रांची: सोमवार को राज भवन के समक्ष झारखंड के कई जन सगंठनों के प्रतिनिधि एकत्रित होकर खूंटी में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन और देशद्रोह कानून द्वारा दमन का विरोध किया. यह धरना झारखंड जनाधिकार महासभा, जो कि सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन संगठनों का एक मंच, द्वारा आयोजन किया गया था. धरना में अनेक जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिए – आदिवासी विमेंस नेटवर्क, समाजवादी जन परिषद्, भोजन का अधिकार अभियान, बगईचा, जन संघर्ष समिति, TRTC, झारखंड किसान परिषद्, NAPM, विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन, राष्ट्रीय घरेलु कामगार यूनियन, वन अधिकार मंच, सर्वोदय मित्र मंडल आदि. राज्य के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया – अरविन्द अविनाश, ज्याँ द्रेज़, भारत भूषण चौधरी, सिराज दत्ता, जेरोम कुजूर, एलीना होरो, बिनीत मुंडु, डेविड सोलोमन, अम्बिका यादव, जसिन्ता केरकेट्टा, रणजीत किंडो, सरोज हेम्ब्रम, विनोद कुमार, जॉर्ज मोनिपल्ली, विश्वनाथ आजाद, सुषमा बिरुली आदि.
खूंटी ज़िला के मुख्यतः तीन प्रखंडों – खूंटी, अर्की और मुर्हू - के अनेक गावों में पिछले दो सालों में मुंडा आदिवासियों ने संविधान के पांचवी अनुसूची के प्रावधानों और पेसा कानून के आधार और अपने पारंपरिक रीति-रिवाज़ अनुसार पत्थलगड़ी किया है. इसके तहत गाँव के सीमाना में एक पत्थल की स्थापना की जाती है, जिसमें विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या एवं ग्राम सभा द्वारा तय कुछ नियम लिखे जाते हैं. अधिकांश पत्थलों पर कुछ मूल बातें लिखी हुई हैं जैसे जल, जंगल, ज़मीन पर आदिवासियों का अधिकार, ग्राम सभा की सर्वोपरिता, गाँव में बाहरियों के घुसने पर रोक एवं आदिवासी ही मूल निवासी हैं. पत्थलों में कई प्रावधानों व निर्णयों की जिस रूप से व्याख्या की गई है, वह असाधारण ज़रूर हैं. कई व्याख्याएं शायद व्यहवारिक भी नहीं हैं. लेकिन इन व्याख्याओं पर लोगों के साथ चर्चा व विमर्श करने के बजाय राज्य सरकार ने आदिवासियों की मूल मांगों व मुद्दों को दर किनार कर के इन पर भीषण दमन किया.
2018 में पुलिस ने ऐसी कह्य्ही गावों में छापा मारा जहां पत्थलगड़ी की गयी थी. मुर्हू प्रखंड के घाघरा गाँव के लोगों व वहाँ के पत्थलगड़ी समारोह में आए अन्य गाँव के लोगों को बेरहमी से पीटा था. बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष – सबको पीटा था. लोगों को घर से निकाल के पीटा था. एक गर्भवती महिला की पिटाई के कारण समयपूर्व प्रसव हुआ एवं बच्ची शारीरिक रूप से विकलांग पैदा हुई. दो लोगों को पुलिस की गोली लगी जिससे एक की मृत्यु हो गयी. पिछले दो वर्षों में कई अन्य पत्थलगड़ी गावों में भी पुलिसिया दमन देखने को मिला है. विभिन्न गावों में पुलिस लगातार छापा मारती है और पूछ-ताछ के नाम पर बेकसूर ग्रामीणों को उठाकर ले जाती है. ग्राम सभा की अनुमति के बिना कम से कम 9 विद्यालयों व 2 सामुदायिक भवनों को पुलिस ने छावनी में बदल दिया है.
पत्थलगड़ी को संविधान की गलत व्याख्या बोल कर पुलिस ने कम-से-कम 30,000 अज्ञात आदिवासियों पर विभिन्न धाराओं के तहत, मुख्यतः देशद्रोह का, मामला दर्ज किया है. कई मामलों में तो गाँव के सभी लोगों – बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष - पर मामला दर्ज कर दिया है. सरकार के अनुसार इन तीन प्रखंडों के लगभग 10% लोगों देशद्रोह हैं! देशद्रोह करार दिए जाने के डर से क्षेत्र के लोग खुल के उनके अधिकारों के उल्लंघन के विषय में भी नहीं बोल पाते हैं. ज्याँ दरजे ने धरने को संबोधित करते हुए कहा, “झारखंड सरकार का पत्थलगड़ी मुहीम के प्रति रवैया आदिवासियों के वाजिफ और अहिंसक मांगो के प्रति असंवेदनशिलता को दर्शाता है. खूंटी में आदिवासियों के स्वशासन के परंपरा का संरक्षण किया जाना चाहिए और उससे सीखना चाहिए”.
साथ ही, जो लोग खूंटी में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध सवाल किए, उन्हें भी सरकार ने देशद्रोह करार दिया. राज्य के ऐसे 20 लोग, जिनमे कई सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, शोधकर्ता, लेखक हैं, पर सरकार ने देशद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया है. इनका गुनाह यही था कि इन्होने सोशल मीडिया में आदिवासी अधिकारों पर हमलें और पत्थलगड़ी गावों में सरकार के दमन पर सवाल किया था. हाल में, उनमें से चार लोगों के नाम तो वारंट भी जारी किया गया है - स्टेन, स्वामी, विनोद कुमार, अलोका कुजूर और राकेश रोशन कीड़ो. राज्य की प्रसिद्ध कवि जसिन्ता केरकेट्टा ने कहा, “सरकार को असहमति के स्वरों को देशद्रोह कहना बंद करना चाहिए. यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा प्रहार है”.
पत्थलगड़ी की जडें झारखंड में आदिवासियों के शोषण और उनके ज़मीन के जबरन अधिग्रहण के लम्बे इतिहास से जुड़ा हुआ है. 1951 से 1995 के बीच भूमि अधिग्रहण के कारण कम से कम 15 लाख लोग विस्थापित हुए हैं. इनमें से 41% आदिवासी थे. पिछले कुछ दशकों में खूंटी ज़िला में भी जबरन भूमि अधीग्रहण के लिए कई कोशिशे हुई – जैसे कोयल-कारो और आर्सेलर-मित्तल परियोजनाओं के लिए. हालाँकि जन दबाव में इन दोनों परियोजनाओं को बंद करना पड़ा. साथ ही, आदिवासियों के सामाजिक और सांस्कृतिक अस्तित्व के संरक्षण में सरकार की विफलता के विरुद्ध भी जन आक्रोश है.
पिछले पांच सालों में राज्य भर में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमलें बढें हैं. विभिन्न कानूनों में ग्राम सभा के अनुमति के प्रावधानों को कमज़ोर करने की कई कोशिशें हुई हैं. जबरन भूमि अधिग्रहण को आसान करने के लिए राज्य सरकार ने कई बार छोटानागपुर और संथाल परगना कास्तकारी अधिनियमों (CNTA व SPTA) को बदलने की कोशिश की. सरकार ने लैंड बैंक की नीति भी बनायीं जिसके तहत ग्राम सभा, से बिना पूछे, उनके भूमि का एक बैंक बनाया जा रहा है. इसका मूल उद्देश्य है कि कॉर्पोरेट घराने बैठे-बैठे अपने लिए ज़मीन चिन्हित कर सकें.
एक ओर भाजपा की राज्य सरकार लगातार पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का व्यापक उल्लंघन करते जा रही है एवं पेसा कानून लागू करने से भाग रही है. वहीँ दूसरी ओर, प्रधान मंत्री संसद में प्रवेश करने के पहले मीडिया व TV कैमरों के सामने संविधान (किताब) को प्रणाम करने में लगे रहते हैं.
धरना के अंत में, आदिवासी विमेंस नेटवर्क की एलीना होरो ने कहा, “राज्य में व्यापक पैमाने पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन – जैसे आदिवासों अधिकारों पर हमला, माँब लिंचिंग, महिलाओं पर हिंसा - को सरकार को तुरंत रोकना चाहिए”. TRTC के रणजीत किंडो ने जोड़ा, “हमलोग सरकार के जन विरोधी नीतियों का हमेशा विरोध करेंगे. यह लोकतंत्र की मूल आवश्यकता है”.
अंत में, झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा और निम्न मांगे की:
· खूंटी के हजारों अज्ञात आदिवासियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के आरोप पर किए गए प्राथमिकी को तुरंत रद्द किया जाए. जितने नामजाद लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है, उसकी न्यायिक जांच करवाई जाए. किस सबूत के आधार पर इन मामलों को दर्ज किया गया था और जांच में क्या प्रमाण मिलें, सरकार इसे तुरंत सार्वजानिक कर.
· घाघरा व अन्य गावों में पुलिस द्वारा की गई हिंसा की न्यायिक जांच हो और हिंसा के लिए जिम्मेवार पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाई हो. साथ ही, पीड़ित परिवारों को मानवाधिकार उलंघन के लिए मुआवज़ा दिया जाए.
· सरकार पत्थलगड़ी किए गाँव के लोगों, आदवासी संगठनों के प्रतिनिधियों एवं संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ पत्थलों पर लिखे गए संविधान के प्रावधानों की व्याख्या पर वार्ता करे.
· पांचवी अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू किया जाए.