19 अक्टूबर को, झारखंड के सिमडेगा में सैकड़ों लोग हॉ दो युवा आदिवासी लड़कियों की मौत की पुलिस जांच में चूक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने एकत्र हुए। इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन द्वारा आदिवासी महिला नेटवर्क, बगैचा, एनएचआरओ, नरेगा वॉच, और यूनाइटेड मिल्ली फोरम जैसे कई संगठनों (जो कि झारखंड जनधिकार महासभा से जुड़े हुए हैं) के साथ मिल कर किया गया।
11 अगस्त को, दो युवा आदिवासी लड़कियों, श्रद्धा शालिनी सोरेंग (14 वर्ष) और सुनंदिनी बागे (23 वर्ष), के शव सिमडेगा जिले के अरानी गाँव में एक पेड़ से लटके हुए मिले थे। दोनों लड़कियां बेहतरीन हॉकी खिलाडी थीं। लड़कियां राउरकेला में मेरी पूर्ती नामक एक महिला के साथ रहीं है, जिन्होंने उनसे कोचिंग मदद का वादा किया था।
श्रद्धा के पिता राजेश सोरेंग ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जांच शुरू करने से पहले ही खुद सिमडेगा पुलिस ने दावा किया गया कि यह आत्महत्या है। पुलिस ने परिवार को बताया कि वे कोच से मिले थे और पाया था कि श्रद्धा एक ’अच्छी’ लड़की नहीं थी। उन्हें पता चला था कि दोनों लड़कियां समलैंगिक संबंध में थीं। और इसलिए वे आश्वस्त थे कि यह एक आत्महत्या थी। पुलिस ने श्रध्हा के परिवार वालों के साथ कई बार दुर्व्यवहार किया गया और दोहराया गया कि श्रद्धा का चरित्र ‘बुरा’ था। वे कहते रहे, "आपकी बेटी गंदी-गंदी काम कर रही थी"।
सुनन्दिनी की माँ ने भी इसी तरह की टिप्पणियों को साझा किया। दोनों लड़कियों के माता-पिता ने कहा कि उन्हें उनके बीच किसी समलैंगिक संबंध की जानकारी नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि वे आश्वस्त थे कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि एक हत्या है और कोच उनकी मौत में शामिल थे। श्रद्धा के एक पड़ोसी जिसने उसे बचपन से बड़े होते देखा था, ने कहा कि वह एक समर्पित खिलाड़ी थी। घटना के तीन दिन पहले, श्रद्धा और उनकी बेटी मिले थे। श्रद्धा हंसमुख थी। उन्होंने यह भी बतलाया कि वह राउरकेला में केस की पूछताछ करने गई थी और पाया कि कोच के पड़ोसियों की यह राय थी कि कोच लड़कियों के यौन शोषण में शामिल थी।
ग्राम पंचायत के मुखिया जहां लड़कियों को लटका हुआ पाया गया, ने कहा कि पुलिस ने शवों को पेड़ से नीचे उतारने से पहले किसी भी गवाह की प्रतीक्षा नहीं की। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने मौत के बाद फील्ड जांच नहीं की। उन्होंने उस गाँव के लोगों से भी बात नहीं की। श्रद्धा और सुनंदिनी के गांव के कई अन्य लोगों ने कहा कि पुलिस पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को धमकी दे रही थी और आत्महत्या का झूठा मामला बनाने की कोशिश कर रही थी।
एनएफआईडब्ल्यू की तारामणी साहू, जो एक सिविल सोसाइटी फैक्टफाइंडिंग टीम का हिस्सा थीं, जिन्होंने घटना की जांच की, ने धरना को संबोधित किया। उसने कहा कि स्थानीय पुलिस ने परिवार के सदस्यों को धमकी दी थी कि वे सिविल सोसाइटी की जांच टीमों से बात न करें। उसने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा की गई जांच में कई ढीले छोर थे। बस एक लड़की पुष्पा लोहार (14 वर्ष, कोच के पद पर भी रही) की गवाही के आधार पर, पुलिस ने एक समलैंगिक संबंध से प्रेरित आत्महत्या की कहानी विकसित की। घटना स्थल के पास के चश्मदीदों ने देखा था कि लड़कियों का पीछा बाइक और कार से किया गया था। जांच टीम के सदस्यों में से एक, रेजिना खलखो ने कहा कि कोच ने शुरू में उनसे बात करने से इनकार कर दिया जब वे उसके स्थान पर गए। कोच तथ्यान्वेषण टीम को उनकी कोचिंग की व्यवस्थओं के बारे में जानकारी नहीं बता पा रहा थी।
नरेगा वॉच के जेम्स हेरेंज ने कहा कि सिमडेगा पुलिस आत्महत्या की झूठी कहानी बनाने की कोशिश कर रही है क्योंकि अगर वे इसे हत्या मानते हैं, तो उनकी स्वयं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठेंगे।
धरना के अंत में, प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल को संबोधित एक ज्ञापन स्थानीय प्रशासन को सौंपा और निम्नलिखित मांगें कीं:
• एक विशेष जांच दल (एस आई टी) का गठन किया जाए, और नए सिरे से मौत, हत्या की संभावना और कोच के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए।
• पीड़ितों का चरित्र हनन बंद किया जाए।
• जांच में चूक, आत्महत्या का झूठा मुकदमा बनाने और पीड़ितों के चरित्र हनन के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।