"मुझसे कहा गया था कि यह लंदन है और मुझे यहां हर तरह से तैयार होकर आना चाहिए। यहां बारिश हो सकती है, बर्फ़ गिर सकती है, बादल भी घिर सकते हैं, धूप भी निकल सकती है। और शायद बुकर भी मिल सकता है। इसलिए मैं तैयार होकर आयी थी पर अब लगा रहा है जैसे मैं तैयार नहीं हूं। बस अभिभूत हूं।"
हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री जब बुकर पुरस्कार जीतने के बाद मंच से यह बात कह रही थीं तो पूरे हॉल की लाइट उनके और डेज़ी रॉकवेल के चेहरे पर थी।
गीतांजलि श्री ने 'रेत समाधि' को इंटरनेशनल बुकर मिलने के बाद कहा - मैंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था।।।
गीतांजलि श्री ने एक पर्चा निकाला और उन तमाम लोगों को धन्यवाद दिया जो 'रेत समाधि' की यात्रा में एक ठंडी छांव की तरह उनके साथ रहे।
काव्यात्मक अंदाज़ में उन्होंने अपनी जीत को नक्षत्रों का ऐसा संयोग बताया जिसकी आभा से वो चमक उठी हैं। उन्होंने सभी शॉर्टलिस्टेड लेखकों, अनुवादकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए ख़ुद को सौभाग्यशाली बताया।
गीतांजलि श्री हिंदी की पहली ऐसी लेखिका हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार उनके उपन्यास 'रेत समाधि' के अंग्रेज़ी अनुवाद 'टूंब ऑफ़ सैंड' के लिए दिया गया। इसका अनुवाद प्रसिद्ध अनुवादक डेज़ी रॉकवाल ने किया है। (साभार: बीबीसी)