कोरोना टीकाकरण को लेकर केंद्र की लगातार बदल रही नीतियों के चलते भारत में टीकाकरण अभियान कमजोर पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने शुरू में कहा कि टीके की खरीद राज्य सरकारें नहीं कर सकतीं, लेकिन बाद में कहा कि राज्य सरकारें अपने स्तर से खरीद करें। साथ ही, भारत में बन रहे टीकों के लिए राज्यों का कोटा भी सीमित कर दिया। राज्यों ने जब ग्लोबल टेंडर के जरिए यह कमी पाटने की कोशिश की तो कोई कंपनी सप्लाई के लिए आगे नहीं आ रही।
भारत में कोरोना टीका बनाने से संबंधित रिसर्च आदि के लिए केंद्र ने कंपनियों को कोई पैसा नहीं दिया। अप्रैल में उत्पादन बढ़ाने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को 3000 करोड़ और भारत बायोटेक को 1500 करोड़ रुपए एडवांस देने का ऐलान जरूर हुआ। फरवरी में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने ऐलान किया था कि टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। साथ ही, यह भी कहा गया था कि जरूरत पड़ने पर और रकम दी जाएगी।
केंद्र सरकार जिस दर पर वैक्सीन (150 रुपए) खरीद रही है, उस दर से 35000 करोड़ रुपए में करीब 88 करोड़ लोगों को (सौ रुपए प्रति व्यक्ति अतिरिक्त खर्च जोड़ कर भी) दोनों डोज दी जा सकती है। लेकिन, केंद्र सरकार ने हिसाब इतना सीधा नहीं रहने दिया है। 10 मई को वित्त मंत्रालय ने कहा कि 35,000 करोड़ का जो प्रावधान किया गया था, उससे टीका खरीद कर राज्यों को दिया जा रहा है। यह रकम राज्यों को हस्तांतरण के मद में रखा गया था और इसका यह मतलब नहीं कि केंद्र इस रकम को खर्च नहीं कर सकता।
मार्च, 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने सदन में बताया कि सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को टीका बनाने वाली कंपनियों से सीधी खरीद का कोई करार करने से मना किया है। लेकिन, 19 अप्रैल को केंद्र सरकार ने फैसला बदल लिया। मोदी सरकार ने कहा कि राज्य अब कंपनियों से सीधे टीका खरीदें। इसके लिए केंद्र सरकार ने कोटा भी तय कर दिया और कंपनियों को राज्य सरकारों व निजी अस्पतालों के लिए अलग-अलग कीमत तय करने की भी छूट दे दी। कंपनियां जो टीका केंद्र को 150 रुपए में दे रही हैं, वही टीका राज्य सरकारों को 400 रुपए में दे रही हैं।
केंद्र सरकार ने मुफ्त टीका लगाने की योजना भी सीमित कर दी और कहा कि अब केवल सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीका लगेगा। ऐसे में राज्यों के ऊपर बोझ पड़ा और राज्यों ने ग्लोबल टेंडर के जरिए टीके की उपलब्धता सामान्य करने की पहल की। पर, हालत यह है कि टेंडर के जवाब में सप्लाई के लिए कोई कंपनी आगे ही नहीं आ रही। बीएमसी ने 12 मई को एक करोड़ टीके की सप्लाई के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला। आखिरी तारीख (18 मई) तक जब सकारात्मक जवाब नहीं आया तो समय-सीमा एक हफ्ते के लिए बढ़ानी पड़ी।
सरकार ने टीके का इंतजाम किए बिना 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए भी टीकाकरण की तारीख का ऐलान कर दिया। इसके बाद हालत यह हुई कि पहला डोज ले चुके लोगों के लिए भी दूसरे डोज का अकाल पड़ गया। सरकार ने मार्च में ही 60 साल से ऊपर के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया था। इससे पहले स्वास्थ्यकर्मियों व कोरोना से जंग में मददगार अन्य लोगों को जब टीका देने की शुरुआत हुई तो लोग बड़ी संख्या में टीका लेने के लिए आगे नहीं आए थे।
वैसे तो वैक्सीन की उपलब्धता कम नहीं पड़ी थी। लेकिन मार्च के बाद से जब आम लोगों के लिए चरणबद्ध तरीके से टीकाकरण शुरू हुआ तो जरूरत और उपलब्धता में भारी अंतर दिखा और वह बढ़ता ही गया। इस बीच, विदेश भेजे जाने के चलते भी देश में टीके की किल्लत रही। टीकाकरण की मौजूदा रफ्तार और सरकार की अब तक की घोषणाओं के मद्देनजर यह साफ लगता है कि पूर्ण टीकाकरण अभी दूर की कौड़ी है।