प्रवासी मजदूरों और निम्न आयवर्ग की बदहाली पर कोई संवेदना प्रकट किये बिना प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को देश को फिर नये सपने दिखाये। एक बार फिर से मोदी ने दुहराया कि पुराने माल की 'रि-पैकेजिंग' में उनको महारत हासिल है, कम से कम भाषण के जरिये तो जरूर ही। इसमें क्या संदेह कि छह वर्षों से निरंतर आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ रहे भारत पर कोरोना संकट भारी पर रहा है। जाहिर है, चहुं ओर आर्थिक पैकेज केा लेकर मांगें तेज हो रही थीं। अपने भाषण में 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए मोदी ने उस क्षोभ को शांत करने की कोशिश की। लेकिन साथ ही अंदरखाने के हालात भी उजागर करना पड़ा। पूर्व के आर्थिक पैकेज को इसी 20 लाख का हिस्सा बताते हुए विस्तार से कोई चर्चा किये बिना मोदी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर छोड़ आगे निकल लिये, नये नारों के साथ। जी हां, मेक इन इंडिया के बाद अब 'आत्मनिर्भर भारत'.. और 'लोकल-भोकल' की बात कर मोदी अपने समर्थकों के लिए नये नये शगूफे गढ़ते रहे। बहरहाल, उन्होंने इतना जरूर कहा कि इस नये पैकेज का लाभ किसानों, ऑरगनाइज्ड और अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर के मजदूरों से लेकर छोटे-मंझोले उद्यमियों और मध्यम वर्ग तक को मिलेगा.. कैसे? यह बताने की जिम्मेवारी वित्त मंत्री पर छोड़ दिया। अपने पैंतीस मिनट के देश के नाम संदेश में प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन फोर की चर्चा करते हुए छूट में काफी इजाफा का संकेत दिया। हालांकि वह इसके लिए भी राज्यों पर ही ठीकरा फोड़ते अधिक नजर आये, जैसी पहले से ही चर्चा चल रही थी। बहरहाल, इतना तय है कि अब इस पोस्ट-कोरोना एरा में दुनिया के साथ ही भारत भी बदल रहा होगा। बल्कि मोदी के आत्मनिर्भर भारत और लोकल-भोकल के मायने भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि अब भारत को खुद के बूते जीना सीखना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले भी कई मौके पर राष्ट्र को संबोधित कर चुके हैं। पीएम मोदी जनता कर्फ्यू, लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा, कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में लोगों को ताली बजाने और दिया जलाने की अपील करने के लिए राष्ट्र को संबोधित किए थे।