बदलाव करेगा। मूल कानून की धारा 13 केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल (65 साल की उम्र तक, इसमें से जो पहले हो) निर्धारित करती है। इसके अलावा धारा 13 यह कहती है कि मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन, भत्ते एवं सेवा की अन्य शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना आयुक्त की सेवा एवं वेतन चुनाव आयुक्त के समान रहेंगी। जबकि संशोधन विधेयक मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन,भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तों के निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार को देता है। आरटीआई कानून की धारा 16 राज्य स्तर पर सीआईसी एवं आईसी की सेवा शर्तों, वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाओं का निर्धारण करती है। संशोधन विधेयक यह कहता है कि इनकी नियुक्ति भी केंद्र सरकार की सिफारिशों के अनुरूप होनी चाहिए। मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है।
विपक्ष का तेवर कितना असरदार?
सूचना का अधिकार 2005 में केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन एवं सेवा शर्तों का स्पष्ट रूप से निर्धारण है। जबकि संशोधन हो जाने पर समझा जा रहा है कि सरकार मुख्य सूचना आयुक्तों एवं सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन और उनके कार्यकाल का निर्धारण केस टू केस आधार पर कर सकती है। विपक्ष का आरोप है कि इस संशोधन से आरटीआई कानून कमजोर होगा। लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक मुख्य सूचना आयुक्त की 'आजादी को खतरा है' जबकि शशि थरूर ने इसे 'आरटीआई को खत्म करने वाला' विधेयक बताया है। कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, एआईएमआईएम ने भी इस संशोधन विधयेक का विरोध किया है। सरकार ने पिछले साल भी संशोधन विधेयक को पारित कराने की कोशिश की थी लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते उसे अपने पैर पीछे खींचने पड़े थे।
डीएमके नेता ए राजा ने आरोप लगाया कि सरकार संख्याबल का इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए कर सकती है। राजा ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना आयुक्तों को अपना ‘सेवक’ बनाना चाहती है। एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान और संसद को कमतर करने वाला है। ओवैसी ने इस पर सदन में मत विभाजन कराने की मांग भी की।
सरकार का संशोधन के जरिए आरटीआई में सुधार का दावा
लोकसभा में संशोधन विधेयक पेश करते हुए पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, 'संभवत: तत्कालीन सरकार ने आरटीआई एक्ट 2005 को पारित करने में जल्दबाजी दिखाई और उसने कई सारी चीजों को नजरंदाज किया। केंद्रीय सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जज जैसा दिया गया है लेकिन उनके फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। हम संशोधन के जरिए केवल इसमें सुधार कर रहे हैं।'