नई दिल्ली: तिहाड़ जेल में हुई फांसियों के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब एक साथ चार मुजरिमों को मौत के फंदे पर टांगा जा रहा है। निर्भया कांड के मुजरिमों को फांसी पर लटकाने के बाबत ‘ब्लैक-वारंट’ सारत जनवरी, 2020 (मंगलवार) को भले जारी हुआ है, मगर तिहाड़ जेल प्रशासन ने तैयारियां करीब 15 दिन पहले से ही शुरू कर दी थी। चारों दोषियों को अब 22 जनवरी को सुबह सात बजे फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा।
निर्भया कांड अंजाम को पहुंचते-पहुंचते तिहाड़ जेल के फांसी-घर का इतिहास भी बदलने जा रहा है। इसके लिए जरूरी है एशिया की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी में मौजूद तिहाड़ जेल के 1970 के दशक यानी अब से करीब 50 साल पहले से लेकर अब तक के इतिहास के पन्नों को पलटकर पढ़ने की। 1970 के दशक के अंत में (1978) गीता चोपड़ा-संजय चोपड़ा (भाई-बहन) अपहरण और दोहरे हत्याकांड ने जनता पार्टी सरकारी की चूलें हिला दी थीं।
उस कांड के दोनों मुजरिम रंगा (कुलजीत सिंह) और बिल्ला (जसबीर सिंह) को 1980 के दशक के पूर्वार्ध में इसी तिहाड़ जेल के फांसी घर में मौत के कुंए में लटकाया गया था। यूं तो इन 50 सालों में अबतक इस तिहाड़ जेल में रंगा-बिल्ला से लेकर अफजल गुरु (संसद हमले का मुख्य आरोपी) तक की सजा-ए-मौत अमल में लाई जा चुकी है। या यूं कहें कि बीते इन 50 सालों में रंगा-बिल्ला, करतार सिंह-उजागर सिंह (दोनों सगे भाई, जिन्हें 1970 के दशक में दिल्ली में हुई देश की पहली कांट्रेक्ट किलिंग विद्या जैन हत्याकांड), केहर सिंह-सतवंत सिंह (प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे), कश्मीरी आतंकवादी मकबूल बट्ट, संसद हमले का आरोपी अफजल गुरु सहित आठ लोगों को इसी तिहाड़ जेल के फांसी घर में सजा दी गई, तो भी गलत नहीं होगा।
लेकिन, तिहाड़ के इन 50 सालों के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है जब एक साथ चार मुजरिमों को फांसी के तख्ते पर टांगने का फरमान किसी हिंदुस्तानी अदालत से जारी हुआ है। यह फरमान सात जनवरी, 2020 को दिल्ली की एक अदालत ने निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में सुनाई है। एक अदद चमश्मदीद गवाह (घटना वाली रात निर्भया के साथ घटनास्थल पर मौजूद इकलौता गवाह उसका दोस्त) की गवाही और पुलिसिया तफ्तीश के बलबूते।
किसी ऐसे सनसनीखेज मामले में यह भी अपने आप में एक नजीर ही है कि जब देश के बड़े बड़े आपराधिक मामलों में सैकड़ों गवाहों की गवाही भी सजा मुजरिम को सजा दिला पाने में कामयाब नहीं हो सकी, तब एक गवाह की गवाही पर चार मुजरिमों को एक साथ फांसी की सजा मुकर्रर की जा सकी है।
तिहाड़ जेल के फांसीघर से भरी पड़ी किताबों के पन्ने पलटने पर 50 सालों में तीन ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें एक साथ दो-दो लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया है। जबकि आठ में से बाकी दो मामलों में (मकबूल बट्ट और अफजल गुरु) को एक-एक कर अलग अलग वर्ष में फांसी पर इसी तिहाड़ जेल में लटकाया गया था।