रांची / जमशेदपुर: आदिवासी सेंगेल अभियान ने झारखंड हाई कोर्ट द्वारा 22 अप्रैल 2022 को उरांव जनजाति की महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार पाने को ऐतिहासिक फैसला बताते हुए का फैसले का स्वागत किया है। सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि यह संविधानसम्मत होने के साथ-साथ स्त्री पुरुष के बीच भेदभाव को समाप्त करता है। अतः आदिवासी समाज के अन्य सभी जनजातियों यथा संताल,मुंडा, हो, भूमिज आदि के बीच में भी इसको लागू करने का रास्ता प्रशस्त होता है। परंतु कतिपय आदिवासी संगठन प्रथा, परंपरा या कस्टम आदि के नाम पर संविधान- कानून विरोधी कुछएक प्राचीन क्रियाकलापों को जीवित रखने की वकालत कर समाज को अन्याय, अत्याचार, शोषण के दलदल में धकेलने का प्रयास करते हैं। जो गलत है। कस्टम या परंपरा के नाम पर आदिवासी समाज में नशापान,अंधविश्वास,डायन प्रथा, अंधभक्ति, राजनीतिक कुपोषण, आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता, ईर्ष्या- द्वेष आदि चालू है। इसको समाप्त करने के अभियान में सेंगेल प्रयासरत है। इसके जड़ में अधिकांश आदिवासी स्वशासन व्यवस्था द्वारा कस्टम के नाम पर चालू अनेक प्रथाएं हैं। वस्तुतः स्वशासन बन गया है स्वशोषण। इसमें त्वरित सुधार के लिए सेंगेल ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि को पत्र भेजा है। जिसका संज्ञान लिया जा रहा है। झारखंड के अलावे बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम प्रदेशों में रह रहे झारखंडी आदिवासी समाज में संविधानसम्मत सुधार हेतु सेंगेल की तरफ से एक पुस्तक का विमोचन 30 अप्रैल 2022 को संताली राजभाषा रैली, रांची के दौरान किया जाएगा। जो समाज- सुधार के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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