पटना: बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार के बाद सबसे ज्यादा घमासान कांग्रेस को लेकर मचा है। पार्टी के अंदर भी प्रदर्शन को लेकर सहजता नहीं है और सहयोगी दलों की तरफ से भी उसकी नीति और नीयत, दोनों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार से ताल्लुक रखने वाले सीनियर लीडर तारिक अनवर ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि पार्टी को आत्ममंथन करने की जरूरत है। हार पर पार्टी का क्या नजरिया है और आगे की क्या संभावनाएं हैं, यह जानने को पढ़ें तारिक अनवर से एक बातचीत के प्रमुख अंश :
बिहार के जो नतीजे रहे, उसको आप किस नजरिए से देख रहे हैं?
तारिक अनवर: एक तरह से मैंडेट को हाईजैक किया गया। महागठबंधन को हरवाने और एनडीए को जितवाने में प्रशासन की बहुत बड़ी भूमिका रही। हम लोग चुनाव आयोग भी गए, लेकिन हमारी बात अनसुनी कर दी गई। बिहार की जनता ने तो एक तरह से एनडीए को हराया ही, लेकिन प्रशासनिक मशीनरी की बदौलत एनडीए सरकार बनाने में कामयाब रहा।
एक ट्वीट में आपने कहा है कि कांग्रेस को आत्मचिंतन की जरूरत है कि उससे कहां चूक हुई?
तारिक अनवर: बेशक मैं इस राय पर कायम हूं कि सच को स्वीकार करना चाहिए। महागठबंधन में कांग्रेस से जिस स्तर के प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी, वह नहीं कर सकी, इसी वजह से महागठबंधन सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुआ। अगर कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन होता तो प्रशासिनक मशीनरी की धोखाधड़ी के बावजूद हम बहुमत का आंकड़ा छू लेते।
आप तो बिहार से ही ताल्लुक रखते हैं, अनुभवी नेता हैं। आपको क्या लगता है कि बेहतर प्रदर्शन न कर पाने में कांग्रेस से कहां चूक हुई?
तारिक अनवर: इसीलिए तो मैं कह रहा हूं कि हार का समग्रता के साथ विश्लेषण हो, उसमें सब बातें सामने आ जाएंगी। मुझे तमाम दूसरी वजहों में एक वजह यह भी लगती है कि हमारे गठबंधन ने बहुत देर में शेप लिया। बीच में कुछ कन्फ्यूजन भी रही। समय का भी अभाव रहा। हो सकता है कि हमारे जो उम्मीदवार बदले गए, उसमें कुछ चूक हो गई हो, हम जातीय समीकरण न बिठा पाए हों।
70 में कांग्रेस महज 19 सीट जीती। एक आरोप यह है कि महागठबंधन से ज्यादा सीटें लेकर पार्टी के अंदर कुछ नेताओं ने उसकी खरीद-फरोख्त की। क्या सच में ऐसा हुआ है?
तारिक अनवर: मैंने हाईकमान को समग्रता में विश्लेषण का सुझाव इसीलिए दिया है कि जो कुछ भी घटनाएं हुई हों, वे सब सामने आएं। अभी कुछ महीनों के अंदर ही हम लोगों को पांच राज्यों के चुनाव में जाना है। अगर हम मर्ज नहीं पकड़ पाए तो फिर वही गलतियां उन राज्यों के चुनाव में भी दोहराएंगे।
राज्य दर राज्य कांग्रेस की हार। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई चूक टॉप लेवल से हो रही हो, जिसे कहा न जा पा रहा हो?
तारिक अनवर: इसका जायजा लेना होगा कि हम लोगों से कहां चूक हो रही है। यह भी हो सकता है कि लंबे वक्त तक सत्ता में बने रहने से हमारे जो स्टेट लीडर्स हैं, वे आलसी हो गए हों, काम करने की ताकत न रही हो। इस खुशफहमी से बाहर निकलना ही होगा कि गांधी परिवार से कोई आएगा और हम जीत जाएंगे। ऐसा नहीं चलने वाला। उन्हें वोटर्स के साथ डायरेक्ट अपने रिश्ते बनाने होंगे।
आपका कहना है कि ओवैसी की बिहार में एंट्री बहुत खतरनाक है। लोकतंत्र में आप किसी पार्टी को चुनाव लड़ने से कैसे रोक सकते हैं?
तारिक अनवर: मैं ओवैसी को चुनाव लड़ने से रोक नहीं रहा। मैं तो बस मुसलमानों को खबरदार कर रहा हूं कि ओवैसी डायरेक्टली और इनडायरेक्टली बीजेपी का काम कर रहे हैं। अगर ओवैसी मुसलमानों से गोलबंद होने का आह्वान करते हैं तो एक मायने में बीजेपी और आरएसएस के काम को आसान कर रह रहे हैं, क्योंकि ये दोनों संगठन हिंदुओं को गोलबंद कर रहे हैं। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मुसलमान गोलबंद हों और हिंदू गोलबंद न हों। क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ही।
ओवैसी की पार्टी बिहार की 20 सीटों पर चुनाव लड़ी। इन सीटों का जो रिजल्ट रहा, उससे तो कहीं नहीं साबित होता कि है कि महागठबंधन ओवैसी की वजह से हार गया?
तारिक अनवर: ओवैसी भले ही लड़े 20 सीटों पर हों, लेकिन उन्होंने माहौल पूरे बिहार का खराब किया। उनके टारगेट पर बीजेपी नहीं थी, उन्होंने सेकुलर फोर्सेज को टारगेट किया। हम लोगों के खिलाफ ही उनका अभियान चलता रहा। असर तो होगा ही। अगर सेकुलर फोर्स कमजोर हुई तो फिर बीजेपी को तो फायदा होगा ही। पता नहीं वे जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं या नादानी में कर रहे हैं, लेकिन कर रहे हैं बीजेपी की मदद ही। मैं तो उन्हें मुसलमानों का नादान दोस्त कहता हूं, वे मुसलमानों को कहां लाकर खड़ा कर देंगे, कहा नहीं जा सकता।
ओवैसी का कहना है कि सेकुलर वोट न बंटे, इसलिए वे महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहते थे। लेकिन वहां से कोई तरजीह नहीं मिली तो एक अलग गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना उनकी मजबूरी थी?
तारिक अनवर: जहां से ओवैसी आते हैं, वहां आज तक एक लोकसभा क्षेत्र (हैदराबाद) को छोड़कर वे अपने प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं दिखा पाए और दूसरे राज्यों में उन्हें सीटें चाहिए, यह कौन सी बात हुई? पहले वे अपने स्टेट में प्रूव करके दिखाएं तो हम दूसरे स्टेट में उन्हें समझ सकते हैं। (साभार: नवभारत टाइम्स)