31 अक्टूबर 2018 को जब सरदार पटेल पुतले का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्ते, गुजरात में नर्मदा के बीच हुआ, तब गुजरात के आदिवासी न केवल चिंतित बल्कि आक्रोशित थे बल्कि उन्होंने 29 तारीख को राजपिपला में कलेक्टर के सामने नर्मदा जिले में अपना आक्रोश जता ही दिया था। नर्मदा के किनारे से 1961 से उजड़े हुए 6 गांवों ने अभी तक न मुआवजा पाया न 2013 के जमीन के बदले जमीन देने के आदेश का पालन हुआ। ऐसी स्थिति में उनकी बची हुई न डूबी हुई जमीन लेने का अधिकार न होते हुए, इस पुतले के साथ जुड़े हुए पर्यटन योजना के लिए जमीन छीनी जा रही है। ऐसे में सरदार पटेल की प्रतिमा के अनावरण से पहले करीब 100 आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं का विरोध लंबे समय से होता रहा है। लेकिन तमाम तरह के हथकंडे अपनाकर अपनी पब्लिसिटी कराने वाले नरेंद्र मोदी इसके दबाने का प्रयत्न करते आए हैं।
गुजरात के 19 गाँव जो सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आए उनके आदिवासियों का अभी तक सम्पूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ, ना हीं उनके गाँवों में पीने का पानी है, न सिंचाई सभी को मिली है, ना ही रोजगार! और तो और मध्य प्रदेश के सरदार सरोवर के ही डूब क्षेत्र के आदिवासियों को और अन्यों को, जबकि 2000 के बाद की कटऑफ डेट मान कर वयस्क पुत्रों का अधिकार और पुनर्वास मिला है। जहां भी 35000 परिवार आज भी डूब क्षेत्र में है, लेकिन उतना भी गुजरात के आदिवासियों को नहीं दिया गया है तो संघर्ष जारी है। इस स्थिति में गरुडेश्वर वेयर के विस्थापित, नहरों के विस्थापित, जो टापू बनने वाले फलिए, पहाड़ों में हैं उनके तमाम विस्थापितों पर कहर ढोने जा रही है पर्यटन की नई योजना ! इस योजना से 72 अन्य आदिवासी गाँव प्रभावित होंगे इसीलिए, क्षेत्र के आदिवासियों ने 31 अक्टूबर को चूल्हा बंद रख के अपना केवल दुख दर्द ही नहीं संताप और संघर्ष व्यक्त करने का तय किया था।
इन गांवों के लोगों ने कहा कि हम मध्य प्रदेश के मजदूर, मछुआरे, कुम्हार, जो सरदार पटेल जी को एक अभूत किसान नेता मानते आए हैं और आजादी के आंदोलन में उनका योगदान भी सभी को मंजूर है, महात्मा गांधी, पं। जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद सभी के साथ आजादी के आंदोलनकारियों ने मिलकर जो स्वराज और सु-राज का संदेश दिया और राजनीतिक आजादी के साथ सामाजिक और आर्थिक आजादी का सपना देखा उस सपने के प्रति हम लोग कटिबद्ध है। लेकिन सरदार पटेल जी के नाम का इस्तेमाल कर के चल रही राजनीति हमें नामंज़ूर है। हम दलीय चुनावी राजनीति में न होते हुए, आज के परिस्थिति में ‘ हिन्दी मराठी या गुजराती - लड़ने वाले एक ही जाती ’, इस नारे और संकल्प के साथ 31 अक्टूबर को बड़वानी जिले के ग्राम बगुद में और धार जिले के ग्राम चिखल्दा में एकत्रित होकर गुजरात में चल रहे संघर्ष को समर्थन देंगे, साथ ही साथ हजारों परिवारों का पुनर्वास करने में शासन की नाकामयाबी का हम धिक्कार करेंगे । हम चाहेंगे की नर्मदा को बहती रखा जाये और केवल कभी लोकार्पण सरदार सरोवर बांध का, कभी अनावरण सरदार पटेल पुतले का, इसके लिए मात्र थोड़ा सा पानी न छोड़ा जाये।
हम चाहते है की नर्मदा के तमाम बड़े और मझौले बांधो के पानी की नियमितीकरण ऐसी हो की हमारे किसानों की भूमि, हमारी आबादीयां, हमारे मछुआरों की मछ्ली, कुम्हारों की जमीन ये सब और नदी घाटी भी यहाँ के पेड़, पौधे, मंदिर, घाट भी बिना सम्पूर्ण पुनर्वास के, स्थलान्तर के, और बिना अधिकार प्राप्त किए हुए न डुबाये जाये। हमारा यह भी कहना है की, आज सरकार कानूनी न्याय से भी विपरीत चल रही है, 2000, 2005 तथा 2017 का सुप्रीम कोर्ट का एक एक फैसला होते हुए भी उसके आदेशों का उल्लंघन कर रही है । शिकायत निवारण प्राधिकरण जैसे माध्यमों को कमजोर बनाने की दृष्टि से कई आदेश निकालने जा रही है। शिकायत निवारण प्राधिकरण के सैकड़ो आदेशों का, तथा हाइ कोर्ट के उन आदेशों को मंजूर रखने वाले आदेशों का पालन न करते हुए बड़ा अन्याय कर रही है, हजारों अर्ज़ियाँ और शिकायते जब की प्रलंबित है तब ऐसी स्थिति में यहाँ ध्यान देने के बदले नर्मदा को पर्यटन का केंद्र बनाना और इसके साथ जुड़ी हुई आजीविका, सामाजिक सरोकार तथा धार्मिक आस्था को, आदिवासियों से लेकर सभी समाज को उसे अनदेखा करना यह हमें नामंज़ूर है । हम चाहते है की गंगा के जैसे नर्मदा की भी प्रदूषण से, अवैध खनन से, बड़े बांधो के अनियमित असुचारु संचालन से और नदी का जलाशय में परिवर्तन होने के बाद, पानी उठा उठाकर गुजरात, मध्य प्रदेश दोनों राज्यों कंपनियों की और बड़ी बड़ी पाईप लाइनों से ले जाने की बात तत्काल रोकनी चाहिए । महाराष्ट्र का पानी गुजरात को देकर सरदार सरोवर से तापी नदी घाटी में पानी लेना सतपुड़ा के आदिवासियों को वंचित करना होगा, जो मध्यम परियोजनाओं के साथ करने का विरोध ग्राम सभाओं ने करने के बावजूद सोच और योजना जारी है।
हम जानते है की तीनों राज्यों में बहने वाली नर्मदा नदी जब समुद्र को नहीं मिल रही है, और समुंदर का पानी भरूच और नर्मदा जिले तक 80 किलोमीटर अंदर आ चुका है वहाँ के मछुआरे बेरोजगार हो चुके है, वहाँ के खेतिहरों की खेती और पानी तथा शहरवासियों को दिये जाने वाला पीने का पानी भी खारापन से पीने लायक नहीं रहा है, तब जरूरी है नर्मदा में अमरकण्ठ से भरूच तक सरदार सरोवर के नीचेवास में भी कितना पानी और कैसा छोड़ा जाये इस पर सोच विचार और निर्णय किया जाये । जरूरी है की सरदार सरदार सरोवर के गेट खोले जाये और जितना जरूरी हो उतना पानी जो 1990 से ही आकना था वह उपलब्ध किया जाये ताकि नदी समुंदर में बहती रहे । हम चाहते है की नर्मदा को जीवित रखे और जी। डी। अग्रवाल जी को शहादत देनी पड़ी वैसे घाटी के लोगों को उस स्तर का संघर्ष न करना पड़े । लेकिन आज शासन जो दुर्व्यवहार अन्याय, अत्याचार और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रही है उसका हम लोग कल 31 अक्टूबर के रोज ही नदी किनारे एकत्रित होकर प्रातिनिधिक रूप में पुर जोरदार विरोध करेंगे और गुजरात के आदिवासियों के संघर्ष को भी साथ और समर्थन घोषित करेंगे।