दिल्ली/रांची: देश में 1 जून 2019 की स्थिति के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में 58,669 मामले लंबित हैं जबकि विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 43.55 लाख मामले लंबित हैं। उच्च न्यायालयों में लंबित मामलो में 8.35 लाख मामले दस या अधिक वर्ष से लंबित है, 8.44 लाख मामले पांच से दस वर्ष से लंबित हैं। केन्द्रीय विधि एवम् न्याय, संचार एवम् इलेक्ट्रोनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी राज्य सभा में सांसद परिमल नथवाणी द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत की ।
मंत्री के अनुसार, राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ता. 24.06.2019 की स्थिति के अनुसार देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 18.75 लाख मामले दीवानी, 12.15 लाख मामले दांडिक और 12.65 मामले रीट पीटीशन के हैं। उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों में 26.76 लाख मामले पांच साल से कम अवधि से लंबित हैं, 8.44 लाख मामले पांच से दस वर्ष से लंबित है और 8.35 लाख मामले दस या अधिक वर्ष से लंबित हैं।
मंत्री के उत्तर अनुसार, बकाया मामला समितियों के माध्यम से अनुवर्ती लम्बित मामलों में कमीः इसके अतिरिक्त, अप्रैल, 2015 में आयोजित मुख्य न्यायमूर्तियों के सम्मेलन में पारित संकल्प के अनुसरण में, उच्च न्यायालयों में पांच वर्ष से अधिक सम्बित मामलों के निपटान के लिए बकाया मामला समितियां गठित की गई । वर्तमान में, सम्पूर्ण देश में एसे 581 त्वरित निपटान न्यायालय कार्यरत हैं । निर्वाचित सांसदों /विधान सभा सद्स्यों को अंतर्वलित करने वाले त्वरित निपटान अपराधिक मामले के लिए ग्यारह (11) राज्यों में बारह (12) विशेष न्यायालय स्थापित की गए हैं।
परिमल नथवाणी भारत के उच्चतम न्यायालय और देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में, दीवानी और फौजदारी दोनों के कुल कितने मामले लम्बित हैं, उपर्युक्त मामलों में से प्रत्येक न्यायालय में पांच वर्ष से कम और पांच वर्ष से अधिक तथा दस वर्ष से कम और दस वर्ष से अधिक समय से कितने मामले लम्बित हैं और सरकार द्वारा मामलों को निपटाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए किए गए उपायों के बारे में जानना चाहते थे।
मंत्री ने बताया कि सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय न्याय परिदान और विधिक सुधार मिशन ने न्यायिक प्रशासन में विभिन्न सामरिक प्रयासों के माध्यम से बकाया और लम्बित मामलों के चरणबद्ध समापन के लिए समन्वित पहुंच अंगीकार की है जिसके अंतर्गत, न्यायालयों के लिए अवसंरचना में सुधार करना, बेहतर न्याय परिदान के लिए सूचना और संसूचना प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का लाभ उठाना तथा उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरना भी है ।
उन्होंने बताया कि जिला और अधीनस्य न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए अवसंरचना में सुधार करनाः वर्ष 1993-94 में न्यायपालिका के लिए अवसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास के लिए केंद्रीकृत प्रायोजित स्कीम (सीएसएस) के प्रारंभ से आज तक 6,986.50 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं । इसमें से, अप्रैल, 2014 से राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों को 3,542.20 करोड़ रुपये (जो कि आज तक जारी की गई कुल रकम का 50.70 प्रतिशत है) जारी किए गए हैं ।
इस स्कीम के अधीन, पिछले पांच सालों में न्यायालय हालों की संख्या 15,818 बढ़ाकर 19,101की गई है और आवासीय इकाइयों की संख्या 10,211से बढ़ाकर 16,777हुई है। इसके अतिरिक्त, 2,879 न्यायालय हाल और 1,886 आवासीय ईकाइयां निर्माणाधीन हैं । केंद्रीय सरकार ने इस स्कीम को 3,320 करोड़ रुपये की अतिरिक्त प्राक्कलित लागत के साथ 12वीं पंचवर्षीय योजना अवधि अर्थात् तारीख 01.04.2017 से ता. 31.03.2020 से आगे जारी रखना अनुमोदित किया है ।
मंत्री के निवेदन के अनुसार न्याय परिदान में सुधार के लिए सूचना और संसूचना प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का लाभ उठानाः सरकार संपूर्ण देश में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों को समर्थ बनाने हेतु सूचना और संसूचना प्रौद्योगिकी के लिए ई-न्यायालय मिशन मोड़ परियोजना लागू कर रही है । कम्प्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या में वर्ष 2014 से आज तक के दौरान 3,173 की वृद्धि रजिस्ट्रीकृत करते हुए 13,672 से 16,845 की वृद्धि हुई है ।
ई-न्यायालय सेवाएं, जैसे कि मामला रजिस्ट्रीकरण के ब्यौरे, वाद सूची, मामला प्रास्थिति, दैनिक आदेश और अंतिम निर्णय ई-न्यायालय वैब पोर्टल, सभी कम्प्यूटरीकृत न्यायालयों में न्यायिक सेवा केंद्र (जेएससी), ई-न्यायालय मोबाइल एप, ई-मेल सेवा, एसएमएस पुश और पुल सेवाओं के माध्यम से मुवक्किलों और अधिवक्ताओं को उपलब्ध हैं, ऐसा मंत्री के निवेदन में बताया गया। वकिलों और मुवक्किलों को सूचना संबंधी वाद सूची और अन्य मामलों से संबंधित न्यायिक सूचना के प्रसार के लिए सभी कम्प्यूटरीकृत न्यायालय परिसरों में सूचना कियोस्क स्थापित किया गया है । ई-न्यायालय परियोजना देश की शीर्ष पांच मिशन मोड परियोजनाओं में से एक बनी हुई है, ऐसा निवेदन में बताया गया।
पिछले पांच सालों के दौरान उच्चतम न्यायालय में 31 न्यायमूर्ति नियुक्त किए गए , उच्च न्यायालयों में 454 नए न्यायाधीश नियुक्त किए गए और 366 अतिरिक्त न्यायधीशों को स्थायी किया गया था, ऐसा मंत्री ने बताया। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले पांच सालों में उच्च न्यायलयों के न्यायधीशों की स्वीकृत पद संख्या 906से बढ़ाकर 1079की गई है, ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के स्वीकृत पद 19,518 से बढाकर 21,340 किए गए है और कार्यरत पद 15,115 से बढ़ाकर 17,757 किए गए हैं ।